नागपुर : ३५ से ३८ गुणा किराया ओटे धारकों का बढ़ाया गया. इससे हैरान-परेशान सैकड़ों ओटे धारकों ने २७ जुलाई को महापौर नंदा जिचकर से विपक्ष नेता तानाजी वनवे, वरिष्ठ नगरसेवक व स्थाई समिति सदस्य जुल्फेकारअली भुट्टो के साथ प्रभाग के सभी नगरसेवकों के नेतृत्व में मिले. महापौर ने तत्काल समाधानकारक निर्णय लेने के बजाय अगले माह उक्त मामले में सर्वपक्षीय बैठक लेकर अंतिम निर्णय लेने का आश्वासन देकर लौटा दिया.
ओटे धारकों का नेतृत्व कर रहे रजनीश तांबे व जावेद खान के अनुसार इनकी मांग थी कि ३१ मार्च २०१८ तक २ रुपए फुट मासिक किराए को १ अप्रैल २०१८ से बढ़ाने का निर्णय लिया. इस निर्णय का स्वागत तब किया जाता जब २ की बजाय ५ रुपए वर्ग फुट मासिक किराया होता न कि ३५ से ३८ रुपए.
उक्त मसले को लेकर कल रविवार ओटे धारकों का शिष्टमंडल कांग्रेस के वरिष्ठ नगरसेवक प्रफुल्ल गुडधे पाटिल से मिला. पाटिल ने आज दोपहर शिष्टमंडल को मनपा मुख्यालय में बुलाया है, जहां विभाग के साथ मसले का अध्ययन किया जाएगा.
शिष्टमंडल में अब्दुल रशीद सरकार, मो. तौसिफ नूर, रवींद्र मेश्राम, शंकरलाल गौर, चंद्रशेखर हिंगणेकर, राजेश बागड़े, राजाराम मेंढे, शकील, रमेश पंडेल, सुभाष हसोरिथा, नरेश हसोरिथा, मो. यूसुफ अब्दुल रशीद, रमजान अली बरकत अली, असलम, विलास बागड़े, दिलीप शाहू, प्रदीप रामटेके, नरेश बोरकर, शिवकुमार गुप्ता, निजामुद्दीन अंसारी, युवराज सहारे, प्रदीप बागड़े, शेख गफ्फार, अरुण गायकवाड़, नौशाद खान इस्माइल खान, लालचंद वासे, कल्लूराम तेली आदि का समावेश था.
उल्लेखनीय है कि संतरा मार्केट के लेआउट से लगा एक अन्य लेआउट भी मनपा का है. जिस पर पक्के निर्माणकार्य वाली ५-६ दर्जन दुकानें हैं. जिनसे मनपा ने पिछले १५ वर्षों से कर नहीं वसूला, यह समझ से परे हैं. माना मनपा की आर्थिक स्थिति दयनीय है. संपत्ति, जल, बाजार, नगर रचना, अग्निशमन विभाग द्वारा टारगेट के मुकाबले आय आधा है. यही नहीं आय से तिगुणा का बजट पेश किए जाने से मनपा प्रशासन सकते में है. तो क्या ओटा धारकों के साथ ज़बरदस्ती करने से मनपा की परिस्थिति में सुधार हो जाएगा!
मनपा की हकीकत यह भी है कि सत्तापक्ष की अंदरूनी कलह के कारण जनता-जनार्दन को तत्काल सहूलियत नहीं मिल पा रही है. आमसभा या विशेष सभा सत्तापक्ष एकजुट नहीं दिखाई देता. मनपा में तो न के बराबर पदाधिकारी बैठते या दिखते हैं. नतीजा मनपा मुख्यालय में अजीब सी सन्नाहट महसूस की जा रही है. ऐसे में अगले वर्ष होने वाले दो महत्वपूर्ण चुनाव में सत्तापक्ष को कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है.