नागपुर: बोर्ड की परीक्षा में छात्रों को बैठाने के लिए विभागीय परीक्षा मंडल की मान्यता लेना अनिवार्य होता है. लेकिन शिक्षा विभाग की लापरवाही की वजह से विभाग की 1790 स्कूलों ने अब तक बोर्ड से मान्यता ही नहीं ली है. विभागीय मंडल अध्यक्ष रविकांत देशपांडे ने अल्टीमेटम जारी कर स्पष्ट कर दिया है कि यदि सितंबर अंत तक स्कूलों द्वारा मान्यता संबंधी प्रस्ताव नहीं आये तो बोर्ड की परीक्षा में बैठने नहीं देंगे. इस हालत में छात्रों के नुकसान की जिम्मेदारी स्कूलों की होगी.
विभाग के 6 जिलों में 10वीं व 12वीं संचालित करने वाली स्कूलों की संख्या 1790 हैं. इन स्कूलों ने अब तक मान्यता नहीं ली है. इस संबंध में बोर्ड की ओर से 2016 से स्कूलों, संबंधित जिले के शिक्षाधिकारियों को समय-समय पर सूचना दी गई. बोर्ड का अध्यक्ष पद संभालने के बाद रविकांत देशपांडे ने मान्यता नहीं लेने वाली स्कूलों की जानकारी निकाली. इसमें पाया गया कि कुछ स्कूलों ने तो २०१२ से ही मान्यता नहीं ली है. इन स्कूलों को कारण बताओ नोटिस के साथ ही मान्यता को रिनीवल कराने के भी आदेश दिए गए.
बोर्ड को लाखों का चूना
दरअसल बोर्ड की मान्यता की प्रक्रिया शिक्षा विभाग के माध्यम से की जाती है. माध्यमिक शिक्षा अधिकारियों द्वारा स्कूलों की पड़ताल कर मान्यता के लिए प्रस्ताव शिक्षा उपसंचालक के पास भेजना पड़ता है. उपसंचालक कार्यालय द्वारा मान्यता के संबंध में प्रस्ताव बोर्ड को भेजा जाता है. बोर्ड स्कूलों के दस्तावेजों की जांच करता है. इसके बाद मान्यता दी जाती है. मान्यता हेतु बोर्ड द्वारा एक वर्ष के लिए 1000 रुपये शुल्क लिया जाता है. लेकिन कई स्कूलों ने 2012 से मान्यता न लेकर बोर्ड के लाखों रुपये के राजस्व को डुबाया है.
अधिकारियों ने पत्र व्यवहार तक नहीं किया
बोर्ड से मान्यता की संपूर्ण प्रक्रिया शिक्षा विभाग के माध्यम से होती है. लेकिन शिक्षा विभाग इस संबंध में गंभीर नहीं है. स्कूलों की जांच करने, इस संबंध में रिपोर्ट उपसंचालक के पास भेजने जैसी कार्यवाही में विभाग के अधिकारी रुचि ही नहीं लेते. उनकी रुचि वहीं होती है जहां से ‘कुछ मिलने’ की उम्मीद होती है. इतना ही नहीं उपसंचालक कार्यालय हमेशा लकीर का फकीर बनकर ही कार्य करता आया है. उपसंचालक ने इतने वर्षों में कभी शिक्षा विभाग को नहीं पूछा कि आखिर स्कूलों की मान्यता नहीं दी गई. इस बारे में कोई भी पत्र व्यवहार तक नहीं किया गया.
बोर्ड की मान्यता नहीं लेने के लिए बोर्ड या स्कूलों का कोई दोष नहीं है. स्कूलों की मान्यता का प्रस्ताव शिक्षा विभाग द्वारा तैयार किया जाता है. बाद में इसे उपसंचालक के पास भेजना पड़ता है. उपसंचालक कार्यालय भी गंभीर नहीं है. यही वजह है कि 2012 से स्कूलों की मान्यता नहीं मिल सकी है.
स्कूलों द्वारा मान्यता ले या नहीं, इसमें छात्रों का कोई नुकसान नहीं होगा. इस बारे में बोर्ड ने ध्यान देना चाहिए. मान्यता के संबंध में नियम तय है. यह शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है. इस हालत में जिम्मेदारी अधिकारियों पर कार्यवाही होनी चाहिए.
स्कूल, जूनि. कालेज, शिक्षा अधिकारी, शिक्षा उपसंचालक को बोर्ड की मान्यता हासिल करने के लिए पत्र भेजा गया. इसके बाद भी बोर्ड के पास स्कूलों के प्रस्ताव नहीं भेजे गये. नियमानुसार मान्यता लेना आवश्यक है. स्कूलों की ओर से जल्द प्रस्ताव नहीं आये तो दंडात्मक वसूली के साथ ही छात्रों को परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाएगा.
जिला स्तरीय स्कूलें
जिला स्कूलें
नागपुर ६५3
चंद्रपुर 3११
गड़चिरोली ४००
भंडारा १६५
वर्धा १०८
गोंदिया १५१