Published On : Wed, Aug 1st, 2018

Birthday: पिता के स्वार्थ और धर्मेंद्र की बेवफाई ने बनाया था मीना कुमारी को शराबी!

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चांद तन्हा है आसमां तन्हा, दिल मिला है कहां-कहां तन्हा, राह देखा करेगा सदियों तक, छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा’. तन्हा ही तो थी मीना कुमारी. सारी जिंदगी प्यार को तरसती रही. जिस पर विश्वास किया उसी ने धोखा दिया. भारतीय सिनेमा की ‘ट्रेजडी क्वीन’ नाम से मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी ऐसी अभिनेत्रियों में शुमार हैं, जिनके साथ हर कलाकार काम करने को बेताब रहा करता था. उनकी खूबसूरती ने सभी को अपना कायल बना लिया.

वह तीन दशकों तक बॉलीवुड में अपनी अदाओं के जलवे बिखेरती रहीं. मीना कुमारी ने ज्यादातर दुख भरी कहानियों पर आधारित फिल्मों में काम किया है. फिल्मों की तरह ही उनकी असल जिंदगी भी रही. कमाल की खूबसूरती, अदाओं और बेहतरीन अभिनय से सभी को अपना दीवाना बना चुकी मीना कुमारी की जिंदगी में दर्द आखिरी सांस तक रहा. मीना कुमारी जिंदगी भर अपने अकेलेपन से लड़ती रहीं.

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मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त, 1932 को मुंबई में हुआ था. उनका असली नाम महजबीं बानो था. उनके पिता अली बख्स पारसी रंगमंच के कलाकार थे और उनकी मां थियेटर की मशहूर अदाकारा और नृत्यांगना थीं, जिनका ताल्लुक रवींद्रनाथ टैगोर के परिवार से था. पैदा होते ही अब्बा अली बख्श ने रुपये की तंगी और पहले से दो बेटियों के बोझ से घबराकर इन्हें एक मुस्लिम अनाथ आश्रम में छोड़ दिया था. उनकी मां के काफी रोने-धोने पर वे उन्हें वापस ले आए.

मीना कुमारी उर्फ महजबीं बानो की दो और बहनें थीं, जिनका नाम खुर्शीद और महलका था. मीना कुमारी को महज चार साल की उम्र में फिल्मकार विजय भट्ट के सामने पेश किया गया. इसके बाद उन्होंने बाल-कलाकर के रूप में 20 फिल्मों में काम किया. उनका नाम ‘मीना कुमारी’ विजय भट्ट की खासी लोकप्रिय फिल्म ‘बैजू बावरा’ बनने के साथ पड़ा. इसके बाद वह इसी नाम से मशहूर हो गईं. मीना कुमारी की प्रारंभिक फिल्में ज्यादातर पौराणिक कथाओं पर आधारित थीं.

मीना कुमारी के आने के साथ भारतीय सिनेमा में नई अभिनेत्रियों का एक खास दौर शुरू हुआ था, जिसमें नरगिस, निम्मी, सुचित्रा सेन और नूतन शामिल थीं. मीना कुमारी ने अपने अकेलेपन और जज्बातों को कलमबंद किया. उनकी शायरी दिलों को कुरेद देने वाली हैं. ज्यादातर फिल्मों में दुखांत भूमिकाएं निभाने की वजह से उन्हें बॉलीवुड की ‘ट्रेजडी क्वीन’ कहा जाने लगा.

मीना कुमारी उर्फ महजबीं बानो की दो और बहनें थीं, जिनका नाम खुर्शीद और महलका था. मीना कुमारी को महज चार साल की उम्र में फिल्मकार विजय भट्ट के सामने पेश किया गया. इसके बाद उन्होंने बाल-कलाकर के रूप में 20 फिल्मों में काम किया. उनका नाम ‘मीना कुमारी’ विजय भट्ट की खासी लोकप्रिय फिल्म ‘बैजू बावरा’ बनने के साथ पड़ा. इसके बाद वह इसी नाम से मशहूर हो गईं. मीना कुमारी की प्रारंभिक फिल्में ज्यादातर पौराणिक कथाओं पर आधारित थीं.

