नई दिल्ली/नागपुर: वैसे सांसद पहले भी निलंबित किए जाते रहे हैं, लेकिन आज की घटना नए सिरे से बहस की आकांक्षी है। आज सोमवार25जुलाई को कांग्रेस के 6 सांसदो को अध्यक्ष के ऊपर कागज के पर्चे फेंकने के आरोप में 5 दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया। सांसदों ने निःसंदेह गलत किया, लेकिन क्या निलंबन ही अंतिम उपाय है उन्हें अनुशासित करने की?और,जानना ये भी जरूरी कि आखिर ऐसी घटनाएं होती ही क्यों हैं?इसी बहाने ये भी जान लें कि लोकतंत्र के पवित्र मंदिर में अनुशासनहीन पुजारी प्रवेश कैसे पा जाते हैं?
ध्यान रहे ,विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में 790 सांसद 125 करोड़ की आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में जब सांसद ही अनुशासनहीन आचरण करें, तो निश्चय ही देश का प्रतिनिधित्व करने की पात्रता इनमें नहीं है।ये कोई अनुकरणीय आचरण पेश कर ही नहीं सकते।फिर,संसद में इनकी मौजूदगी का औचित्य?शून्य!बिलकुल शून्य!!तब इनसे पिंड छुड़ाने के उपाय?
पहले घटना का पार्श्व।संसद में बहस चल रही थी देश में कथित गौ रक्षकों की गुंडागर्दी और उससे उत्पन्न भय के राष्ट्रीय माहौल पर।कुछ सदस्यों ने बोलने के सवाल पर हंगामा शुरू कर दिया। ।उन्होंने अध्यक्ष और मंत्री के ऊपर कागज फाड़ उनके गोले बना फ़ेंकने शुरू कर दिये।अराजक माहौल।निर्वाचित सांसदों का निंदनीय आचरण!अब सवाल कि ऐसी स्थिति क्यों पैदा होती है और कि निराकरण के क्या उपाय हैं? मालूम हो अभी कुछ दिनों पूर्व ही राज्यसभा में बोलने का कम समय दिये जाने के विरोध में बसपा नेता मायावती ने राज्यसभा की सदस्यता ही त्याग दी।संसदीय कार्यप्रणाली पर सवाल तब भी खड़े हुए थे।आज की घटना ने त्वरित बहस और निराकरण की जरूरत को चिन्हित किया है।
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने निलंबन की कार्रवाई को उचित बताते हुए बिलकुल ठीक टिप्पणी की है कि ऐसे सांसद बच्चों, युवाओं का आखिर क्या मार्गदर्शन करेंगे?महाजन गलत नहीं।जब संसद में आपराधिक पार्श्व के लोग प्रवेश पाने लगें तो ऐसी स्थिति का पैदा होना कोई आश्चर्य पैदा नहीं करता।आंकड़े मौजूद हैं कि प्रायः सभी दलों के दर्ज़नो दागी संसद में विषेशाधिकार प्राप्त सांसद के रूप में उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।अब सवाल कि ऐसे लोगों को संसद में प्रवेश से कैसे रोका जाये?चूंकि, संविधान प्रदत्त सभी के लिए समान अवसर के कारण किसी कानून के अंतर्गत इस पर रोक संभव नहीं, सभी राजदलों को विकल्प ढूंढने होंगे।1997 में स्वयं संसद ने पहल की थी।स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती पर संसद के विशेष अधिवेशन में दागियों के प्रवेश पर चिंता व्यक्त की गई थी।शुरुआत स्वयं राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में की थी।प्रतिबंध संबधी कानूनी विवशता के आलोक में सर्वसम्मति से संसद ने एक संकल्प पारित किया कि सभी राजदल चुनावों में किसी आपराधिक पार्श्व के व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाएंगे।लेकिन क्या हुआ?वही ढाक के तीन पात!संसद में सर्वसम्मत पारित संकल्प को कूड़ेदान में फेंक अगले ही चुनाव में प्रायः सभी राजदलों ने आपराधिक पार्श्व के लोगों को टिकट दिए।ऐसे में अगर लोकसभा अध्यक्ष सदस्यों को ले कर ‘मार्गदर्शन’ संबंधी पीड़ा व्यक्त करती हैं,तो रुदन ही तो किया जा सकता है।
अंत में, अध्यक्ष/सभापति की कार्यप्रणाली!पूरे सम्मान के साथ ये कहने को विवश हूँ कि अनेक बार वे सदन के संचालन में पक्षपात करते देखे जा सकते हैं।जबकि इनसे निष्पक्षता अपेक्षित है।पहले भी ऐसा होता था, आज भी हो रहा है।पीठासीन अधिकारी भी इस बिंदु पर आत्मावलोकन करें !
—By S N Vinod