Published On : Tue, May 16th, 2017

क्या है OBOR, जिसमें भारत को छोड़कर साउथ एशिया के सभी देश शामिल हो चुके हैं?

Advertisement


12 मई को नेपाल में एक दस्तखत ने भारत को ‘अकेला’ कर दिया. नेपाल चीन के वन बेल्ट वन रोड (OBOR) प्रोजेक्ट में शामिल हो गया. और इसी के साथ भारत दक्षिण एशिया का वो अकेला देश बन गया जो इस प्रोजेक्ट में भागीदार नहीं है – पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव और म्यांमार पहले ही OBOR डील पर दस्तखत कर चुके हैं. इन देशों को लगता है कि OBOR से उनकी किस्मत चमक जाएगी. भारत भी OBOR पर लगातार नज़र बनाए हुए है लेकिन उसमें शामिल नहीं होना चाहता. भारत अपने पड़ोसियों से उलटी दिशा में क्यों जा रहा है, ये समझने के लिए हमें जानना होगा कि ये OBOR है किस चिड़िया का नाम और ये भी कि भारत को इससे एलर्जी क्यों है.

कौन सा बेल्ट, कौन सी रोड?
आज से 2000 साल पहले सिल्क रोड चीन को मध्य एशिया से होते हुए यूरोप तक जोड़ता था. इस रोड से उस ज़माने में काफी व्यापार होता था, अलग-अलग संस्कृतियों के लोग एक-दूसरे से मिलते थे. चीन उसी तरह का एक रूट आज ज़िंदा करना चाहता है, जिस पर चल कर उसका व्यापार और प्रभाव दोनों दुनियाभर में पहुंच सके. इसे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट माना जाता है.

Gold Rate
Friday 07March 2025
Gold 24 KT 86,300 /-
Gold 22 KT 80,300 /-
Silver / Kg 97,700 /-
Platinum 44,000 /-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

OBOR एक तरह से आधुनिक सिल्क रूट ही है. लेकिन ये एक रोड बस नहीं होगी. इसमें चीन को अफ्रीका, यूरोप और एशिया के देशों से जोड़ने के लिए हाइवे, रेल लाइनें, पाइपलाइनें और बिजली की ट्रांसमिशन लाइन – सब बनाई जाएंगी. मतलब औद्योगिक विकास के लिए ज़रूरी सारी चीज़ें. इसमें समंदर वाले रूट भी होंगे. इसके लिए चीन आस-पड़ोस के देशों के साथ करार कर रहा है, वैसा ही जैसा 12 मई को नेपाल के साथ हुआ. अब चीन इन प्रोजेक्ट्स में निवेश करेगा. इससे चीन को दोगुना फायदा होगा. उसका सामान पूरी दुनिया में पहुंचेगा और वो किसी प्रोजेक्ट के चल निकलने पर उसे अपने निवेश पर रिटर्न भी मिलेगा.

OBOR- चीन के हर मर्ज़ की दवा
OBOR मे शामिल होने वाले देश चीन से जुड़ने को एक विकास करने के एक मौके की तरह देखते हैं. मानते हैं कि उन्हें इससे फायदा पहुंचेगा. लेकिन चीन के लिए बात बहुत आगे तक जाती है. उसके लिए OBOR एक डिप्लोमेसी टूल भी है और खुद को संभलने का मौका भी. चीन ने पिछले दशकों में लगातार तेज़ी से विकास किया है. लेकिन अब इसकी दौड़ धीमी हो रही है. 25 साल में पहली बार उसने अपनी जीडीपी का टार्गेट 6.5 फीसदी रखा है. OBOR के ज़रिए चीन अपनी अर्थव्यवस्था को दोबारा तेज़ी देना चाहता था.

OBOR चीन के लिए एक मुसीबत और कम कर देगा. अभी चीन का सामान दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर से होकर यूरोप पहुंचता है. लेकिन इन दोनों रूट्स को लेकर चीन पूरी तरह आश्वस्त नहीं रहता. दक्षिण चीन सागर के द्वीपों को लेकर चीन का झगड़ा फिलीपींस और मलेशिया जैसे देशों से चलता रहता है. और हिंद महासागर को भारत का बैकयार्ड समझा जाता है. यहां इंडियन नेवी की पकड़ ज़्यादा मज़बूत है. OBOR से चीन इन दोनों मुश्किलों को बायपास कर पाएगा.

