आखिर देश में हो क्या रहा है? देश में सभ्य मानव की जगह क्या अब विश्व गुरु भारत में सभ्यता के प्रति मानव को जहरीले सांप, विष कन्याएं, कुत्ते, हरामजादे-रामजादे आदि स्थापित करेंगे?
यह हमें स्वीकार्य नहीं है. विडम्बना की कि इस घोर सभ्यता विरोधी कृत्य के प्रेरक कोई और नहीं, बल्कि हमारे सार्वजनिक जीवन के कथित नेता बन रहे हैं. चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी हों या कांग्रेस के राहुल गांधी हों या फिर मल्लिकार्जुन खड़गे या जगत प्रकाश नड्डा ही क्यों न हों, ये सभी के सभी भारत की महान संस्कृति की सभ्यता को पैरों तले रौंद रहे हैं. शब्द कड़े या आपत्तिजनक लग सकते हैं, किन्तु ये ऐसे सत्य हैं जिन्हें कड़वे सत्य की श्रेणी में रखा जाता है. देश स्तब्ध है जब प्रधानमंत्री मोदी सार्वजनिक रूप से देश को बताते हैं कि उन्हें विपक्ष की ओर से सिर्फ गालियां ही गालियां दी जाती हैं. अपशब्दों, बल्कि अश्लील शब्दों के प्रयोग किए जाते हैं, लेकिन सत्य यह भी कि स्वयं प्रधानमंत्री ऐसे कृत्य से अछूते नहीं हैं. दूसरी ओर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री को जहरीला सांप निरूपित कर शिष्टता की सारी सीमा लांघ गए. हालांकि आलोचना होने पर उन्होंने यह सफाई अवश्य दी कि उनका आशय प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि भाजपा से था, लेकिन सार्वजनिक हो चुके उनके द्वारा बोले गए शब्द आरोप के पक्ष में चुंगली कर रहे हैं. जवाब में भारतीय जनता पार्टी ने तो बिल्कुल समुद्र में ही छलांग लगा दी. भाजपा के एक विधायक ने कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी को विष कन्या कह डाला. यह तो भारतीय संस्कृति को पूर्णत: निर्वस्त्र करने सरीखा घृणित कृत्य हुआ. देश के पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी के लिए विष कन्या जैसे संबोधन का प्रयोग कोई मानसिक रूप से असंतुलित, हर दृष्टि से घृणित विचार धारक, अस्वस्थ व्यक्ति ही कर सकता है.
सोनिया गांधी ही नहीं, किसी भी भारतीय नारी के लिए इस तरह के विद्रूपित विशेषण का प्रयोग एक आपराधिक कृत्य है. राहुल गांधी को जब कथित रूप से मोदी उपनाम पर कटाक्ष करने के लिए अदालत द्वारा 2 साल की कैद की सजा दी सकती है तब सोनिया गांधी को विष कन्या कहने वाला अभी तक आजाद कैसे घूम रहा है? न्याय के ऐसे ‘असंतुलन’ पर स्वाभाविक रूप से आलोचनात्मक चर्चा हो रही है. ध्यान रहे, इसके पूर्व राजनेताओं के मुखारविंद से हरामजादे-रामजादे और कब्रिस्तान…जैसे आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल किए जा चुके हैं. छुटभैये नेताओं की बात तो छोड़ दीजिए, वे तो अश्लीलता के सागर में नग्न होकर स्नान कर रहे हैं. इसमें सभी शामिल हैं, पक्ष भी; विपक्ष भी. तो क्या हमारी महान अनुकरणीय सभ्यता के साथ ऐसे तत्वों को ‘बलात्कार’ करने की छूट दे दी जाएगी? हरगिज नहीं. राजनीतिक हानि-लाभ की दृष्टि से पक्ष-विपक्ष के राजनेता चाहे जो बोल लें, देश की जनता इसे स्वीकार नहीं करेगी. इतिहास के पन्नों को पलट लें. अनेक उदाहरण मिल जाएंगे जब ऐसी स्थिति में देश की जनता ने सड़कों पर उतरकर भारत हित में अपने फैसले सुनाए है. ढीली जुबान की इस कुप्रवृत्ति को तिलांजलि दे दिया जाए वरना इसका असर वर्तमान ही नहीं, आने वाली पीढ़ी पर भी पड़ेगा, जिससे हमारा लोकतंत्र कमजोर हो जाएगा. ऐसी अराजक स्थिति को रोकने की जिम्मेदारी पक्ष-विपक्ष दोनों की है.