मूल कांग्रेसी को दरकिनार कर बागी बसपाई के लिए दिल्ली में लॉबिंग कर रहे।इस खेल में अल्पसंख्यक समुदाय को दिया जाएगा झटका
नागपुर: इन दिनों राज्यपाल के कोटे से 12 एमएलसी मनोनयन का मामला फ़िलहाल विवादों में हैं.राज्य की महाआघाड़ी सरकार और राज्यपाल के मध्य द्वन्द्व शुरू हैं.राज्यपाल ने राज्य सरकार/मुख्यमंत्री की सूची को तवज्जों नहीं दी तो संभवतः सरकार/मुख्यमंत्री राज्यपाल के खिलाफ न्यायालय की शरण में जाकर राज्यपाल को चुनौती देंगी। दूसरी तरफ कांग्रेस के ऊर्जामंत्री व जिले के पालकमंत्री नितिन राऊत लगातार महाआघाडी के नेताओं को नज़रअंदाज कर दिल्ली में अपना उल्लू सीधा करने में लीन हैं।नतीजतन, इनका ही खेमा सह मूल कांग्रेसी राऊत से नाराज चल रहे हैं।
इस मनोनयन को लेकर महाआघाडी के मध्य हुए समझौते के अनुसार सभी पक्ष का 4-4-4 कोटा तय किया गया था.
कांग्रेस कोटे से अपने करीबी बागी बसपाई को एमएलसी बनाने के लिए ऊर्जामंत्री व पालकमंत्री नितिन राऊत दिल्ली में पहले विदर्भ से दलित या मुस्लिम में से प्रतिनिधित्व देने के मामले को उछाला,ताकि नीचे यह जता सके कि वे दलित के साथ मुस्लिम समुदाय के भी हितैषी हैं.फिर उनकी मंशा यह है कि जब कांग्रेस आलाकमान विदर्भ से दलित या मुस्लमान में से एमएलसी हेतु प्रतिनिधित्व चुनने के लिए सहमति प्रदान कर देगा तब नितिन राऊत मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि को किनारे कर प्राध्यापक जोगेंद्र कावड़े का पर्याय के रूप में उस बागी बसपाई का नाम सामने लाएंगे।
इस बागी बसपाई से नाता तब जुड़ा जब वे विधानसभा चुनाव हार गए थे.इसके बाद इन्हे पक्ष में लाए और फिर अनुसूचित जाति सेल का केंद्रीय अध्यक्ष बने तो इस बागी बसपाई को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में न सिर्फ शामिल करवाया,बल्कि 2-3 राज्यों का प्रभारी आलाकमान को यह कहकर बनाए कि इनके पक्ष में आने से विदर्भ में बसपा ख़त्म हो गई और अब इन राज्यों में बसपा ख़त्म करेंगे।इस बागी बसपाई से न सिर्फ नितिन राऊत खेमा बल्कि मूल कांग्रेसी सिरे से नफरत करते हैं.
जबकि नितिन राऊत के पास एक नहीं बल्कि 2-2 अनुसूचित जाति के सक्षम उम्मीदवार मूल कांग्रेसी उपलब्ध हैं.इनमें बंडोपंत टेंभुर्णे और वरिष्ठ नगरसेवक संदीप सहारे प्रमुख हैं.लेकिन, उन्हें दरकिनार कर बागी बसपाई को महत्व दे रहे हैं.
अधिवक्ता आसिफ कुरैशी व मुजीब पठान
अगर नितिन राऊत दलित कार्ड फेल और मुस्लिम कार्ड पर सहमति मिली तो कांग्रेस के पास अधिवक्ता आसिफ कुरैशी और मुजीब पठान में से किसी का नंबर लग सकता हैं.दोनों का दिल्ली-संपर्क काफी मजबूत हैं.लोकल समर्थन भी तगड़ा है. दोनों आर्थिक रूप से भी सबल हैं.
एनसीपी बनाए सतीश पेंदाम को उम्मीदवार
एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी समुदाय के मध्य महत्त्व दिलवाने वाले इनदिनों सिर्फ सतीश पेंदाम हैं.इसका स्थानीय स्तर पर नितिन राऊत और एनसीपी तथाकथित नेता विरोध कर रहे हैं.वह इसलिए कि नितिन राऊत सह अन्य लोकल नेता अपने विधानसभा क्षेत्र में मर्यादित हैं,जबकि सतीश पेंदाम आदिवासी बहुल बिहार,झारखंड,बंगाल,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,गुजरात आदि में चर्चित व जुझारू युवा नेता के रूप में परिचित हैं.इनकी गुजरात चुनाव में नितिन राऊत ने शरद पवार से शिकायत भी थी कि सतीश गुजरात चुनाव में कांग्रेस-एनसीपी का साथ नहीं दे रहा,जबकि नितिन राऊत ने वक़्त पर सतीश से मदद मांगी थी.
अगर चयन प्रक्रिया हुई तो महाआघाडी संयुक्त उम्मीदवार पर बल दे.
राज्यपाल और राज्य सरकार विवाद समाप्ति बाद 12 विभिन्न क्षेत्रों से उम्मीदवार तय करने हेतु महाआघाडी नेतृत्व संयुक्त उम्मीदवारों का चयन करे.नितिन राऊत जैसे एकतरफा निर्णय लेने वालों को चयन प्रक्रिया से कोसों दूर रखा जाए,वरना, कांग्रेस की सिकुड़न बढ़ जाएगी। इसके पूर्व भी नितिन राउत ने ऊर्जा विभाग के विभिन्न बोर्ड के चयन के समय एनसीपी,सेना को नज़रअंदाज किया,जिसके कारण नितिन राउत द्वारा चयनित सदस्यों का चयन स्थगित कर गया गया.