संगठित लूट का गढ़ बना देवरी चेक पोस्ट , मीडिया का कैमरा देखा तो खिड़की बंद कर दी
गोंदिया।महाराष्ट्र -छत्तीसगढ़ सीमा के पास ग्राम सिरपुर स्थित देवरी क्षेत्रीय परिवहन (आरटीओ ) चेक पोस्ट भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित कर रहा है या यूं कहें जांच नाका वाहन चालकों से अवैध वसूली का गढ़ बन गया है।
मुंबई- कोलकाता जैसे महानगरों को जोड़ने वाले राष्ट्रीय महामार्ग क्रमांक-६ के देवरी चेक पोस्ट पर कूपन कार्ड और पावती (रसीद ) के जरिए ऊपरी लेनदेन का खेल धड़ल्ले से चल रहा है नतीजतन राज्य सरकार को माल और सेवा कर ( जीएसटी ) के रूप में करोड़ों रुपए के राजस्व का प्रतिदिन नुकसान हो रहा है।
अधिकारियों ने चेक पोस्ट पर पाल रखी है दर्जनों पंटर्स दलालों की फौज
आर्थिक ठगी का अड्डा बन चुके देवरी चेक पोस्ट पर आपके वाहन के सभी दस्तावेज सही होने के बावजूद बिना नट दिए आपका वाहन नहीं गुजरेगा , अधिकारियों ने अवैध वसूली हेतु खिड़की के निकट अपने दर्जनों पंटर्स ( गुर्गे ) पाल रखे हैं पैसे की मांग को मानने से इनकार करने वाले वाहनों को कोई न कोई बहाना बनाकर अड़ा दिया जाता है।
यहां से प्रतिदिन हजारों की संख्या में गुजारने वाले छोटे बड़े मालवाहक वाहनों से 50 रुपए से लेकर 1000 तक की एंट्री ली जा रही है इसके अलावा चेक पोस्ट अधिकारियों से मिलीभगत कर कार्ड ( एंट्री पास ) बनाकर महीने के हिसाब से प्रति कार्ड 5000 से 10000 दर से बेचकर अवैध वसूली की जा रही है , कार्ड दिखाओ.. पर्ची दिखाओ.. चले जाओ ?
इस राष्ट्रीय महामार्ग क्रमांक 6 पर बड़े-बड़े ट्रेलरों का आवागमन नियमित रहता है बड़े वाहनों में लदे सामान की लंबाई , ऊंचाई और चौड़ाई निर्धारित होती है ।
ओवरलोडिंग , इंट्री के अलावा बड़े-बड़े ट्रेलरों से भी हजारों रुपए लेकर छोड़ने का गोरखधंधा जारी है।
गौरतलब है कि अधिकांश राज्यों में जीएसटी लागू होने के बाद से ही परिवहन चौकियों को समाप्त कर दिया जा चुका है ऐसे में महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ की राज्य सीमा पर बने ट्रांसपोर्ट विभाग के देवरी चेकपोस्ट को बंद करने के आदेश क्यों नहीं जारी किए जा रहे ?
बड़ा सवाल यही है कि इस नेशनल हाईवे क्रमांक-6 पर ओवरलोडिंग वाहनों की वजह से हर साल होने वाली दुर्घटनाओं और बेगुनाहों के मौत की जिम्मेदारी आखिरकार कौन तय करेगा ?
चेक पोस्ट अधिकारियों द्वारा दलालों की मदद से की जा रही है अवैध वसूली की वजह से ट्रक चालकों को मानसिक तौर पर परेशानीयों का सामना करना पड़ता है , लिहाज़ा अब वे खुलकर बोलने लगे हैं।
रवि आर्य