नागपुर: मनपा प्रशासन ने पिछले आर्थिक वर्ष में एक-एक बार जल व संपत्ति कर के बकाएदारों के लिए “एमिनिस्टी स्कीम” लाई,जिसके तहत मनपा प्रशासन को कुल बकायेदारों में से १०% बकायेदारों ने सराहा।शेष ने धता बता दिया। इस असफलता के पश्चात् पुनः उक्त दोनों करों के बकायेदारों के लिए अगले माह ६ से १६ जुलाई तक मनपा प्रशासन “एमिनिस्टी स्कीम” लाएंगी।
इस योजना को पुनः शुरू करने के पीछे का मकसद यह है कि मनपा आगामी १ जुलाई सेशुरू होने जा रही “जीएसटी” के कारण ३ से ६ माह तक सरकारी अनुदान/मदद के लाले पड़ने वाले है,ऐसे में “एमिनिस्टी स्कीम” के सहारे मनपा प्रशासन अपना समय काटेंगी।
मनपा का मासिक स्थापना व अन्य खर्च लगभग ४० करोड़ है,अगर ३ माह सरकारी अनुदान नहीं मिला तो १२० करोड़ और अनुदान दिसंबर से शुरू हुआ तो २०० करोड़ की जरुरत पड़ने वाली है.इन खर्चो में विकास कार्य और विकासक के भुगतानों का समवेश नहीं है.साथ ही जारी विकास कार्य भी निधि आभाव में अधर में लटक जायेंगे।
“एमिनिस्टी स्कीम” से उक्त ३ से ५ माह समय काटने की योजना खाकी-खादी ने मिलकर बनाई है.६ से १६ जुलाई के दौरान शुरू रहने वाली उक्त योजना से मनपा को ५० करोड़ के आसपास राशि मिल सकती है,वह भी पूर्ण ताकत प्रशासन व पदाधिकारी ने झोंकी तो. दोनों में से एक ने भी लापरवाही की तो १० से १५ करोड़ का संकलन कम हो सकता है.याने इस हिसाब से योजना व मंसूबा दोनों असफलता के कदम चूमने वाला है.संपत्ति कर समिति प्रमुख का दावा है कि अबतक पिछले आर्थिक वर्षो में प्रत्येक वर्ष से १०० करोड़ अधिक संपत्ति कर वसूल कर दिखाएंगे।
मनपा का प्रत्येक वर्ष संपत्ति कर लगभग १०० करोड़ का होता है.नई सम्पत्तियों को कर के दायरे में लगाने का कार्य ढुलमुल गति से जारी है. लगभग आधे से अधिक संपत्ति कर मूल्यांकन में भारी गड़बड़ियां हॉकी,जिसे सुलझाने में पिछले एक दशक से मनपा प्रशासन की कोई रूचि नहीं है. अनगिनत रहवासी क्षेत्र/भवन/बिल्डिंग/ब्लॉक/घर/फ्लैट आदि व्यवसायिक रूप से इस्तेमाल किये जा रहे है,जिनकी जानकारी सम्बंधित विभाग को होने के बावजूद कोई ठोस कार्यवाही नहीं होने से मनपा खजाने को लगातार प्रत्येक वर्ष चुना लगाया जा रहा है. नागपुर सुधर प्रन्यास जैसे सरकारी संस्थान खुद व उनके इमारत/प्रॉपर्टी के लीज या किरायेदारों से सम्पत्तिकर न वसूलने दे रही और न ही वसूलकर दे रही है. राज्य व केंद्र सरकार के हद्द में उनके कार्यालय या परिसर का भी सम्पत्तिकर वर्षो से मनपा को नहीं मिल रहा है.
उक्त ज्वलंत समस्या रहने के बावजूद मनपा प्रशासन प्रत्येक वर्ष बढ़ा-चढ़ा कर संपत्ति कर से होने वाली आय का आंकड़ा पेश कर खुद की पीठ थपथपाते है.और अंत में मनपा आयुक्त अपने “रिवाइस बजट” में ऐसी कटिंग करती है कि टारगेट बाजु में धरा का धरा रह जाता है और मनपायुक्त द्वारा की गई “कटिंग बजट” में सभी खादीधारी अपने-अपने मनचाहे इलाके की फाइल को आर्थिक मंजूरी दिलवाने में भीड़ जाते है.
उल्लेखनीय यह है कि पिछले एक दशक के दौरान मनपा स्थाई समिति द्वारा पेश की गई बजट को मनपायुक्त ६ माह बाद अपने “रिवाइस बजट” में अच्छी खासी “कटाई” करते रहे है.वर्ष २०१७ – १८ में प्रस्तुत बजट में “जीएसटी” से १०२५ करोड़ अनुदान मिलने की संभावना दर्शाई गई है.यह संभावना पूर्ण हुई तो प्रस्तुत बजट के हिसाब से सम्पूर्ण कार्य पूर्ण हो सकते है.अगर सरकारी अनुदान लड़खड़ाई तो दिसंबर माह में मनपायुक्त अपने “रिवाइस बजट” में लगभग ६०० करोड़ की “कटिंग बजट” पेश करेंगे।
आर्थिक नुकसान अन्य स्रोतों से
मनपा को नगर रचना विभाग,बाजार विभाग,अग्निशमन विभाग,जल कर विभाग ,स्थावर विभाग से आय होती है.इन विभागों के कार्यक्षेत्र के हिसाब से मनपा प्रशासन को ३० से ४० प्रतिशत ही आय होती रही है.मनपायुक्त ने वक़्त पर मनपा कर्मियों को वेतन देना शुरू कर दिया है,उनसे जबतक जिम्मेदारी सौंप उसका पालन कड़ाई से नहीं करवाती तबतक मनपा को उम्मीद के अनुरूप आय नहीं हो पाएंगी। मनपा की अधिकतर संपत्ति का आज के बाजार भाव के हिसाब से मूल्यांकन नहीं हुआ है,जिसके वजह से मनपा खजाने को “बाबा आदम” के ज़माने का किराया/शुल्क मिल रहा है,कई तो ऐसे है जो दशकों से मुफ्त में मनपा संपत्ति का उपयोग कर रहे है.खली पड़े मनपा संपत्ति/भवन को किराये पर देने से आय बढ़ सकती है.
वर्ना मनपा अनुदान के भरोसे रह गई तो उसकी स्वयत्तता खतरे में पड़ सकती है.
— राजीव रंजन कुशवाहा