नागपुर: सोनेगांव तालाब का नेचर ऑफ़ वर्क बदलने की नागपुर महानगर पालिका द्वारा शुरू प्रक्रिया पर हाईकोर्ट ने स्टे लगा दिया है। मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ की जस्टिस भूषण धर्माधिकारी और स्वप्ना जोशी की दोहरी पीठ के इस फ़ैसले के बाद एनएमसी अब इस मामले में किसी भी तरह की प्रक्रिया नहीं कर सकतीं। महानगर पालिका की मिल्कियत वाले सोनेगांव तालाब का नेचर ऑफ़ वर्क बदलकर तालाब के मालिक होने का दावा करने वाले दो दावेदारों को टीडीआर के माध्यम से मुआवजा दिलाने का प्रयास शुरू था । इसके लिए मनपा द्वारा रिजोलुशन भी लाया गया। 1974 में सोनेगांव तालाब की जमीन को नागपुर के जिलाधिकारी कार्यालय द्वारा डॉ रेखा रानी भिवापुरकर और डॉ सुधा सुतारिया को ऑक्शन के जरिए बेचा गया था। तालाब अपनी यथास्थिति में रहे इसके लिए आरटीआई कार्यकर्त्ता हरीश नायडू ने अगस्त 2015 में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। इसी मामले की सुनवाई के दौरान अदालत द्वारा बुधवार को यह आदेश जारी किया गया। फ़िलहाल मामले की सुनवाई जारी है।
तालाब की जमीन के खरीददारों ने चूँकि ऑक्शन में जमीन खरीदी थी। इसलिए वह जमीन को अपने मिल्कियत की बताते हुए, मुआवज़े या अन्य किसी जमीन की माँग कर रहे है। तालाब की जमीन के बदले मुआवजा करीब 700 करोड़ से ज्यादा का है। इसलिए मनपा टीडीआर के माध्यम से खरीदारों को अन्य कही जगह उपलब्ध कराने की कोशिश में थी। जिस पर खरीददार विकासकार्य कर सके। तालाब की जमीन के बदले टीडीआर जारी नहीं किया जा सकता। इसके लिए मनपा का प्रयास था की जमीन का नेचर ऑफ़ वर्क बदल दिया जाए जिससे की टीडीआर जारी किया जा सके मनपा द्वारा इस काम के लिए 37 एमआरटीपी एक्ट के अंतर्गत प्रयास शुरू था। लेकिन याचिकाकर्ता के वकील द्वारा मनपा की इस प्रक्रिया पर आपत्ति दर्ज कराई गई।
याचिकाकर्ता की तरफ से अदालत में पैरवी कर रहे वकील अवधेश केसरी के अनुसार किसी भी तरह से तालाब का नेचर ऑफ़ वर्क नहीं बदला जा सकता। हमने अदालत में इस संबंध में दलील रखी जिसे मान्य किया गया और प्रक्रिया पर रोक लगाई गई। केसरी के मुताबिक तालाब शहर की पहचान है इसे बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया जायेगा। मामले की सुनवाई जारी है आगे हम किसी किसी भी तरह का मुआवजा नहीं देने को लेकर अदालत में अपनी दलील रखेंगे।