Published On : Tue, Jan 29th, 2019

नेताओं को पिटाई का नहीं डर चुनाव आते ही बन जाते सपनों के सौदागर

Advertisement

Cartoon Courtesy : नवभारत

पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, अब देशवासियों को सुनहरे सपने दिखाकर बहकाने वाले नेताओं को सतर्क हो जाना चाहिए. उन्हें केंद्रीय सड़क व परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने होश की दवा दी है. उन्होंने चेतावनी दी है कि सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं, पर दिखाए गए सपने अगर पूरे नहीं किए गए तो जनता उनकी पिटाई करती है.

सपने वही दिखाओ जो पूरे हो सकें.’’ हमने कहा, ‘‘गडकरी की इस नेक सलाह के बावजूद सपनों के सौदागर सुधरने वाले नहीं हैं. वे वोट बटोरने की खातिर झूठे सपने दिखाते ही रहेंगे. ऐसे नेताओं की दूकान ही सपनों पर चलती है. ऐसे सपने साबुन के बुलबुले के समान हकीकत की खुरदुरी जमीन से टकराकर चूर-चूर हो जाते हैं. आपने गीत सुना होगा- रात ने क्या-क्या ख्वाब दिखाए, रंग भरे सौ जाल बिछाए, आंखें खुलीं तो सपने टूटे, रह गए गम के काले साए!’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, ड्रीम मर्चेंट या सुहाने सपनों के व्यापारी हमेशा पूरी तैयारी से रहते हैं. उनके सपनों में सम्मोहन शक्ति होती है. वे लोगों को आसमान से चांद-सितारे तोड़कर ला देने का भरोसा भी दिला सकते हैं. देश की भोली-भाली जनता ने हर देशवासी के बैंक खाते में 15 लाख रुपए जमा कर देने के सपने पर भरोसा किया था या नहीं? हमारी राय है कि सपनों के देखने-दिखाने पर कोई सेंसर नहीं लगना चाहिए. जब चुनाव प्रचार शुरू होगा, आप भी 70 एमएम सिनेमास्कोप ब्लाकबस्टर सपने देखने के लिए तैयार रहिएगा.

Today’s Rate
Saturday 23 Nov. 2024
Gold 24 KT 77,700 /-
Gold 22 KT 72,300 /-
Silver / Kg 90,900/-
Platinum 44,000 /-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

सपनों में सच खोजने के फेर में मत पड़िएगा.’’ हमने कहा, ‘‘भारतवासियों को सोते-जागते सपने देखने की आदत पड़ी है. चाहे जो भी आए, बगैर एन्टरटेनमेंट टैक्स के सपना दिखा जाए! उन्हें कभी गरीबी हटाओ का सपना दिखाया गया तो कभी समाजवाद का!

अब दिखाया जा रहा है- राम मंदिर का भव्य सपना! आजकल पहले के समान पारिवारिक फिल्में नहीं बनतीं लेकिन पारिवारिक राजनीति अवश्य होती है. एक ओर आप संघ परिवार देखते हैं और दूसरी ओर गांधी परिवार! इसके अलावा गठबंधन परिवार भी बनता नजर आ रहा है जिसके लिए आप कह सकते हैं- इधर की ईंट उधर का रोड़ा, भानमति ने कुनबा जोड़ा! देखना होगा कि महागठबंधन कौन-सा सपना दिखाता है.’’

as published in By नवभारत

Advertisement