नागपुर: भाजपा शिवसेना युती सरकार में बड़े गाजे बाजे के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी के हाथों 1996 – 1997 में काटोल में संत्रा प्रकल्प का उद्धाटन किया गया था. लेकिन 3 वर्षों में ही संतरा परियोजना का डिब्बा गुल हो गया. 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना उम्मीदवार कृपाल तुमाने और डॉ आशिष देशमुख की प्रचार सभा के दौरान संतरा परियोजना शुरू कर के साथ लोगों को रोजगार और संतरा उत्पादन किसानों को उनका अधिकार दिलाने का वादा किया था. लेकिन सरकार बने 3 वर्ष का कार्यकाल बीत जाने के बाद भी यह केंद्र अब तक शुरू नहीं हो सका. अब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तथा केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी समेत सरकार के उन सभी जन प्रतिनिधियों से वादापूर्ती को लेकर टकटकी लगाई जा रही है. नागपुरी संतरे को नया जीवन दान देने के लिए इस प्रकल्प को प्रारंभ कर कोल्ड स्टोरेज तैयार कर दोबारा शुरू करने की कृषि क्रांति संगठन द्वारा मांग की जा रही है.
आरेंज की लौटाई जा सकती है मिठास
एक दौर था जब जिले के सावनेर, काटोल, नरखेड, मोहपा, कोंढाली, कल्मेश्वर और वर्धा जिले के कारंजा, आर्वी, आष्टी, तलेगांव तथा अमरावती जिले के वरूड, मोर्शी, शेदुरजनाघाट सहित अन्य तहसीलों में भी अंबिया तथा मृग बहार की बंपर पैदावार हुआ करती थी. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से मौसम के साथ न देने से अंबिया बहार का संतरा लगभग गायब होते नंजर आ रहा है, वहीं मृग बहार पर भी प्राकृतिक विपदाओं का कहर बरस रहा है. नतीजा यह हुआ कि संतरे की पैदावार नाटकीय ढंग से घट गया. साथ ही उसकी गुणवत्ता में कमी आ गई. हालत यह है कि आधे से अधिक संतरे के पेड़ या तो सूख रहे हैं या फिर बीमारियों ने घेर रखा है. फसल के नुकसान होने पर किसानों को मुआवजा दिलाने के लिए प्रयास किए जाते हैं. लेकिन नुकसान से बचाने के लिए ठोस उपायोजनाओं की ओर ध्यान नहीं दिया जाता.
जिले में लगभग 23 हजार 500 हेक्टेयर क्षेत्र में संतरे की फसल ली जाती है. यदि पश्चिम महाराष्ट्र को शक्कर मिल तथा अंगूस प्रक्रिया केंद्रों की तरह यहां भी संतरा प्रक्रिया केंद्र किए जाने पर किसानों को सीधा लाभ पहुंचेगा. संतरा कृषि उपज केंद्रों की स्थिति यह है कि प्रोसेसिंग युनिट नहीं होने से संतरा को कृषि उपज मंडी में बेचने का ही विकल्प शेष रह जाता है. कुछ कम्पनियां संतरे की जैम – जैली आदि बनाने का काम कर रही हैं, लेकिन जिले के आस पास क्षेत्र से आने वाले संतरे की मात्रा को देखते हुए वह पर्याप्त साबित नहीं हो रहा है, इससे जिले में सरकारी या सहकारी प्रक्रिया संयंत्र होने की निहायत जरूरत महसूस की जा रही है.
जो था वह भी बंद पडा है
1993 से 1994 के करीब बड़ी मशक्कत के बाद काटोल के डोंगरगांव एम. आय. डी. सी में एक संतरा प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की गई थी, वह भी बंद पड़ा हुआ है. विदर्भ में 80 हजार हेक्टेयर में संतरा की पैदावार ली जाती है. नागपुर जिले में ही 22 हजार 950 हेक्टर में इस की फसल ली जाती है. देश में आम, केले के बाद संतरे की पैदावार सबसे ज्यादा ली जाती है. किसानों की आर्थिक विकास और उन्नती के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जाती हैं. फिर भी 23 वर्षों से जनप्रतीनिधीयों की उदासीनता के कारण करोड़ों रूपयों की लागत से तैयार किया गया संतरा प्रक्रिया उद्योग फल फूल ना सका. मशीनरी तकरीबन कबाड़ हो चुकी हैं. पश्चिम महाराष्ट्र में गन्ने और अंगूर के लिए अनेक प्रोसेसिंग संयंत्र है, परंतु विदर्भ के संतरे के लिए जो एकमात्र संयंत्र शुरू किया गया था, वह भी पिछले 23 वर्षों से बंद पड़ा है.
