नागपुर: सुबह-सुबह नाश्ते में एक गिलास दूध, फिर केला और फिर पोहा या उपमा, आज आपने नाश्ते में यही सब खाया न? नहीं! अरे! नागपुर केंद्रीय कारागार के कैदी तो यही सब खाते हैं नाश्ते में और रोजाना खाते हैं। आप हैं कि फौजियों को मिलने वाले सड़े, बदबूदार और बासी खाने की सचाई जानकर दुःखी हैं। खुश होइए कि हमारे देश का कैदी पोषाहार खाता है। फौजी तो संघर्ष करने के लिए ही होता है, उसे उसके हाल पर छोड़िए!
यह सब पढ़ते हुए आपको गुस्सा आ रहा है न? अगर नहीं आ रहा है तो मान लीजिए कि आपके भीतर इस देश के लिए अपनी जान देने वाले फौजी से अधिक दूसरों की जान लेने वाले अपराधी के लिए ज्यादा हमदर्दी है।
कैदियों को तीन समय मानक नियमों के हिसाब से पोषाहार दिया जाता है। सुबह एक गिलास दूध, केला खाने के बाद कैदियों को पोहा या उपमा और दोपहर के भोजन में रोटी, सब्ज़ी, दाल, चावल। रात के भोजन में भी यही सब, बस सब्जी बदल दी जाती है।
कैदियों को खिलाइए, ‘नागपुर टुडे’ को कोई ऐतराज नहीं है, आखिर वे ‘सरकारी मेहमान’ जो ठहरे। उन्होंने अपराध किया है तो अदालत की सुनाई सजा काटने वे जेल में आए हैं और यहाँ सिर्फ सजा ही नहीं काटनी है उन्हें, अपना हृदय परिवर्तन भी तो करना है! और हृदय परिवर्तन खाली पेट कैसे होगा?
लेकिन इस देश की सीमा पर धूप, बारिश, सर्दी झेलते हमारे सैनिकों के साथ इतना सौतेला व्यवहार क्यों? यह तो भला हो सीमा सुरक्षा बल के उस जवान का कि उसने हिम्मत कर वीडियो बनाया और सारी दुनिया को भारतीय सैनिकों के साथ हो रहे भयावह भेदभाव से परिचित कराया।
ऐसा नहीं कि सैन्य अधिकारियों के मजे हैं। असल में सेना में अधिकारियों के मेस में भी जो खाना मिलता है उसका बदबूदार, बासी और सड़ा हुआ होना आम बात है। ऊपरी रैंक के कुछ अधिकारियों को छोड़कर शेष सभी के हिस्से में बदतर खाना ही आता है।
ऐसा नहीं कि सरकार अपने फौजियों के लिए बेहतरीन और पौष्टिक खाने-नाश्ते का इंतजाम नहीं करती! सचाई यह है कि सेना का प्रबंधन तंत्र भयानक रूप से भ्रष्ट है और माना जाता है कि असलहों की खरीद के बाद सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार सैनिकों के राशन-पानी के साथ ही होता है।
जय-हिन्द!