नागपुर: सामान्यतः बच्चों में होने वाले गोवर और रूबेला नामक जानलेवा बीमारी से बचाव के लिए केंद्र सरकार ने विशेष टीकाकरण अभियान शुरू किया है। देश भर के साथ यह अभियान नागपुर में भी शुरू है मगर मुस्लिम बहुल इलाक़ों में इस अभियान के क्रियान्वनयन में ख़ासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अशिक्षा और जानकारी के आभाव में माता-पिता बच्चों के टीकाकरण के लिए सीधे माना कर दे रहे है।
ज़्यादा दिक्कत उर्दू स्कूलों में है जहाँ टीकाकरण का प्रतिशत अन्य स्कूलों की तुलना में काफ़ी कम है। अकेले गांधीबाग ज़ोन में विभिन्न स्कूलों में पढ़ने वाले मुस्लिम समुदाय के बच्चो की संख्या 10 हज़ार के करीब है। 27 नवंबर से टीकाकरण अभियान की शुरुवात हो चुकी है और अब तक महज 25 फ़ीसदी बच्चो का ही टीकाकरण हो पाया है।
गांधीबाग जोन के मेडिकल ऑफिसर डॉ मोहम्मद ख़्वाजा मोईनुद्दीन के मुताबिक वह बच्चों के माता-पिता और परिवार को समझा कर थक चुके है। मगर वह सुनने को तैयार नहीं है। मोईनुद्दीन का कहना है कि दरअसल मुस्लिम समाज में टीकाकरण को लेकर कई तरह की भ्रांतिया है। जिसे दूर करने का उन्होंने काफ़ी प्रयास किया। जो समझ गए उन्होंने टीकाकरण करवा लिया लेकिन जिन्होंने अपने बच्चों का टीकाकरण नहीं कराया है वह बात सुन-समझ जरूर रहे है लेकिन टीकाकरण के लिए तैयार नहीं हो रहे है।
नागपुर में टीकाकरण अभियान को कई चरणों में पूरा करने का लक्ष है। अधिक ध्यान स्कूलों में दिया जा रहा है क्यूँकि यहाँ 5 से 15 वर्ष के बच्चे आसानी से उपलब्ध हो जायेगे। 9 महीने से लेकर 15 वर्ष के बच्चों का टीकाकरण किया जाना है। इसके बाद ग्राउंड में जाकर टीकाकरण किया जाने वाला है अकेले गांधीबाग जोन में ही 148 स्कुल है जिनमे हजारों बच्चे पढ़ते है।
क्या है भ्रांतिया ?
डॉ मोहम्मद ख़्वाजा मोईनुद्दीन ने बताया कि जो लोग बच्चों के टीकाकरण के लिए तैयार नहीं है उनके मन में कई तरह के सवाल है। उनके पास आने वाले कई लोगों ने कहाँ की इस टीके को लगाकर बच्चे बीमार हो रहे है,इसे लगाने के उनकी प्राकृतिक तौर पर होने वाली वृद्धि बाधित होगी या फिर वह नपुंसक हो जायेगे।
मोईनुद्दीन ने समाज के लोगो ने इस तरह की भ्रांतियों में न पड़ने की अपील की है उनका मानना है कि टीकाकरण को लेकर लोगो के दिमाग में उठ रहे सवाल अशिक्षा का नतीजा है मुस्लिम समाज में जो परिवार उच्च शिक्षित है वह खुद ही अपने बच्चों का टीकाकरण करवा रहे है। सोशल मीडिया भी बच्चों के माँ-बाप और परिवार के मन में गलत प्रभाव डाल रहा है। इसमें माध्यम से मिलने वाली सूचनाओं पर यकीन किया जा रहा है जबकि यह महज अफ़वाह है।