Published On : Fri, Apr 30th, 2021

डर लगता हैं तो हमेशा डरानेवाले को लगता हैं- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी

Advertisement

नागपुर : डर लगता हैं तो डरानेवाले को लगता हैं यह उदबोधन व्याख्यान वाचस्पति दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने विश्व शांति ऋषभोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन धर्मसभा में दिया.

आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने ओजस्वी वाणी में कहा बुरे विचार, नकारात्मकता विचार, अशुभ विचार नहीं सुने, ना पढ़े, ना देखे. डर लगता हैं तो डरानेवाले को लगता हैं. जितना अधिक आतंकवादी होता है वह एक जगह नहीं रहता. सर्प एक जगह बिल में नहीं रहता हैं उसको डर रहता हैं. जो डराते हैं, भय पैदा करते उसे हमेशा डर रहता हैं. सबको अभय देनेवाला, निर्भय रहनेवाला उसको डर नहीं लगता, भय के वातावरण से बाहर निकल कर आये, भय ही सबसे बड़ा कारण हैं. शांतिधारा महान हैं, शांतिधारा मंत्र हैं, मंत्रों का सार हैं. मंत्रों के बीजाक्षरों से संकट को, बाधा को दूर करते हैं. हमेशा खुशियों के फूल, प्रेम के फूल बांटते चलें. यदि हम स्नेह के फूल बांटेंगे, समता के फूल बांटेंगे यही आनंद लौटकर आयेंगा. आप जितने लोगों का भला करेंगे उतना आपका भला होंगा. जितनी प्रार्थना करेंगे वह आपके लिए मंगलकारी होगी, जीवन हताश नहीं होता.

Gold Rate
Wednesday 19 March 2025
Gold 24 KT 88,900 /-
Gold 22 KT 82,700 /-
Silver / Kg 101,100 /-
Platinum 44,000 /-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

जो पूजा कर रहे हैं, जाप कर रहे हैं, विधान कर रहे हैं, जितने प्रतिपालक हैं, अपने घर का पालन कर रहे हैं, अपने समाज का पालन कर रहे हैं, अपने गांव, जिला, शहर, प्रांत, अपने देश, राष्ट्र, विश्व का पालन कर रहे हैं, सामान्य मुनिराज, सभी धर्मात्मा राजाओं के दुख शांत हो. अपने आप पर भरोसा रखें, ऐसा भरोसा बनाकर रखें. मैं प्रसन्न हूं, स्वस्थ हूं, मेरा परिवार प्रसन्न हैं, मेरा परिवार स्वस्थ हैं, मेरा परिवार सुखी हैं यह चिंतन ध्यान करेंगे तो सुख पा लेंगे. जो सोचेंगे वह हो जाएंगा. आपके मन से भय निकाल लो. सर्वश्रेष्ठ पर्याय मनुष्य पर्याय हैं यहां से चारो गति खुली रहती हैं.

हमारी भावना जहां से जुड़ जायेगी वहां हमारा धर्म शुरू हो जायेगा- आचार्यश्री प्रसन्नऋषिजी
संसार का प्रत्येक प्राणी दुखी हैं, सुख चाहता हैं परंतु सुख का मार्ग नहीं अपनाता हैं और दुख के मार्ग पर जाकर सुख खोजता हैं. सच्चा सुख क्या हैं? सच्चा सुख अपने आप में हैं. जहां हम बैठे हैं वहां धर्म हैं और इस कोरोना महामारी काल में राज्य के सभी मंदिर बंद हैं, गुरुद्वारे बंद हैं, मस्जिदे बंद हैं. बंद नहीं हुए घर में बैठकर धर्म हो सकता हैं. हमारी भावना जहां से जुड़ जायेंगी वहां हमारा धर्म शुरू हो जायेगा. कोरोना महामारी का डटकर सामना करे और धर्म की आराधना, अर्हंत भगवान की आराधना करने से हमारी सारी बीमारियां दूर होती हैं. हमारे अशुभ कर्म, पाप कर्म का उदय आया हैं इस कारण कोरोना महामारी फैल गई हैं. जितने जिसके संपर्क में आ रहे हैं एक दूसरे से महामारी फैल रही हैं. हम जितना घर में बैठकर आराधना करेंगे उतना अच्छा हैं. हम भाग्यशाली हैं घर में बैठकर हमें तीर्थंकरों के अभिषेक पाठ देखने मिल रहा हैं. हमें गुरुओं की वाणी सुनने मिल रही हैं.

भगवान महावीर के शासन में हम जी रहे हैं. भगवान महावीर ने पांच नाम सार्थक किए है उनमें एक नाम सार्थक किया सन्मति भगवान. सन्मति भगवान से मेरी मति सन्मति हो, मेरी मति सन्मति हो जायेगी निश्चित ही मेरे जीवन का कल्याण हो जायेगा. इस महामारी में हमें बचना हैं और हमारा जीवन सुरक्षित रखना हैं. जीवन हैं तो धर्म बचेगा, हम हैं तो धर्म बचेगा. धर्म साधना करें. घर से बाहर न जायें. साधु संतों का ध्यान रखना आपका कर्तव्य हैं. श्रावक साधु संतों का ध्यान नहीं रखेंगे तो उनकी चर्या किस प्रकार होगी. साधु संतों का व्यवस्थित आहार हो ऐसा कर्तव्य करे, साधु संतों के साथ अपना भी ध्यान रखें. धर्मसभा का संचालन स्वरकोकिला गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने किया.

Advertisement
Advertisement