नागपुर मनपा चुनाव की गहमागहमी के बीच शिवसेना के तेजतर्रार नेता,सांसद संजय राऊत के नागपुर आने पर चर्चा इस बात पर केंद्रित है कि कहीं इनके दौरे से शिवसेना को नुकसान और भाजपा को फायदा तो नहीं हुआ ?
ध्यान रहे नागपुर मनपा में शिवसेना के 2 नगरसेवक है,ऐसे में 40 सीटें जितने का टारगेट देकर संजय राऊत ने स्थानीय शिवसैनिकों को पशोपेश में डाल दिया है।
सभी जानते है कि नागपुर में शिवसेना का संगठन अपेक्षा के अनुरूप मजबूत नहीं है। सक्षम नेतृत्व का भी आभाव हैं। यह दुःखद है कि महाराष्ट्र सरकार का नेतृत्व कर रही शिवसेना उराजधानी नागपुर में हाशिये पर है। ऐसे में मुम्बई में बैठे शिवसेना नेतृत्व विशेष कर ‘मातोश्री’ को हस्तक्षेप कर नागपुर में शिवसेना के लिए मजबूत जमीन तैयार करनी होगी।
पिछले 2 वर्षों में शिवसेना नेतृत्व की महाराष्ट्र सरकार के उल्लेखनीय व प्रशंसनीय सफलता से उत्साहित स्थानीय शिवसैनिक चाहते है कि उन्हें एक अनुसरणीय सक्षम नेतृत्व उपलब्ध करवाई जाए।
नागपुर के राजनीतिक महत्व को देखते हुए यह जरूरी है कि मुम्बई की तरह नागपुर में भी शिवसेना का आधार मजबूत हो।स्थानीय तटस्थ लोगों की भी यहीं इच्छा है। किंतु पेंच यह है कि शिवसेना नेतृत्व की महाआघाडी में कांग्रेस और एनसीपी के समावेश है।जबकि नागपुर मनपा में शिवसेना,कांग्रेस व एनसीपी अलग अलग स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने जा रही है।
जाहिर है कि चुनाव प्रचार के दौरान आरोप- प्रत्यारोपों की झरिया लगेगी।इसका सीधा प्रतिकूल असर राज्य की महाआघाडी सरकार पर भी पड़ेगा। कांग्रेस व एनसीपी के मुकाबले नागपुर शहर में शिवसेना नेतृत्व कमजोर स्थिति में है।जनता के एक बड़े वर्ग के समर्थन के बावजूद शिवसेना शायद ही इसका फायदा उठा पाएगी।।
संजय राउत के नागपुर दौरे से अपेक्षा की जा रही थी कि शिवसैनिको में उत्साह बढ़ेगा और संगठन मजबूत होगा किंतु ऐसा लगता है कि संजय राऊत को बरगलाया गया,उन्हें उन्हें गलत सुझाव दिए गए। राऊत को चाहिए था कि स्थानीय शिवसैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए उनसे व्यापक सीधा संवाद करते।संगठन की कमजोरियों की जानकारी ले,उसे मजबूत करने का मार्ग ढूंढते किंतु ऐसा नही हुआ।कुछ चुनिंदा शुवसैनिको से बातचीत कर,बड़े वर्ग की उपेक्षा कर उन्होंने अपनी यात्रा को विराम दिया।
नतीजतन, जहां शिवसैनिक निराश हुए वही भाजपा को इसका लाभ मिल गया।पहले से ही मजबूत भाजपा के कार्यककर्ताओ के मनोबल में वृद्धि ही हुई,कांग्रेस व एनसीपी,संगठन की मजबूत उपस्थिति के बावजूद अंतर्कलह के करण भाजपा को अपेक्षित चुनौती नही दे पा रहे है। पूरी मशक्कत के बावजूद शिवसेना भी भाजपा,कांग्रेस व बसपा के बाद एनसीपी व शिवसेना चौथे क्रमांक के लिए संघर्ष कर रही। ‘मातोश्री’ के लिए यह स्थिति लाभदायी नहीं।उन्हें पूरी स्थिति पर ,नागपुर की स्थानीय राजनीति की आबोहवा के मद्देनजर मजबूत नए नेतृत्व को पैदा करना होगा। इससे स्थानीय शिवसैनिकों के उत्साह में वृद्धि होगी। जिसका लाभ शिवसेना को मिल सकेगा।