Published On : Fri, Apr 11th, 2025
By Nagpur Today Nagpur News

हाई कोर्ट ने केंद्रीय स्टील मंत्रालय तथा मॉइल को जारी किया नोटिस

महिला कर्मचारियों के चाइल्ड केअर लीव पर कैंची
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नागपुर. केंद्र सरकार की ओर से महिला कर्मचारियों को वेतन सहित बाल देखभाल अवकाश (सीसीएल) का प्रावधान किया गया था. यह पहले बच्चे की 18 वर्ष आयु तक उपलब्ध था. केंद्र सरकार की ओर से इस नीति में 25 मार्च 2023 को संशोधन किया गया. संशोधित नीति के अनुसार न तो छुट्टी अवधि के लिए वेतन प्रदान किया जाएगा और ना ही इसे 18 वर्ष की आयु तक उपलब्ध कराया जाएगा. इसमें भी 5 वर्ष की कटौती कर दी गई. केंद्र की इसी नीति को चुनौती देते हुए मॉइल जनशक्ति मजदूर संघ की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने केंद्रीय स्टील मंत्रालय, माइल के सीएमडी आदि को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने के आदेश दिए.

याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधि. अरविंद वाघमारे ने कहा कि वर्ष 2008 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों एवं प्रशिक्षण तथा सार्वजनिक उद्यम विभाग के माध्यम से कामकाजी माताओं के लिए चाइल्ड केअर लीव (सीसीएल) की नीति लागू की थी. जिसमें यह तथ्य शामिल था कि बच्चे को जन्म देने के लिए दिए जानेवाले मातृत्व लाभ पर्याप्त नहीं थे. यहीं कारण था कि 18 वर्ष आयु से कम बच्चों के पालन-पोषण और देखभाल की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए अलग नीति बनाकर इसे लागू की गई. यह नीति 2 बच्चों तक सीमित रखी गई थी. 27 अगस्त 2011 में कामकाजी महिला-माताओं के लिए बाल देखभाल अवकाश (सीसीएल) हेतु उक्त नीति को केन्द्रीय सिविल सेवा नियमों में नियम 43-सी के तहत शामिल कर दिया गया।

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छीन लिए गए पदोन्नति के अधिकार

अधि. वाघमारे ने कहा कि केंद्र सरकार ने आश्चर्यजनक रूप से 18 वर्ष से कम आयु के नाबालिग की आयु को घटाकर 5 वर्ष से कम कर दिया. बाल देखभाल अवकाश (सीसीएल) बिना छुट्टी के दिया गया था तथा केन्द्र सरकार और सीसीआर नियमों के अनुसार उक्त अवधि को पहले 365 दिनों के लिए पूर्ण वेतन अवधि माना गया था. जबकि अन्य 365 दिनों को 80% वेतन के साथ माना गया था. इस तरह से चाइल्ड केअर लीव (सीसीएल) की कुल अवधि 730 दिन बताई गई थी. अब 730 दिनों की पूरी सीसीएल अवधि को गैर-कार्यरत बना दिया है. जो गैरकानूनी है. सीसीएल की अवधि को गैर-कार्यरत महिलाओं-माताओं के लिए मानकर मॉयल प्रबंधन ने उनसे सभी लाभ और पदोन्नति के अधिकार छीन लिए हैं. अत: इसे गैरकानूनी करार देते हुए रद्द करने के आदेश देने का अनुरोध हाई कोर्ट से किया गया. सुनवाई के बाद अदालत ने उक्त आदेश जारी किया.

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