नागपुर: जब बात ऊंचे रसूखवाले लोगों पर कार्रवाई को लेकर होती है तो मानों अधिकारिक महकमा अधिकारों का गलत उपयोग करने लगता है। विशेष तौर से जब बात मुन्ना और मंगल यादव के बीच हुए खूनी रंजिश के मामले को लेकर हो रही हो तब यह ढिलाई काफी हद तक बढ़ जाती है। सूत्रों की मानें तो अधिकारी किसी राजनीतिक दबाव में आए बिना खुद अपने फायदे के लिए इस तरह के काम करने पर आमादा हैं।
सूत्रों के अनुसार मुन्ना यादव और उसके छह पारिवारिक सहयोगियों के खिलाफ चार्जशीट पुलिस ने अदालत में कुछ दिन पहले ही पेश कर दी थी। इसी के साथ मुन्ना यादव के दुश्मन मंगल यादव और छह अन्य लोगों के खिलाफ भी चार्ज शीट अदालत में पेश कर दी गई थी। लेकिन यहां चौंकानेवाली बात यह है कि जो चार्जशीट दायर की गई थी उसे ‘अनुकूल’ बनाने के िलए मुन्ना यादव व उसके अन्य सहयोगियों के खिलाफ लगाई गई धारा 307 अर्थात हत्या के प्रयास के आरोपों को हटा दिया गया है। इस मामले में धारा 307 ही ऐसी धारा है जिसके चलते जमानत रद्द रहती है, उसे बदल कर जमानती धारा 326 कर दिया गया। यह धारा दंगा फैलाने और झगड़ने के दौरान घायल करने के आरोपों को लेकर लगाई जाती है।
यही नहीं सूत्र यह भी बताते हैं कि मुन्ना यादव के विरोधी खेमें के मंगल यादव और अन्य के लिए धारा 307 को वापस ले लिया गया जिसके बदले धारा 324 लगाया गया। सूत्र बताते हैं ऐसा करने के िलए पुलिस ने मेडिकल रिपोर्ट को ढाल बनाकर धारा 307 को धारा 324 और 326 में तब्दील कर दिया। बता दें कि मेडिकल रिपोर्ट शुरुआत से ही यह कहती रही कि झगड़े के दौरान जो जख्म हुए हैं उससे जान को किसी भी प्रकार का खतरा नहीं था। सूत्र बताते हैं कि यही वजह है कि पुलिस विभाग के विधि अधिकारी के परामर्श पर हत्या के प्रयास की धारा पीछे ले ली गई। वैद्यकीय विधि जानकारों का भी यही मत था कि विवाद पटाखों को फोड़ने के दौरान उपजा और तीनों समूह के एक दूसरे के उकसाने के बाद आपस में भिड़ पड़े। इस मामले में मुन्ना यादव के बेटे करण और अर्जुन ने पहले से ही धंतोली पुलिस को आत्मसमर्पण कर दिया था, जबकि मां लक्ष्मी और अन्य सहयोगियों को हाईकोर्ट से राहत मिल गई थी।