Published On : Mon, Sep 21st, 2020

NDA :शिवसेना सह २२ साल में २९ पार्टियों ने छोड़ा साथ

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– ‘मोदीराज’ में १६ पार्टियों ने साथ छोड़ा

नागपुर – पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में २२ साल पहले जो एनडीए बना था, आज वह तार-तार होता जा रहा है। दरअसल, बाद के वर्षों में एनडीए में कुशल नेतृत्व का अभाव होता चला गया और वह कमजोर होता गया। उसमें शामिल शिवसेना सह अन्य पार्टियां उसका साथ छोड़ती चली गई। पिछले २२ साल में २९ पार्टियां एनडीए का साथ छोड़ चुकी हैं। ताजा मामला केंद्र सरकार की मंत्री हरसिमरत कौर का इस्तीफा है। हालांकि अकाली दल अभी NDA से अलग नहीं हुआ है पर संकेत अच्छे नहीं हैं।

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केंद्र में सरकार गठन के लिए आज से २२ साल पहले एक मजबूत गठबंधन का निर्माण किया गया था। इस गठबंधन का नाम NDA (नेशनल डेमोक्रटिक एलायंस) रखा गया था। शुरू के वर्षों में तो सबकुछ ठीक ठाक चला पर बाद में NDA का कुनबा बिखरने लगा। नई पीढ़ी के अकुशल नेताओं ने इसकी कमान संभाल ली और एनडीए में से ‘D’ यानी डेमोक्रेटिक रास्ते का अभाव होने लगा। अपनी मर्जी से मनमाने निर्णय थोपे जाने लगे, जिसका असर इस मजबूत गठबंधन पर पड़ा और उसमें दरार आने लगी। फिर एक-एक करके दरारें बढ़ने लगीं और पुराने साथी छोड़कर जाने लगे। नतीजा यह हुआ कि पिछले २२ साल में NDA के २९ साथी इसे छोड़ गए।

बता दें कि NDA का गठन १९९८ में लालकृष्ण आडवाणी ने किया था। अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष थे, फिलहाल नड्डा हैं। NDA के घटक दल अब तक साथ में मिलकर ६ लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। २०१९ के आम चुनाव में २१ दल साथ में लड़े थे। किसानों के मुद्दे को लेकर NDA के सबसे पुराने साथियों में से एक शिरोमणि अकाली दल ने बागी तेवर अपना लिए हैं। एनडीए सरकार में अकाली दल के कोटे से अकेली मंत्री हरसिमरत कौर ने पिछले गुरुवार को इस्तीफा दे दिया। आने वाले समय में अकाली दल NDA का हिस्सा रहेगा या नहीं, इस पर पार्टी के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल का कहना है कि वह इसका फैसला बाद में करेंगे।

अकाली दल यदि NDA छोड़ता है तो यह सबसे पुराना और एक मात्र बचा सहयोगी दल होगा, जो बाहर निकल जाएगा। NDA के गठन से लेकर अब तक २२ साल हो चुके हैं। इन २२ सालों में २९ पार्टियां NDA छोड़कर बाहर निकल चुकी हैं। इनमें वो तमाम NDA की संस्थापक पार्टियां भी हैं, जो साथ छोड़ चुकी हैं। सिर्फ बचा है प्रकाश सिंह बादल का अकाली दल।

NDA का पूरा नाम है नेशनल डेमाक्रेटिक एलायंस, यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन। यह गठबंधन १९९८ में बनाया गया था, जिसके दम पर १९९८ से लेकर २००४ तक भाजपा केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार चलाने में कामयाब रही। २००४ से २०१२ तक आडवाणी इसके अध्यक्ष रहे। NDA में दूसरा अहम पद संयोजक का होता है। जार्ज फर्नांडीस NDA के पहले संयोजक रहे। फिलहाल संयोजक की जगह खाली है।

२०१९ में २१ दलों ने लड़ा चुनाव
२०१९ आम चुनाव में NDA में शामिल २१ दलों ने चुनाव लड़ा था। इनमें भाजपा समेत १३ पार्टियां सीट जीतने में कामयाब रही थीं। NDA को कुल ३५४ सीटें मिलीं, जिनमें से भाजपा को ३०३ और अन्य १२ दलों को ५१ सीटें मिलीं। २०१९ आम चुनाव के बाद महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा, दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए हैं। इनमें से तीन राज्यों में भाजपा हार चुकी है। दो में सत्ता गंवा चुकी है। आम चुनाव के बाद शिवसेना और ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन एनडीए से बाहर हो गई हैं, जो दो पार्टियां बाहर हुई हैं। उनके कुल १९ सांसद हैं। फिलहाल NDA में २६ पार्टियां हैं। इनमें से १७ पार्टियां ऐसी हैं, जिनके लोकसभा या राज्यसभा में सदस्य हैं। फिलहाल NDA के लोकसभा में ३३६ और राज्यसभा में ११७ सदस्य हैं।

सिर्फ ४ पुराने साथी हैं साथ
NDA की संस्थापक पार्टियों में से सिर्फ ४ चार पुराने साथी अभी साथ हैं। इनमें भाजपा के साथ अकाली दल, अन्ना द्रमुक, मिजो नेशनल फ्रंट व पीएमके हैं। लेकिन, इनमें से अन्ना द्रमुक, मिजो नेशनल फ्रंट, पीएमके बीच में एनडीए को छोड़ गए थे और अब दोबारा साथ में आए हैं। सिर्फ अकाली दल एक मात्र पार्टी है, जो पहले दिन से अभी तक NDA में बनी हुई है। पंजाब में किसान अकाली दल की रीढ़ हैं। इसलिए आंदोलन की शुरुआत में अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा था, ‘सभी अकाली किसान हैं और सभी किसान अकाली हैं।’ पंजाब की सभी किसान यूनियन अपने मतभेदों को किनारे रखकर केंद्र सरकार के नए कानून का विरोध कर रही हैं।

उल्लेखनीय यह हैं कि १९९८ में जब आडवाणी और वाजपेयी ने NDA बनाने का फैसला किया था, तो उस वक्त जॉर्ज फर्नांडीज की समता पार्टी, जयललिता की अन्नाद्रमुक, प्रकाश सिंह बादल की अकाली दल और शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना इसके साथ सबसे पहले जुड़ी थी। चंद्रबाबू नायडू की तेदेपा ने इसे बाहर से समर्थन देने का पैâसला किया था। २०१३ में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो २९ पार्टियां NDA में थीं। आम चुनाव में भाजपा ने अकेले २८२ सीटें जीती थीं, जबकि NDA के अन्य ११ साथी ५४ सीटें जीतने में कामयाब हुए थे। चुनाव के बाद भी कई दल NDA में आए, लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ५ साल में १६ पार्टियों ने NDA छोड़ दिया।