Published On : Wed, Apr 8th, 2015

यवतमाल : ग्राहक मंच अध्यक्षों को भी जज का मिलेगा वेतन


यवतमाल के विजयसिंग राणे ने 7 वर्ष लंबी लढ़ाई का नतीजा

नागपुर ग्राहक मंच के थे 2 बार अध्यक्ष

सवांददाता /बीरेंद्र चौबे

ADV. Vijaysinh )
यवतमाल। मुंबई उच्च न्यायालय के नागपुर खंडपीठ ने जिला ग्राहक मंच के अध्यक्षों को भी अब जज के अनुसार वेतन श्रेणी देने का मैट का निर्णय कायम रखा है. जिससे राज्य के सभी जिलों के विद्यमान ग्राहक अध्यक्ष और पूर्व अध्यक्षों को इस निर्णय का लाभ होंगा. राज्य के लगभग 90 अध्यक्ष इससे लाभान्वित होंगे. इसके लिए यवतमाल निवासी तथा नागपुर जिला ग्राहक मंच के अध्यक्ष के दो बार अध्यक्ष रह चुकें विजयसिंग राणे ने 7 वर्ष की लंबी लढ़ाई लड़ी.

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उन्होंने बताया कि, जिला ग्राहक मंच के अध्यक्षों को जो नियुक्ति पत्र दिया जाता है, उसमें ग्राहक संरक्षण नियम 2000 नियम क्र. 3 (1) के अनुसार ऐसा प्रावधान है कि जिला सत्र न्यायाधीश के वेतनश्रेणी के  समान वेतन जिला ग्राहक मंच के अध्यक्षों को भी दिया जाना चाहिए, कई बार पत्र लिखकर इस नियम से जज के अनुसार वेतन देने की मांग की गई थी, मगर कोई लाभ नहीं हुआ. जिससे सूचना अधिकार  कानून के तहत जानकारी मांगी गई. उसका जवाब 9 जनवरी 2008 को राज्य सरकार ने लिखित रूप से दिया. उसमें माना कि, जिला ग्राहक मंच के अध्यक्षों को वेतन कम दिया जा रहा है, मगर जल्दी ही दिया  जाएंगा. 6 वर्षों तक इसी प्रकार उन्होंने टालमटोल का रवैया अपनाया. जिसके चलते मैट ने याचिका दायर की गई थी. जिसका निर्णय 9 मई 2014 को लगा. मैट ने जिला ग्राहक मंच के अध्यक्षों को जज का  वेतनश्रेणी देने के निर्देश दिए थे. इस निर्णय के अमल पर सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया. जिससे मैट के आदेश की अवमानना करने से एड. राणे ने कंटेम्पट पीटीशन मुंबई उच्च न्यायालय के नागपुर खंडपीठ में दायर किया था. इस खंडपीठ के जज न्या. धर्माधिकारी और न्या. शुक्रे है. उन्होंने इस मामले में सरकार से जवाब मांगा गया. मगर उस जवाब से सरकार को कोई राहत नहीं मिली. 1 अप्रैल 2015 को दिए गए  निर्णय के अनुसार मैट का निर्णय सही ठहराया गया. इससे विद्यमान और सेवानिवृत्त जिला ग्राहक मंच के अध्यक्षों को इसका लाभ मिलनेवाला है.

सरकारी तरीका जनहितकारी-एड. विजयसिंग राणे
सबसे बड़ा पक्षकार न्यायालयीन मामलों में प्रशासन है. न्यायालयीन अधिकांश मामलों में यह बात साबित हों जाती है, भ्रष्टाचार अधिकारी उनकी डिमांड पूरी नहीं होने से मामले प्रलंबित रखते है, ऐसे में उनके  खिलाफ पीडि़त न्यायालय में न्याय मिलने की उम्मीद से शिकायत की जाती है. इन मामलों को सरकारी खर्च पर लढ़ा जाता है. यह बात गलत है, उस अधिकारी के पैसों पर ही उसे लढ़ा जाना चाहिए.  न्यायालयीन निर्देश के बाद पीडि़त को ब्याज समेत राशि और खर्चा देना पड़ता है. इसलिए ऐसे अधिकारियों के मामलों में सरकार खर्च ना करें, ऐसा भी एड. विजयसिंग राणे ने कहा.

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