नागपुर: अगले सप्ताह से महाराष्ट्र विधान मंडल का मानसून अधिवेशन नागपुर में शुरू होने जा रहा है. राज्य लोककर्म विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है. इस दफे अधिवेशन के लिए दी जाने वाली ठेकेदारी कार्य में परंपरा को तोड़ने के उद्देश्य से टेंडर प्रक्रिया के ही कई टुकड़े किए गए जो गर्मागर्म चर्चा का विषय बना हुआ है.
मुंबई में जीर्ण विधायक निवास की जगह नए विधायक निवास का निर्माण शुरू है. इससे होने वाली दिक्कतों के मद्देनज़र नागपुर में मानसून अधिवेशन लेने का निर्णय लिया गया. निर्णय की भनक लगते ही शीतकालीन अधिवेशन में प्रस्थापित ठेकेदार और नए परन्तु शहर के चर्चित ठेकेदार ठेका हथियाने हेतु अपने-अपने स्तर से भीड़ गए. सत्तापक्ष की भी मंशा साफ़ रही कि उनके शासनकाल में उनके कार्यकर्ताओं, हितैषी व्यापारियों व ठेकेदारों को ज्यादा से ज्यादा काम मिले और वे सबल हों.
तूती बोलती थी :- अब तक शीतकालीन अधिवेशन में पिछले ३ दशक से एक ही ठेकेदार कंपनी अग्रवाल की सेवाकुंज को मिल रही थी.आलम तो यह था कि लोककर्म विभाग के सम्बंधित आला अधिकारी और कोई टेंडर में भाग न ले इसलिए अग्रवाल के हिसाब से टेंडर की रचना की जाती थी. इसके अलावा जब अंतिम बिल बनाने की नौबत आती थी तो अतिरिक्त सामग्री किराए पर मंगवाने की जिक्र कर लाखों में बिल की रकम का इजाफा किया जाता रहा. क्यूंकि अधिवेशन के खर्च का अंकेक्षण ( ऑडिट ) नहीं होता है इसलिए पिछले ३० वर्षों से राज्य सरकार के खजाने की लूट जारी थी.
४ टुकड़े किए गए निविदा के :- पिछले शीतकालीन सत्र तक अधिवेशन कार्य के लिए संयुक्त टेंडर ही निकाला जाता था. लेकिन इस दफे भाजपाई समर्थकों के लिए टेंडर के चार टुकड़े किए गए. जिसमें ३ भाजपा समर्थक और एक पुराने प्रस्थापित ठेकेदार कंपनी सेवाकुंज को ठेका मिला। भाजपा के हिस्से आमदार निवास,रवि भवन और १६० खोली का ठेका तो सेवाकुंज को विधानभवन और शहरभर के सभी कैंप का ठेका मिला। अब तक किसी भी ठेकेदार के काम को दर्जेदार नहीं कहा जा सकत. विडंबना तो यह है कि ठेकेदारों के कामों की निगरानी लोककर्म विभाग के सम्बंधित अधिकारी कागजों तक सीमित रखे हुए है. इस अधिवेशन के दौरान तेज आंधी-बरिश आई तो लोककर्म विभाग की व्यवस्था की पोल मिनटों में खुल जाएगी. तब प्रशासन ठेकेदारों पर आफत मढ़ अपना पल्ला झाड़ लेगा.
६०% से अधिक निम्न में ठेका लिया ठेकेदारों ने :-यह मसला समझ से परे है. पिछले ३ दशक से एक ही ठेकेदार कंपनी प्रत्येक वर्ष अधिवेशन में बिछायत पूर्ति करने का ठेका ले रही थी, वह ही विभाग द्वारा जारी दर के इर्द-गिर्द. लेकिन इस दफे मूल दर से ६०% से कम में एक के बजाय ४ ठेकेदारों ने ठेका लिया. अर्थात बिना मुनाफा के कोई व्यवसाय नहीं करता. जब इतने कम में संतुष्ट हैं ठेकेदार तो सवाल यह उठता हैं कि पिछले ३ दशक में सरकारी खजाने को अधिकारियों के मदद से कितनी लूटी गई.
समय रहते सरकार,लोककर्म विभाग ने पिछले ३ दशक का ‘सोशल ऑडिट’ नहीं किया तो मोदी फाउंडेशन न्यायालय के दर निवेदन कर न्याय की मांग करेंगी, जिसका जिम्मेदार लोककर्म विभाग की होगा.