गोंदिया। मराठी समाचार पत्र ‘ दर्पण ‘ के जनक आचार्य बाल शास्त्री जांभेकर की स्मृति में प्रेस ट्रस्ट ऑफ गोंदिया द्वारा शुक्रवार 6 जनवरी को ‘ पत्रकार दिन ‘ का कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें ” प्रिंट मीडिया व समाचार पत्रों के समक्ष वर्तमान चुनौतियां ” इस विषय पर उपस्थित मुख्य अतिथियों और साहित्यकार वक्ताओं तथा पत्रकारों ने अपनी बात रखी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, नगर परिषद के प्रशासनिक अधिकारी व मुख्य अधिकारी करण चौहान ने कहा- विज्ञापन अखबार का ऑक्सीजन है , पहले जाहिरात दफ्तर तक पहुंचती थी आज विज्ञापन के लिए जाना पड़ता है डिजिटल मीडिया आने के बाद यह चुनौतियां बढ़ी है , इसके साथ ही कागज स्याही महंगी होने से प्रिंटिंग कॉस्ट भी बढ़ी है और विज्ञापनों में कमी भी आई है सभी चुनौतियों के बावजूद मैं मानता हूं न्यूज़पेपर की जगह कोई नहीं ले सकता ? कितनी भी कठिनाई आए यह समाचार पत्र ऐसे ही अपनी ताकत से जिंदा रहेंगे और समाज में जनजागृति का निर्माण करते ही रहेंगे , क्योंकि खबरों की विश्वसनीयता के लिए पाठकों के लिए अखबार जरूरी है और गोंदिया के पत्रकारों ने खबरों की विश्वसनीयता कायम रखी हुई है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तथा जिला सूचना अधिकारी रवि गीते ने अपने विचार व्यक्त करते कहा- पाठकों तक सही सटीक और विश्वसनीय जानकारी अखबारों के माध्यम से ही पहुंचती है, खबरिया चैनलों , यूट्यूब , पोर्टल की चुनौतियों से आगे आने वाला युग डिजिटल मीडिया से आगे चैट जीपीटी का है जिसमें सॉफ्टवेयर के माध्यम से एक व्यक्ति लाखों लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में सक्षम होगा लेकिन अखबारों के सामने लाख चुनौतियां आ जाएं लेकिन अखबार खत्म नहीं होंगे।
अखबार की आत्मा विज्ञापन है लेकिन आज डिजिटल युग में अखबारों को जरूर विज्ञापन कम हुए हैं लेकिन उनकी विश्वसनीयता कम नहीं हुई। कागज की जगह कोई नहीं ले पाया अखबार चलता ही रहेगा।
अखबार , लोकतंत्र के सजग प्रहरी
प्रेस ट्रस्ट ऑफ गोंदिया के सचिव रवि आर्य ने कहा- अखबार लोकतंत्र का सजग प्रहरी है , आजादी दिलाने में प्रिंट मीडिया की अहम भूमिका रही है।
वर्तमान डिजिटल मीडिया दौर एक प्रतिस्पर्धा का युग है , दोपहर की खबर के लिए अगली सुबह का इंतजार करने को पाठक राजी नहीं है उसे तो फटाफट खबर चाहिए , वह भी वीडियो फुटेज के साथ चाहिए , चटपटी चाहिए और मुफ्त भी चाहिए ।
उस गतिशीलता और मेहनत के साथ जो पत्रकार आज काम करने में सक्षम है बस वही इस फील्ड में टिक पाया है।
कोविड का सबसे बड़ा दंश अखबारों ने झेला है , दफ्तरों के एक्सपेंसेस और कर्मचारियों के वेतन में कटौती हुई है जबकि महंगाई बढ़ी है आज आधे स्टॉफ पर पूरे काम का बोझ है ।
शासन से कोई अनुदान योजना अथवा पेंशन सुविधा भी पत्रकारों को नहीं मिलती इन संघर्षों के बावजूद पत्रकार साथियों की ना कलम झुकी है , ना डिगी है और ना ही बिकी है वह अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ करते आ रहे हैं और यह सफर निरंतर जारी रहेगा।
वरिष्ठ पत्रकार मानिक गेडाम बोले- पत्रकार एक लेखक ही होता है जो अपने नजरिए से खबर बनाता है।
राजा बोला रात है, रानी बोली रात है, मंत्री बोला रात है, संतरी बोला रात है यह सुबह सुबह की बात…!!
