Published On : Thu, Jul 26th, 2018

शिक्षा संस्थाओं को खैरात में बांटी करोडों की जमीन

Advertisement

नागपुर: सरकारी जमीन का उपयोग सामाजिक कल्याण के लिए किया जाए, इस कानून का आधार लेते हुए राजनीतीक दबाव के चलते अनेक शैक्षणिक संस्थाओं को सरकारी जमीन खैरात में बांटने का मामला सामने आया है. फिलहाल जमिन घोटाले का मामला न्यायालय में चल रहा है.

लेकिन आचार्य विनोबा भावे द्वारा किए गए आंदोलन के दौरान कुछ एकड जमीन दान में मिली थी. लेकिन भूदान यज्ञ संस्था द्वारा विदर्भ की 20.80 हैक्टर जमीन अधिनियमों को ताक पर रखकर शिक्षा संस्थाओं को बांटने का चौकाने वाला मामला सामने आया है. 2014 से 2018 तक करीब 8 शिक्षण संस्था को जमीन बांटी गई है, जिसकी कीमत मार्केट रेट के हिसाब वर्तमान में करोडों रुपए की आंकी जा रही है.

Gold Rate
07 April 2025
Gold 24 KT 88,800/-
Gold 22 KT 82,600/-
Silver / Kg - 89,800/-
Platinum 44,000 /-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

कई चौकानेवाले खुलासे होंगे
भूदान संस्था के देखरेख रखने की जिम्मेदारी जिन अधिकारीयों पर थी, उन राजस्व अधिकारियों ने ही नियमों का उल्लघन करते हुए संस्थाओं के नामों में फेरबदल किया. इस मामले में भूदान यज्ञ संस्था, लाभार्थी शिक्षण संस्था और राजस्व विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारियों की साठगांठ होने का खुलासा हुआ है. शासन द्वारा इस मामले पर विस्तारपूर्वक जांच किए जाने पर और भी कई चौकाने वाले घोटालों का खुलासा होने की आकांशा जताई जा रही है.

नियमों का उल्लंघन
भूदान यज्ञ अधिनियम 1953 धारा 3 के तहत शासन द्वारा भूदान यज्ञ संस्था का गठीत किया गया. धारा 22 के अनुसार संस्था को भूमिहीन खेतमजदूरों को भूदान जमीन वितरण करने का अधिकार है. धारा 23 के मुताबिक अधिकारियों द्वारा आंवंटीत की गई जमीनधारकों के नाम को ग्राम पुस्तिका में दर्ज करना अनिवार्य है.

आचार्य विनोबा भावे ने 7 मार्च 1951 में सेवाग्राम से पदयात्रा कर आंदोलन की शुरूआत की थी. 18 अप्रैल 1951 को पदयात्रा तेलंगाना राज्य नलगोंडा जिला के पोचमपल्ली गांव में पहुंची थी.

इसी गांव से उन्होंने ‘सब भूमी गोपाल की’ यह घोषण करते हुए देश के जमीदारों से भूमिहीन मजदूरों के लिए जमीन देने की मांग की थी. इसके लिए विनोबा भावे ने करीब 40 हजार मिल की पदयात्रा की थी. दान में मिली लाखों हेक्टर जमीन तत्काल भूदान समिती की ओर से भूमिहीन किसानों को खेती करने के लिए दी गई.

Advertisement
Advertisement