नागपुर: नागपुर जिला परिषद चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा. भाजपा में शीर्ष नेताओं के मध्य अंदरूनी द्वंद्व, इस हार की वजह बताई जा रही है. राजनीतिक खेमों में एक बड़ा वर्ग यह मान रहा है कि इसी रस्साकशी में प्रभावी गुट को आईना दिखाने के चक्कर में जिले में प्रभाव रखने वाले गुरु-चेलों के निष्क्रिय रहे और इसका परिणाम पार्टी को जिला परिषद चुनाव में भुगतना पड़ा. अंदरूनी सूत्र मानते हैं कि देवेंद्र फडणवीस द्वारा गडकरी-बावनकुले को नज़रअंदाज करना पार्टी की सेहत पर बुरा असर डाल रहा है.
लोकसभा चुनाव से उपजे थे मतभेद!
दरअसल यह लड़ाई लोकसभा चुनाव से शुरू हुई.भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के इशारे पर तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर लोकसभा क्षेत्र में चुनाव के दौरान गृह नगर होने के बाद निष्क्रियता दिखाई थी. आरोप तो यह भी है कि फडणवीस ने अपने करीबी पक्ष-विपक्ष के कार्यकर्ताओं को भी भाजपा उम्मीदवार गडकरी के खिलाफ सक्रिय किया था. इसके बावजूद, गडकरी पिछले चुनाव की तुलना में कम मतों से जीत हासिल की थी. इसके बाद शाह-मोदी ने उन्हें उचित तवज्जो देने के बजाय कई महत्वपूर्ण मामलों में पर छांट दिए.
फिर विधानसभा चुनाव में दिखा द्वेष
इसके बाद विधानसभा चुनाव में गडकरी को मुख्य भूमिका से दूर रख, इनके कट्टर समर्थकों के टिकट काट दिए गए. इसी क्रम में तत्कालीन ऊर्जा व आबकारी मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले जैसे सक्षम जनप्रतिनिधि पर भी गंभीर आरोप लगाते हुए उनका टिकट काट दिया गया. नतीजा यह हुआ कि नागपुर जिले समेत सम्पूर्ण राज्य में भाजपा को अपने बल पर सत्ता हासिल करने लायक बहुमत नहीं मिल पाया. नागपुर जिले में पिछली बार 12 में से 11 विधायक भाजपा के थे, इस बार भाजपा के 6 ही विधायक चुने गए, अर्थात 5 का नुकसान हुआ.
खींचतान में हाथ से फिसली महाराष्ट्र की सत्ता!
भाजपा नेतृत्व की एकतरफा सोच, राज्य में पुनः सत्ता हासिल करने के लिए 25 साल पुरानी सहयोगी शिवसेना को तुच्छ समझने की भूल कर बैठी. इस कारण भाजपा का गद्दीनशीं होने का का ख्वाब पूरा नहीं हो पाया. इस अधूरे सपने को पूरा करने के लिए देवेंद्र मंडली ने एड़ी चोटी का जोर लगाया, लेकिन दाल नहीं गली. इस नज़ारे को देख देवेंद्र विरोधी मजा लेते रहे. इसके बावजूद, शाह-देवेंद्र मंडली ने गडकरी से मदद नहीं मांगी. ऐसी सूरत में देवेंद्र विरोधी गुट भाजपा-सेना के मध्य चल रही तनातनी रूपी आग में अप्रत्यक्ष रूप से घी डालने का काम करते रहे.और अंत में राज्य के राजनीत के भीष्म पितामह शरद पवार ने सेना सुप्रीमो को मुख्यमंत्री पद का अंतिम मौका का स्वप्न दिखाकर भाजपा से अलग कर कांग्रेस के समर्थन से उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बना ही दिया. इतना ही नहीं, आज भी इस तिकड़ी सरकार की फूट की आस में भाजपा पुनः सत्ता में आने की आस लगाए बैठी है.
जिला परिषद में हार, जैसे आ बैल मुझे मार!
इसी बीच नागपुर जिलापरिषद चुनाव घोषित हुए. बावनकुले को नेतृत्व दिया गया. लेकिन देवेंद्र फडणवीस को सबक सिखाने के उद्देश्य से न नितिन गडकरी और न ही चंद्रशेखर बावनकुले ने सक्रियता दिखाई और न ही खर्च किए. नतीजा यह हुआ कि जहां भाजपा का परंपरागत कब्ज़ा था, वहां भी भाजपा हार गई. न सिर्फ गडकरी के गांव धापेवाड़ा से बल्कि उनके खासमखास वलनी जिप से भाजपा उम्मीदवार अरुण कुमार सिंह पानी की तरह पैसा बहाने के बावजूद बड़ी मार्जिन से हार गए.
उल्लेखनीय यह हैं कि शाह-मोदी-फडणवीस की यही सोच रही तो भाजपा की लुटिया डूबते देर नहीं लगेगी. वैसे, इस तिकड़ी सरकार ने भाजपा शासित मनपा पर भी वक्रदृष्टि गड़ा दी है.