Mahalakshmi Vrat 2022: महालक्ष्मी व्रत 2022, भाद्रपद महीने की शुक्ल अष्टमी (गणेश चतुर्थी के चार दिनों के बाद) से शुरू होकर 15 दिन तक यानी आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि चलेगा. महालक्ष्मी व्रत का शुभ मुहुर्त क्या है? महालक्ष्मी व्रत की पूजन विधि और कथा क्या है? इस बारे में आर्टिकल में जानेंगे.
Mahalakshmi Vrat 2022: मां महालक्ष्मी की पूजा साल में एक बार की जाती है. भाद्रपद महीना 13 अगस्त से शुरू हुआ था जो 10 सितंबर तक चलेगा और यह व्रत भाद्रपद महीने की शुक्ल अष्टमी (गणेश चतुर्थी के चार दिनों के बाद) 3 सितंबर 2022 से शुरू होकर 15 दिन तक यानी आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी 17 सितंबर 2022 चलेगा. भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को राधा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिसे राधा अष्टमी के नाम से जानते हैं. शास्त्रों की मानें तो यह बहुत महत्वपूर्ण व्रत है. इस व्रत को रखने से मां लक्ष्मी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और जीवन में हर प्रकार की समस्याओं का अंत होता है.
यह व्रत धन और समृद्धि की देवी महालक्ष्मी की प्रसन्नता और आशीर्वाद के लिए किया जाता है. अगर किसी कारणवश 15 दिन के व्रत ना रख पाएं तो कुछ दिन भी इस व्रत को रख सकते हैं. इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता और 16वें दिन पूजा कर इस व्रत का उद्यापन किया. महालक्ष्मी व्रत का शुभ मुहुर्त क्या है? पूजन विधि और कथा क्या है? इस बारे में आर्टिकल में जानेंगे.
महालक्ष्मी व्रत 2022 शुभ मुहुर्त (Mahalaxmi vrat 2022 shubh muhurat)
महालक्ष्मी व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक चलता है. सुहागिन महिलाएं राधा अष्टमी यानी 3 सितंबर से इस व्रत को रखना शुरू करेंगी, अष्टमी तिथि 3 सितंबर को दोपहर 12:28 बजे से शुरू होगी और 4 सितंबर को सुबह 10.39 तक चलेगी. महिलाएं चाहें तो 4 सितंबर को अष्टमी तिथि के खत्म होने से पहले भी व्रत रखना शुरू कर सकती हैं.
महालक्ष्मी व्रत पूजन विधि (Mahalakshmi Vrat puja vidhi)
माना जाता है कि अगर विधि पूर्वक और श्रद्धा से महालक्ष्मी व्रत पूरा किया जाए तो देवी लक्ष्मी बहुत प्रसन्न हो जाती हैं. मान्यताओं में महालक्ष्मी व्रत का काफी महत्व है. इस व्रत को रखने वाली सुहागन महिलाओं को लक्ष्मी माता को सुहाग का सामान जैसे, साड़ी, बिंदी, सिंदूर, बिछिया, चूड़ी आदि अर्पित करनी होती है. ऐसा करने से सुहाग की उम्र बढ़ती है और घर में सुख-शांति रहती है. फूल चढ़ाएं और दीपक या धूप चढ़ाने के बाद विधिवत पूजा करें. इसके बाद मां महालक्ष्मी को कमलगट्टा चढ़ाएं और आरती करें. भोग लगाने के बाद मां महालक्ष्मी स्त्रोत और कथा पढ़ी जाती है.
महालक्ष्मी व्रत कथा (Mahalakshmi Vrat Katha)
प्राचीन समय की बात है कि एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था. वह ब्राह्मण नियमित रुप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था. उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिये और ब्राह्मण से अपनी मनोकामना मांगने के लिए कहा. ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की. यह सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्मण को बता दिया. जिसमें श्री हरि ने बताया कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है जो यहां आकर उपले थापती है. तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना और वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी हैं. देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जाएगा. यह कहकर श्री विष्णु चले गए. अगले दिन वह सुबह चार बजे ही मंदिर के सामने बैठ गया. लक्ष्मी जी उपले थापने के लिए आईं तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया. ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है.
लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो, 16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्ध्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा.ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा, लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया. उस दिन से यह व्रत इस दिन विधि-विधान से करने व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है.