नागपुर. प्रन्यास की ओर से 572 लेआऊट के भूखंडों को नियमित करते समय गोरले लेआऊट को भी नाले पर मंजूरी प्रदान कर दी गई. यहां तक कि निर्माण को भी हरी झंडी प्रदान की गई. यहां धडल्ले से हुए अवैध निर्माण तथा इनकी वजह से होनेवाली तमाम परेशानियों को लेकर राजेश धारगावे एवं अन्य की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए गए आदेशों के अनुसार नाले का पानी लोगों के घरों में ना जाए, इसके लिए मनपा ने नारे की सुरक्षा दीवार का नवनिर्माण तो किया, किंतु अब बारिश के पानी की निकासी के लिए बनाए गए स्ट्राम वाटर ड्रेन के टाके जमीनी स्तर पर से 6 इंच उपर बनाए गए है. जिसकी वजह से बारिश के पानी की निकासी कैसे होगी?. इसे लेकर सवाल उठाया गया. इस मसले को एक माह के भीतर निपटाने का आश्वासन मनपा की ओर से दिए जाने के बाद हाई कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया.
सुनवाई के दौरान भले ही मनपा की ओर से कोर्ट को आश्वस्त किया गया हो, किंतु अदालत ने एक माह में मसला हल करने के बाद अनुपालन की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश भी मनपा को दिए. विशेषत: याचिकाकर्ता की ओर से यहां हुए अवैध निर्माण को हटाने की मांग करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. गत समय कार्यकारी अभियंता द्वारा दायर किए गए हलफनामा पर कोर्ट की ओर से असंतोष जताया गया था. कोर्ट का मानना था कि भले ही लेआऊट को मंजूरी देने का निर्णय बहुत पहले दिया गया हो, लेकिन नाले के तल में लेआऊट और भूखंडों को मंजूरी देने के एनआईटी अधिकारियों के फैसले को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. जो बाढ के प्रमुख कारणों में से एक है. प्रन्यास का मानना था कि वर्तमान में रखरखाव के लिए लेआऊट महानगर पालिका को सौंप दिया गया है.
गत सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि प्रन्यास के मुख्य अभियंता को हलफनामा दाखिल करने के लिए बुलाना था, हालांकि कोर्ट को सूचित किया गया कि उक्त पद रिक्त है. ऐसे में कोर्ट ने प्रन्यास सभापति को इस पूरे मुद्दे की जांच करने और स्वयं का हलफनामा दायर करने के आदेश दिए थे. साथ ही इस मामले में विशेष रूप से नाले के तल और जलसंग्रह क्षेत्र पर निर्मित लेआऊट को मंजूरी देने और संरचनाओं को निर्माण परमिट देने के बारे में क्या कदम उठाने का प्रस्ताव है. इसकी जानकारी प्रस्तुत करने के भी आदेश दिए थे.