वरोरा। वरोरा-भद्रावती निर्वाचन क्षेत्र में हर उम्मीदवार अपनी हार के डर से डरा हुआ है और इसका कारण है वे बागी, जो अलग-अलग दलों को मदद पहुंचाने में लगे हुए हैं. 20 साल से कांग्रेस के गढ़ रहे इस क्षेत्र से संजय देवतले चार बार विधायक रहे, मंत्री भी बने. मगर ऐन वक्त पर पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम लेने के बाद अब उनकी सगी बहू (भाई की पत्नी) डॉ. आसावरी देवतले ने कांग्रेस का झंडा थाम लिया है. शिवसेना के बालू धानोरकर के विरोध में उसी पार्टी के पडाल ख़म ठोंक रहे हैं. कहने को अनिल बुजोने मनसे के प्रत्याशी हैं, मगर मनसे के पदाधिकारी और कार्यकर्ता ही उनके विरोध में प्रचार कर रहे हैं. यही हाल राकांपा उम्मीदवार जयंत टेमुर्डे का है. मगर राकांपा के कुछ नगरसेवक और कार्यकर्ता प्रचार करने के बजाय घर में बैठ आराम कर रहे है.
भाजपा-शिवसेना और कांग्रेस-राकांपा के रिश्तों के टूटने की वजह से सब अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस द्वारा अपने चार बार के विधायक संजय देवतले के बजाय उनकी बहू (भाई की पत्नी) डॉ. आसावरी देवतले को टिकट देने से नाराज संजय देवतले भाजपा में शामिल होकर चुनाव मैदान में उतर पड़े. इससे नाराज भाजपा कार्यकर्ता कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना के प्रत्याशियों को मदद कर रहे हैं. राकांपा कार्यकर्ता जयंत टेमुर्डे के बजाय शिवसेना के बालू धानोरकर को मदद कर रहे हैं. एक उम्मीदवार ने अपने खर्च से दूसरे को मैदान में उतार दिया है. भाकपा और कामगारों के समर्थक अजय हिरन्ना रेड्डी भी ताल ठोंक रहे हैं. इस चुनाव में एक भी प्रमुख उम्मीदवार भद्रावती तालुका का नहीं है. इससे मतदाता भी भ्रम में हैं कि वोट दें तो किसे दें. बागियों के चलते कोई भी उम्मीदवार आज की स्थिति में जीत का दावा करने की हालत में नहीं है. बस, सब डरे हुए हैं. कोई नहीं जानता कि 15 अक्तूबर को क्या होगा.