मीडिया घरानों के दबाव और विषम परिस्थितियों एवं सारे बंधनों के बीच पत्रकार अपने दायित्व का निर्वहन करता है।
जिला आपत्ती व्यवस्थापन अधिकारी राजन चौबे ने कहा- कागज स्याही महंगी होने से अखबारों की प्रिंटिंग कॉस्ट बढ़ी है , विज्ञापनों में कमी आई है लेकिन कितना ही कंप्यूटर युग क्यों ना आ जाए न्यूज़पेपर की जगह कोई नहीं ले सकता , सुबह के पेपर का इंतजार आज भी किया जाता है।
कितनी भी कठिनाई आए यह समाचार पत्र ऐसे ही अपनी ताकत से जिंदा रहेंगे।
अतुल दुबे बोले- चैनलों पर कई खबरें आती है लेकिन लोग तब तक उस पर विश्वास नहीं करते जब तक दूसरे दिन उसे अखबार में पढ़ ना लें।
अखबार का ऑक्सीजन विज्ञापन है चाहे वह शासकीय हो या कमर्शियल ? हां इसमें जरूर कमी आई है जो चिंता का विषय है।
चंद्रकांत खंडेलवाल बोले- अखबार की छपाई में खर्च बढ़ा है तथा छोटे अखबारों के सामने खुद को स्थापित रखने हेतु चुनौतियां और मुश्किलें अधिक हैं।
कवि रमेश शर्मा ने- हाइब्रिड सीताफल और देसी सीताफल का सही सुंदर और सटीक उदाहरण प्रस्तुत करते प्रिंट मीडिया के समक्ष मौजूदा संघर्षों पर अपनी बात रखते हुए कहा चुनौती से लड़ना ही जिंदगी है।
पत्रकार कवि शशी तिवारी ने- जागते रहिए और जगाते रहिए वाक्य का प्रयोग करते हुए 4 लाइनों में कहा-धरा बेच देंगे ..गगन बेच देंगे , कली बेच देंगे … चमन बेच देंगे ।
कलम के पुजारी अगर सो गए तो.. वतन के पुजारी , वतन बेच देंगे !
पत्रकार- शिक्षाविद लेखक समाज सुधारक भी है
लेखिका सुषमा यदुवंशी ने कहा- पत्रकार शिक्षाविद लेखक समाज सुधारक भी है, करोना काल ने जो अखबार जगत को तकलीफें दी है हम सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए आगे बढ़ेंगे तो यह सारी चीजें गौंण हो जाएंगी , डिजिटल मीडिया ने चुनौती दी है लेकिन समाचार पत्रों का कोई सानी नहीं है।
शिक्षिका लेखिका कवित्री तमन्ना मतलानी ने कहा- वो सूर्य ही क्या , जिसमें सूर्य ग्रहण ना हों, वह रात ही क्या जिसमें अमावस्या की रात ना हो , वह कामयाबी ही क्या जिसमें संघर्षों की तपन ना हो और वह जिंदगी ही क्या जिसमें चुनौतियां ना हो ?
पत्रकार कलम और वाणी के सहायता से समस्त जनता को जागरूक करते आ रहे हैं और इसका इतिहास साक्षी रहा है।
छैल बिहारी अग्रवाल ने कहा- समाचार पत्र पढ़े बिना चाय अधूरी रहती है इसलिए अखबार भी जरूरी है और समाज में जनजागृति हेतु पत्रकार भी जरूरी है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष तथा प्रेस ट्रस्ट के अध्यक्ष अपूर्व मेठी ने कहा- तमाम चुनौतियों के बावजूद अखबारों ने अपनी विश्वसनीयता कायम रखी है ।
कार्यक्रम का कुशल मंच संचालन संस्था उपाध्यक्ष जयंत शुक्ला द्वारा किया गया तथा अंत में आभार आशीष वर्मा ने माना।
प्रेस ट्रस्ट ऑफ गोंदिया की ओर से अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए गए ।
आयोजन के सफलतार्थ मुकेश शर्मा , रविन्द्र तुरकर , दीपक जोशी , योगेश राऊत , संजय बापट , जयंत मुरकुटे सहित प्रेस ट्रस्ट ऑफ गोंदिया के समस्त सदस्यों ने अथक योगदान दिया।
रवि आर्य