नागपुर: नारा स्थित डा. बाबासाहब आम्बेडकर नेशनल पार्क की जमीन को लेकर लंबे समय से विवाद चला आ रहा है. हालांकि डेवलपमेंट प्लान के अनुसार आरक्षित जमीन के लिए प्रन्यास की ओर से जमीन अधिग्रहित की जानी थी, किंतु समय पर अधिग्रहण नहीं होने के कारण आरक्षण खत्म करने के लिए सुरेशचंद्र सुरी एवं अन्य लोगों की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका पर सुनवाई के दौरान मध्यस्थ के रूप में चंदु पाटिल की ओर से अर्जी दायर की गई. जिसमें अन्य वकील को नियुक्त करने का इरादा व्यक्त किया गया. जिस पर कोर्ट ने कहा कि इस संदर्भ में न तो पहले के वकील को मामले से मुक्त होने की सूचना देने के लिए नोटिस जारी किया गया और ना ही उक्त वकील से एनओसी प्राप्त की गई.
इस स्थिति को स्पष्ट करने के लिए हाई कोर्ट ने 3 सप्ताह का समय भी प्रदान किया. मध्यस्थ की ओर से अधि. शैलेश नारनवरे ने पैरवी की. उल्लेखनीय है कि डा. बाबासाहब आम्बेडकर नेशनल पार्क के लिए आंदोलन और संघर्ष कर रहे वेदप्रकाश आर्य के अलावा अब चंदु पाटिल की ओर से भी मध्यस्थ अर्जी दायर की गई. हाई कोर्ट की ओर से आपत्ति जताए जाने के बाद अधि. शैलेश नारनवरे ने कहा कि नियमों के अनुसार आवश्यक कदम उठाए जाएंगे. साथ ही तीन सप्ताह की अवधि के भीतर अनुपालन का रिकार्ड कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा. अन्य मध्यस्थ वेदप्रकाश आर्य ने कहा कि पूरे मामले में प्रन्यास की ओर से जो निष्क्रियता दिखाई गई है.
सुनवाई के दौरान बताया गया कि इंटरविनर की ओर से इस संदर्भ में प्रशासन को कई बार ज्ञापन दिया है. लेकिन किसी तरह की सकारात्मक पहल नहीं हुई. वास्तविकता यह है कि विचाराधिन भूमि सार्वजनिक पार्क के लिए आरक्षित थी, ऐसे में आरक्षण समाप्त करना तर्क संगत नहीं है. गत सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता सुरी की ओर से पैरवी कर रहे वकीलों द्वारा अर्जी का कड़ा विरोध किया गया. उन्होंने कहा कि हस्तक्षेप अर्जी को अनुमति देकर उनके व्यक्तिगत अधिकारों को खत्म नहीं किया जा सकता है.
गत समय कोर्ट का मानना था कि हस्तक्षेपकर्ता भी सार्वजनिक कारण के लिए भूमि की रक्षा करने में रूचि रखता है. ऐसे में अर्जी को स्वीकृत करने के आदेश दिए. साथ ही कोर्ट ने इंटरविनर को याचिका में हस्तक्षेपकर्ता के रूप में शामिल करने की अनुमति भी दी. याचिकाकर्ता को इस संदर्भ में याचिका में आवश्यक सुधार करने को कहा गया था. मध्यस्थ अर्जी दायर करनेवाले वेदप्रकाश आर्य ने कहा कि मध्यस्थ अर्जी में प्रन्यास को जमीन अधिग्रहण करने के आदेश देने का अनुरोध कोर्ट से किया गया है. यहां तक कि याचिकाकर्ता को राशि देने के लिए कोर्ट में लिखित आश्वासन देने के आदेश प्रन्यास को देने का अनुरोध भी किया गया है. विचाराधिन भूमि 7 जनवरी 2000 को प्रकाशित विकास योजना में पार्क के लिए आरक्षित थी. यह योजना अभी भी बनी हुई है.