Published On : Wed, Oct 9th, 2019

महाराष्ट्र राज्य की बिजली इकाइयों पर ७२४५२ करोड़ का कर्ज

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उद्योगपतियों की तर्ज पर राज्य के सभी किसानों के कृषि पम्पों का बिजली बिल शुल्क करने की मांग

नागपुर: राज्य सरकार के अधीनस्त महाराष्ट्र राज्य महावितरण,महानिर्मिति व महापारेषण कंपनियों पर लगभग ७२४५२ करोड़ का कर्ज के बोझ तले दबी हुई हैं.इसके बावजूद विदर्भ व मराठवाड़ा के उद्योगपतियों का बिजली शुल्क माफ़ किया गया,उसी तरह राज्य के किसानों के कृषि पम्पों का बिजली बिल माफ़ करने की मांग की गई थी लेकिन सरकार ने इस मांग को गंभीरता से नहीं लिया।

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मुख्यमंत्री को दिए गए निवेदन अनुसार उक्त कर्जा बाज़ारी व उसके ब्याज के कारण उक्त तीनों कंपनियां घाटे में होने की जानकारी दी गई.
प्राप्त जानकारी के अनुसार महावितरण पर ३४०८३ करोड़ का कर्ज हैं,जिस पर ९.५९% ब्याज लग रहा.महानिर्मिति पर ३२२१५ करोड़ का कर्ज,जिस पर भी ९.५९% ब्याज लग रहा.महापारेषण पर लंबे अवधि का ५९९२ करोड़ का कर्ज हैं,जिस पर १०.१५ % ब्याज लग रहा और महापारेषण पर लघु अवधि का १६१ करोड़ का कर्ज हैं,जिस पर ८.७ % का ब्याज लग रहा हैं.

इसी वजह से राज्य बिजली विभाग लम्बे घाटे में चल रही.उक्त तीनों कंपनियों पर नियंत्रण रखने के लिए एक चौथी कंपनी अस्तित्व में हैं.इस चौथी कंपनी को महसूस हो रहा कि अगले १० वर्षों में भी यह घाटे से उबर नहीं पाएंगी।

घाटे का कारण यह दर्शाया जा रहा कि बिजली निर्माण प्रकल्प खड़ा करना,देखभाल-मरम्मत,राज्य में बिजली निर्माण केंद्र से बिजली का ले जाने ,वितरण व्यवस्था का सिस्टम खड़ा करने,नए ट्रांसमिशन लाइन बिछाने आदि कार्यों के लिए कर्ज लिए गए.

जब विद्युत मंडल अस्तित्व में था तब बिजली चोरी का प्रमाण काफी बढ़ गया था.तब बिजली बिल वसूली भी अल्प था.विभाजन के बाद बिजली वितरण में नियंत्रण किया गया,बिजली चोरी आदि में भी अंकुश लगाई गई लेकिन बिजली बिल वसूली में गंभीरता नहीं दिखाई गई.नतीजा बकाया का ग्राफ बढ़ता गया.जबकि १-१ यूनिट का हिसाब-किताब राज्य बिजली विभाग के मुख्यालय प्रकाशगढ़ के पास हैं,फिर भी घाटा समझ से परे हैं.इसका मुख्य वजह यह हैं कि उक्त तीनों कंपनियों पर ७२४५२ करोड़ का कर्ज और उस पर लग रहा ९% का ब्याज ने बिजली विभाग का नफा का गणित बिगाड़ रखा हैं.

बिजली निर्माण/वितरण क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना यह हैं कि जब विदेशों की कई वित्तीय संस्थान नाममात्र के ब्याज पर कर्ज देने को तैयार बैठी हैं,इसके बावजूद इतने महंगे ब्याजदर पर कर्ज लिया जाना जरूर ‘दाल में काला’ हैं.इतना ही नहीं कर्ज लेने हेतु सरकार जब वित्तीय संस्थान को गैरेंटी देती हैं तो लगने वाले ब्याज में २ % कटौती की जाने का नियम हैं.

बिजली विभाग इतने कर्ज बाज़ारी में रहते हुए विदर्भ व मराठवाड़ा के उद्योगपतियों का वर्ष २०१३ से २०१९ तक का बिजली शुल्क माफ़ कर दिया गया.यह सहुलिया वर्ष २०२४ तक लागू रखने के प्रस्ताव को मंत्रिमंडल ने मान्यता भी प्रदान की.जिसका हर्जाना बिजली विभाग को वर्ष २०२४ तक भुगतना पड़ेंगा।
आज की सूरत में बिजली विभाग की स्थिति दयनीय हैं.कोयले की गुणवत्ता सुधारने पर कोई जोर नहीं दिया जा रहा.बिजली निर्माण में लगने वाली वाली पानी का ठीक से नियोजन नहीं किया गया गया.उपलब्ध तालाब की क्षमता बढ़ाने पर भी कोई रूचि नहीं दिखाई जा रही.

पानी से जुडी बिजली निर्माण सह अन्य उद्योग संकट में हैं.कई बंद होने के कगार पर खड़े हैं.

राज्य की सरकारी बिजली निर्माण कंपनियों की स्पर्धा टाटा पॉवर,अदानी पॉवर,रिलायंस पॉवर जैसे कंपनियों से जारी हैं.क्या निजी बिजली निर्माण कंपनियों को स्थापित करने के लिए राज्य सरकार की मूल कंपनी को अस्वस्थ्य किया जा रहा ?

दूसरी ओर देश के अन्नदाता की समस्याओं का निराकरण का दावा करने वाली केंद्र व राज्य सरकार के आँखों के समक्ष किसानों की आत्महत्या का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा.पिछले ५ वर्षों में हज़ारों की संख्या में किसानों ने आत्महत्याएं की.सरकार द्वारा की जा रही उपाययोजना असफल हो रही हैं. इन अन्नदाताओं को भी वर्ष २०२४ तक विदर्भ व मराठवाड़ा के उद्योगपतियों का बिजली शुल्क माफ़ की तर्ज पर कृषि पम्पों का बिजली बिल माफ़ किये जाने की मांग की गई थी, लेकिन सरकार ने इस मांग की सिरे से नज़रअंदाज कर अपनी नित का परिचय दिया।

 

– राजीव रंजन कुशवाहा ( rajeev.nagpurtoday@gmail.com )

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