दो सरकार के दो मुख्यमंत्रीयों ने किया था उदघाटन
काटोल एमआईडीसी की 1200 एकड़ से संतरा उत्पादक किसानों के लिए 400 एकड़ तथा 150 एकड़ अन्य उघोगों के लिए जमीन प्रस्तावित की गई थी. लेकिन 100 एकड़ जमीन पर ही संतरा प्रोसेसिंग युनिट तैयार किया गया.
पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार के हाथों इस परियोना का भूमिपूजन किया गया था. बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी के हाथों और उनके तत्कालीन राज्य मंत्री अनिल देशमुख की उपस्थिति में गाजे बाजे के साथ भूमीपूजन कर लोकार्पण किया गया था. किसानों को बड़े बड़े सपने दिखाए गए थे. यहां संतरे के साथ – साथ टमाटर, आम, मोसंबी और सब्जियों की प्रोसेसिंग की भी घोषणा कर हजारों युवाओं को रोजगार दिलाने का सपना दिखाया गया था. इसी तरह 2 मुख्यमंत्रीयों ने इमारत का भूमिपूजन किया गया था. निर्माण कार्य पूरा भी हुआ. प्रोसेसिंग भी शुरू हुई परन्तु 1996 – 1997 में 256 करोड़ रुपए खर्च कर बनाये गए संतरा प्रक्रिया संयंत्र का गलत नियोजन व नीतियों के कारण कोराबार और उत्पादन हो ना सका. परंतु अभी 2014 के लोकसभा चुनाव में विदमान सासंद कुपाल तुमाने इनके प्रचार सभा में विदर्भ के दमदार नेता तथा विदमान केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी सरकार आने पर यह केंद्र शुरू किया था. यह चुनाव निबटने के बाद डॉ आशिष देशमुख की क्षेत्र से उम्मीदवारी दिए जाने पर फिर बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार देवेंद्र फडणवीस ने संतरा उत्पादन किसानों से वादा किया था कि जैसे ही राज्य में उनकी सरकार विराजमान होगी हैं तो सबसे पहले करोड़ों रुपए की लागत से बंद पड़े संतरा प्रोसेसिंग युनिट परियोजना को शुरू करने का आश्वासन दिया था. लेकिन अब तक कई वादों के बाद भी केंद्र शुरू ना होने पर अब प्रकल्प को शुरू करने के लिए किसानों तथा नागरिकों ने अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी शुरू कर दी है.
मिट्टी के मोल दे दी जमीन…
प्रकल्प के लिए किसानों ने जमीन मिट्टी के मोल दे दी थी ताकि उनके बच्चों को रोजगार मिल सके. सरकार ने 400 एकड़ जमीन में संतरा प्रकल्प व 150 एकड़ में लघु उद्योग, 250 एकड़ में निजी कंपनियों के लिए आरक्षित किया था. परंतु 100 एकड़ में संतरा व 150 एकड जमीन पर छोटे छोटे लघु उद्योगों और 800 से 1000 एकड़ जमीन पर इन्डिया बुल कंपनी को बेच दिया था. पर इन्डिया बुल कंपनी द्वारा बड़े पैमाने पर सोलर पावर प्लांट लगाकर सौर्य ऊर्जा से बिजली तैयार कर सरकार को बेची जा रही है परन्तु इसका लाभ भूमिहीन हुए किसानों को नहीं मिल रहा है. ऐसे इस प्रकल्प के लाभ को लेकर नागरिकों ने सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं.