अपनों की चुनावी साजिश ही ले डूबेगी भाजपा को…
गोंदिया। उधार के सिंदूर से जिंदगी नहीं कटती , यह बात बीजेपी के प्रदेश आलाकमान को आखिरकार समझ में क्यों नहीं आती ? जिला परिषद , पंचायत समिति, नगर परिषद क्षेत्र की गोंदिया विधानसभा सीटों पर सबकी निगाहें है। गोंदिया नगर परिषद में सत्तारूढ़ दल भाजपा किसी भी हाल में आगामी चुनाव जीतना चाहती है। लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव से पहले दो नेताओं की आपसी वर्चस्व की लड़ाई ने राष्ट्रवादी, शिवसेना और कांग्रेस के लिए राजनीतिक लाभ की स्थिति बना दी है।
पिछले गोंदिया विधानसभा चुनाव से लेकर भाजपा के अंदर जो कुछ राजनीतिक घमासान चल रहा है उसके बाद भाजपा के अंदर ही विपक्षी दल खड़ा हो गया है , ऐसे में स्थानीय निकाय चुनावों में अपनों से लड़ती भाजपा के लिए जीत की राह आसान नहीं है।
चल पड़ा, बड़े पदों से इस्तीफे का दौर
जिस नेताजी ने दलबदल कर भाजपा की कमान हथिया ली है उनके नेतृत्व में काम करना कई भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं को सही नहीं लगता लिहाज़ा शहर कार्यकारिणी के बड़े पदों से कार्यकर्ता इस्तीफा दे रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या पार्टी के भीतर के अंतर्कलह को खत्म करने के लिए भाजपा प्रदेश आलाकमान इस मसले का हल निकालने की कोशिश नहीं कर सकता ?
कहा तो यहां तक जा रहा है कि नेताजी के तौर तरीकों, उनके काम करने के अंदाज से अन्य नेताओं की पटरी भी आपस में नहीं बैठ रही है और टिकट बंटवारे के वक्त यह आपसी खींचतान खुलकर सामने आएगी।
सत्ता कैश कराने को , उधार के प्रत्याशी
आगामी नगर परिषद चुनाव को लेकर दलबदलू को तवज्जो दिए जाने से बीजेपी के शहरी कार्यकर्ता खासे नाराज बताए जा रहे हैं ,उनका आरोप है कि सत्ता कैश कराने को नेताजी द्वारा उधार के प्रत्याशी लाए जा रहे हैं। मौजूदा वक्त में भाजपा अपने कर्मठ कार्यकर्ताओं पर विश्वास नहीं करती इसलिए कांग्रेस से पार्टी में आए लोगों को टिकट की दौड़ में शामिल किया जा रहा है। गोंदिया विधानसभा क्षेत्र में सक्षम नेतृत्व की कमी के चलते ऐसा हो रहा है।
भाजपा कार्यकर्ता अपना पूरा जीवन पार्टी में लगा देते हैं लेकिन प्रत्याशी के चयन में ना तो उनकी राय ली जा रही है और ना ही उन्हें कोई महत्व मिलता है। बोलते हैं- भाजपा में संगठन सर्वप्रथम हैं लेकिन हकीकत में इसके उलट हो रहा है।
रवि आर्य