बीजेपी की फजीहत ना करा दें, दलबदलू
गोंदिया। मेडिकल साइंस ने भले ही कितनी तरक्की कर ली हो किन्तु उसके पास भी उन रहस्यमयी नेताओं के ब्रेन मेपिंग के मर्ज का इलाज नहीं है जो अपने सियासी फायदे के लिए चुनाव आते ही पलटी मार जाते है।
राजनीति के कैलेंडर में कई तरह के मौसम होते हैं, जब चुनावी बसंत होता है तो दलबदलू नेता बरसाती मेंढक की तरह इधर से उधर उछल कूद मचाते दिख जाते है।
देखिए ध्यान से गोंदिया सीट पर, आप भी इस की खुमारी को महसूस कर पाएंगे..
बीजेपी को 38416 की लीड ने आंखों की नींद ओझल कर दी
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को गोंदिया विधानसभा सीट से 38 हजार 814 वोटों की बढ़त मिली, बस यहीं से नेताजी के आंखों से नींद ओझल हो गई और उन्होंने तभी से बीजेपी प्रवेश का जुगाड़ लगाना शुरू कर दिया। उनके मन में बस एक ही कसक है ऐन-केन मंत्री पद हासिल करना? जो कि मौजूदा कांग्रेस के देशव्यापी हालत को देखर कदाचित संभव नहीं, लिहाजा उन्होंने नए ठिकाने की तलाश शुरू कर दी और आज 30 सितबंर के दोपहर विधायक गोपालदास अग्रवाल ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी इन्हें कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने के संदर्भ में पत्र फैक्स किया और विधान सभाध्यक्ष हरीभाऊ बागड़े इन्हें पत्र भेजकर अपनी विधानसभा सदस्यता से इस्तिफा की जानकारी दी है। कुल मिलाकर स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ताओं के लाख विरोध के बावजूद भी वे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के हाथों भाजपा में प्रवेश करने में कामयाब हो गए। उनके साथ गोंदिया जिला परिषद अध्यक्षा सीमाताई मड़ावी ने भी कांग्रेस की सदस्यता छोड़ आज भाजपा में प्रवेश कर लिया।
गोंदिया बीजेपी पदाधिकारियों ने दी तीखी प्रतिक्रिया
27 वर्षों की राजनीति के बाद किसी पार्टी मे बात बिगड़ने पर दूसरी पार्टी में जाने के लिए जुगलबंदी करने वाले इन दलबदलू नेताओं का मकसद चुनाव जीतकर लाल बत्ती हासिल करना तथा अकूत दौलत इक्कठे कर खुद का तथा अपने बच्चों का राजनीतिक भविष्य संवारना होता है, और एैसे झट से पलटी मार लेने वाले नेताओं से जनता (वोटरों) को जागरूक होना बेहद जरूरी है, एैसी तीखी प्रतिक्रिया अब स्थानीय बीजेपी नेताओं ने देते आगे कहा- कल तक महंगाई-बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर कटाक्ष करते हुए पीएम से लेकर सीएम को मंच से पानी पी-पी कर कोसने वाले नेता द्वारा अब भगवा वस्त्र धारण कर लेने से या फिर यूं कहें उसके बीजेपी रूपी गंगा में डूबकी लगाने से अब सारे पाप धुल चुके है। आयातित नेता के भाजपा प्रवेश के बाद स्थानीय बीजेपी के समर्पित कार्यकर्ताओं का रूख क्या होगा? इस पर कल 1 अक्टूबर मंगलवार की दोपहर 12 बजे एक बैठक जलाराम लॉन में आयोजित की गई है।
संभावना व्यक्त की जा रही है कि, विनोद अग्रवाल का इशारा मिलते ही ये कार्यकर्ता कोई बड़ा निर्णय ले सकते है जो सामूहिक इस्तीफे की स्थिति की ओर इशारा करता है।
बगावत के मौसम में रिश्तों का बदलाव झमाझम
दशकों से दरी, चद्दर, माइक लगाकर एक समर्पित कार्यकर्ता की तरह भाजपा की सेवा करने वाले पूर्व जिला परिषद उपाध्यक्ष विनोद अग्रवाल फिलहाल बगावत के नाम पर मुंह फुलाए बैठे है और टिकट हाथ से फिसल जाने पर उनके आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली है। अब यह अश्रु धारा किसकी राजनीति बहा ले जाएगी? यह तो तभी तय होगा जब विनोद अग्रवाल बीजेपी आलाकमान से बेवफाई के लिए दो-दो हाथ करने का पक्का मन बना लेंगे।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि, इसकी संभावनाएं बेहद कम है क्योंकि विनोद अग्रवाल व्यापारी वर्ग से आते है तथा उनका परिवार ठेकेदारी व्यवसाय से जुड़ा हुआ है जिसका कि, करोड़ों रूपया बिल के रूप में शासन की ओर बकाया पड़ा है जो 2-4 वर्ष भी अगर अटक गया तो बड़ी आर्थिक क्षति दे जाएगा इसलिए वे नामांकन तो दाखिल करेंगे और फार्म वापस न लेने का शोर-शराबा भी खूब होगा लेकिन वे अंत में उम्मीदवारी वापस ले सकते है? या फिर चुनाव समर में दबाव पड़ने पर सरेंडर भी कर सकते है? इस तरह के कयास भी लगाए जा रहे है।
हालांकि उनके समर्थकों का कहना है कि, चुनाव को निर्णायक मोड़ पर लाने की क्षमता विनोद अग्रवाल में है और बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ने से त्रिकोणीय मुकाबले में उनकी ही जीत होगी, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि, वे निर्दलीय लड़ेंगे या नाना पटोले से हुई मुलाकात के बाद वे कांग्रेस (हाथ) का दामन थाम लेंगे, यह भी अभी तय नहीं है।
विशेष उल्लेखनीय है कि, लगभग आधा दर्जन वोट कटुआ उम्मीदवार भी छोटे-छोटे पार्टियों का टिकट लेकर भाग्य आजमाने की तैयारी कर चुके है, अब इनके रणभूमि में उतरने से कौन से उम्मीदवार के कितने वोट बैंक में सेंध लगेगा? यह देखना दिलचस्प होगा।
…रवि आर्य