इसके अलावा निवेश के रास्ते चीन का दुनियाभर के देशों में अपना दखल भी बनाए रख पाएगा. इससे चीन अमरीका के प्रभाव को बैलेंस करेगा. चीन 14 मई से दो दिन का एक बेल्ट एंड रोड फोरम भी ऑर्गनाइज़ करा रहा है. इसमें 29 देशों के राष्ट्राध्यक्ष पहुंच रहे हैं. कई और देशों के डेलिगेट भी होंगे.

भारत को OBOR से क्या दिक्कत है?
OBOR से भारत के कतराने की सबसे बड़ी वजह है चाइना-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर CPEC. CPEC, OBOR का ही एक हिस्सा है. अभी चीन से चलने वाला सामान समंदर के रास्ते भारत और श्रीलंका का चक्कर लगाकर मध्य एशिया और आगे तक जाता है. CPEC चीन को ज़मीन के रास्ते पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा. ग्वादर ईरान की सीमा के पास है. चीन का सामान रेल और सड़क के रास्ते ग्वादर पहुंचेगा और वहां से आगे समंदर के रास्ते अफ्रीका और यूरोप तक जाएगा, बिना भारत का चक्कर लगाए. भारत को इस प्रोजेक्ट के उस हिस्से से दिक्कत है जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़रता है. भारत समय-समय पर CPEC के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज कराता रहा है. लेकिन चीन और पाकिस्तान ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. यही वजह है कि भारत CPEC के साथ ही OBOR के भी खिलाफ है.

*ये नक्शा केवल CPEC को समझने के लिए है. इसमें दर्शाई सीमाएं ‘दी लल्लनटॉप’ की राय में सही नहीं हैं.

ये एक वजह हुई. दूसरी वजह ये है कि भारत OBOR को इंफ्रास्टक्चर के साथ-साथ ही डिप्लोमेसी प्रोजेक्ट के तौर पर भी देखता है. भारत, चीन को एक कंपटीटर की तरह देखता है. इसलिए वो नहीं चाहता कि दक्षिण एशिया (और पूरी दुनिया में भी) चीन का दबदबा बढ़ाने वाला किसी भी प्रोजेक्ट में वो शामिल हो. यही कारण है कि भारत बेल्ट एंड रोड फोरम में भी आधिकारिक तौर पर शामिल नहीं हो रहा.

एक तीसरी वजह भी है. वो ये कि भारत अपने खुद के OBOR पर काम कर रहा है. सार्क पाकिस्तान की अड़ंगेबाज़ी से असफल हो गया. क्षेत्रीय सहयोग से आगे बढ़ने के भारत के सारे सपने धरे के धरे रह गए. तो भारत ने ‘बे ऑफ बेंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टरल टेक्निकल एंड इकॉनोमिक कॉपोरेशन (BIMSTEC)’ बनाया. ये एक तरह से सार्क ही था, पाकिस्तान के बगैर. इसके तहत भी कनेक्टिविटी पर काम होना है, एशियन ट्राइलेटरल हाइवे ऐसी ही एक सड़क है जो भारत, थाइलैंड और म्यांमार को जोड़ेगी. लेकिन BIMSTEC के सारे प्रोजेक्ट ढीली रफ्तार से चल रहे हैं.

OBOR के प्रोजेक्ट BIMSTEC से कहीं बड़े हैं, लेकिन लाज़मी यही है कि भारत अपने चलाए प्रोजेक्ट्स पर ज़ोर दे बनिस्बत ऐसे किसी प्रोजेक्ट के, जिसका लीडर कोई और ताकतवर देश हो.

तो क्या भारत सही में अकेला हो जाएगा?
चीन के विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत OBOR में शामिल न होकर खुद को हाशिए पर धकेल रहा है. खासकर नेपाल के OBOR में शामिल होने पर. भारत नेपाल का ‘बिग-ब्रदर’ समझा जाता है. लेकिन नेपाल ने भाई के खिलाफ जाकर चीन से हाथ मिला लिया है. नेपाल यूं भी पिछले कुछ सालों में चीन के करीब गया है.

भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा और सबसे ताकतवर देश है. उसकी यहां तूती बोलती है. लेकिन अब भारत ऐसे देशों से घिर गया है जो चीन के इस ड्रीम प्रोजेक्ट में हिस्सा लेंगे. और अगर उन्हें सही में फायदा पहुंचा तो भले भारत ‘हाशिए’ पर न जाए पर उसका दबदबा इस इलाके में ज़रूर कुछ कम हो जाएगा. लेकिन अभी इस सब में काफी वक्त है. वो वक्त जो भारत को अपनी स्ट्रैटेजी तराशने में लगाना शुरू कर देना चाहिए.

—As published in TheLallantop.com

Advertisement