मीना कुमारी के आने के साथ भारतीय सिनेमा में नई अभिनेत्रियों का एक खास दौर शुरू हुआ था, जिसमें नरगिस, निम्मी, सुचित्रा सेन और नूतन शामिल थीं. मीना कुमारी ने अपने अकेलेपन और जज्बातों को कलमबंद किया. उनकी शायरी दिलों को कुरेद देने वाली हैं. ज्यादातर फिल्मों में दुखांत भूमिकाएं निभाने की वजह से उन्हें बॉलीवुड की ‘ट्रेजडी क्वीन’ कहा जाने लगा.

यहां भी उन्हें कमाल की दूसरी पत्नी का दर्जा मिला. लेकिन इसके बावजूद कमाल के साथ उन्होंने अपनी जिंदगी के खूबसूरत 10 साल बिताए. मगर 10 साल के बाद धीरे-धीरे मीना कुमारी और कमाल के बीच दूरियां बढ़ने लगीं और फिर 1964 में मीना कुमारी कमाल से अलग हो गईं. इस अलगाव की वजह अभिनेता धर्मेद्र थे, जिन्होंने उसी समय अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. उस समय मीना कुमारी के सितारे बुलंदियों पर थे, उनकी एक के बाद एक फिल्म हिट हो रही थी. मीना कुमारी बॉलीवुड के आसमां का वो सितारा थीं, जिसे छूने के लिए हर कोई बेताब था.

धर्मेद्र की जिंदगी का अकेलापन दूर करते-करते मीना उनके करीब आने लगीं. दोनों के बारे में अफेयर की काफी चर्चा होने लगी. मीना कुमारी के रूप में धर्मेद्र के करियर की डूबती नैया को किनारा मिल गया था और धीरे-धीरे धर्मेद्र के करियर ने भी रफ्तार पकड़ी. अपनी शोहरत के बल पर मीना कुमारी ने धर्मेद्र के करियर को ऊंचाइयों तक ले जाने की पूरी कोशिश की, लेकिन इतना सब करने के बाद भी मीना को धर्मेद्र से भी बेवफाई ही मिली.

फिल्म ‘फूल और कांटे’ की सफलता के बाद, धर्मेद्र ने मीना कुमारी से दूरियां बनानी शुरू कर दीं और एक बार फिर से मीना कुमारी अपनी जिंदगी में तन्हा रह गईं. धर्मेद्र की बेवफाई को मीना झेल न सकीं और हद से ज्यादा शराब पीने लगीं. इस वजह से उन्हें लिवर सिरोसिस बीमारी हो गई. बताया जाता है कि दादा मुनि अशोक कुमार से मीना कुमारी की ऐसी हालत देखी नहीं जाती थी. उन्होंने उनके साथ बहुत-सी फिल्मों में काम किया था. वह एक दिन मीना के लिए दवाइयां भी लेकर गए थे, लेकिन उन्होंने दवा लेने से इनकार कर दिया.

फिल्म ‘पाकीजा’ के रिलीज होने के तीन हफ्ते बाद, मीना कुमारी गंभीर रूप से बीमार हो गईं. 28 मार्च, 1972 को उन्हें सेंट एलिजाबेथ के नर्सिग होम में भर्ती कराया गया. मीना ने 29 मार्च, 1972 को आखिरी बार कमाल अमरोही का नाम लिया, इसके बाद वह कोमा में चली गईं. मीना कुमारी महज 39 साल की उम्र में मतलबी दुनिया को अलविदा कह गई. उन्हें 1966 में फिल्म ‘काजल’, 1963 में ‘साहिब बीवी और गुलाम’, 1954 में ‘बैजू बावरा’, 1955 में ‘परिणीता’ के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

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