Published On : Fri, Apr 27th, 2018

आरटीओ घोटाला : फर्जी कागजात पर पुरानी गाड़ियों को दर्शा रहे नई गाड़ी

Nagpur RTO Office Dirty

नागपुर: गोंदिया के बालाजी ट्रेवल्स के संचालक संदीप कुमार का एक और मामला कागजी सबूत के साथ प्रकाश में आया है, जिसको ‘नागपुर टुडे’ ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था. इस बार भी गुप्ता ने फर्जी कागजातों के आधार पर नागपुर आरटीओ में पहले स्कूल बस का पंजीयन कराया. फिर वेकोलि में स्कूल बस का टेंडर हासिल कर न सिर्फ लाखों कमाया बल्कि इस बस से आवाजाही करने वाले बच्चों से ३ वर्ष तक उनकी जान से खिलवाड़ करता रहा.

ज्ञात हो कि वेकोलि में बल्लारपुर क्षेत्र के खदानों में कार्यरत कर्मियों के बच्चों को स्कूल तक आवाजाही के लिए स्कूल बस का टेंडर जारी किया था. निविदा शर्तों के हिसाब से वेकोलि प्रबंधन २४० स्कूली दिनों के लिए सालाना कुल ३० लाख रुपए भुगतान करेगी. यह टेंडर २ वर्ष के लिए था.

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गुप्ता ने आदतन उक्त टेंडर हथियाने के लिए फर्जी कागजातों का सहारा लिया. जब इस मामले की तह में गए तो पता चला कि टाटा मोटर्स के मुंबई के अधिकृत विक्रेता बाफना मोटर्स ने एमएच०४ जी -५०९७ क्रमांक की बस मिनेश पटेल को बेची थी. तब इसका मॉडल वर्ष २००६ का था. इसका चेचिस क्रमांक 442O61CTZOO3464 था. इसके बाद यह बस मिनेश पटेल ने बालाजी ट्रेवल्स को मध्यप्रदेश में बेची. तब इसका सीरीज ‘एमएच’ से ‘एमपी’ होने साथ ही साथ मॉडल वर्ष २००६ से २०१० हो गया. जबकि चेचिस क्रमांक (442O61CTZOO3464 ) पुराना ही रखा.

कागजी सबूत – 1

मध्यप्रदेश के इसी बस क्रमांक, चेचिस क्रमांक सहित कागजात पेश कर महाराष्ट्र के बल्लारपुर स्थित वेकोलि के कर्मियों के बच्चों के लिए जारी निविदा हासिल कर 2 वर्ष चलाया. जबकि महाराष्ट्र में स्कूल बस का संचलन करने के लिए सम्बंधित जिले के आरटीओ में पंजीयन आवश्यक है. परमिट प्राप्त करने के लिए परिवहन अधिनियम के २७ मानकों को पूरा करना आवश्यक है. इसके बाद मध्यप्रदेश से नागपुर या विदर्भ में कहीं भी बस संचलन हेतु बस का सीरीज बदलना अनिवार्य है. गर नागपुर आरटीओ ने गुप्ता की बस को परमिट दिया है तो सवाल खड़ा होता है कि इसका आधार क्या रखा गया होगा.

कागजी सबूत – 2

उधर दूसरी ओर भ्रस्टाचार की जननी अर्थात वेकोलि प्रबंधन ने टेंडर प्रक्रिया के दौरान सिर्फ गुप्ता द्वारा प्रस्तुत कागजातों को सही ठहराते हुए टेंडर दे दिया. इससे भ्रस्टाचार की बू आ रही है.

खास बात है कि इस तरह के मामलों से निपटने के लिए कोयला मंत्रालय ने मुख्य सतर्कता विभाग का निर्माण किया गया है. इस विभाग की निष्क्रियता का भी राज गहरा है. क्यूंकि विभाग प्रमुख और वेकोलि प्रमुख कुछ विशेष मामलों में ‘सगे’ हैं. ऐसे में ‘सगे’ बने रहने की मजबूरी से बच्चों की जान-माल से खिलवाड़ होना लाजमी है.

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