नागपुर. वन विभाग की ओर से भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा 29 के तहत प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए विभिन्न गांवों की भूमि को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित करने के लिए 29 अगस्त 1955 को अधिसूचना जारी की गई. अधिसूचना के अनुसार सेलू की खसरा नंबर 59/1 के सर्वे नंबर 77 तथा पुराना खसरा नंबर 68/3 की सर्वेक्षण संख्या 87 की क्रमश: 4.68 और 0.52 हेक्टेयर भूमि भी संरक्षित वन घोषित की गई. इस पर मालिकाना अधिकार होने का दावा करते हुए श्यामराव तराले की ओर से अधिसूचना को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. जिस पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने 70 वर्ष बाद अधिसूचना को चुनौती देने पर विचार करने से साफ इंकार कर दिया. याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि चूंकि उक्त भूमि उनके स्वामित्व में है, अत: भूमि पर खड़े सागौन के पेड़ों को काटने के हकदार है. इसके लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है.
किंतु विकल्प के रूप में पेड़ों को काटने की अनुमति के लिए 4 अगस्त 2017 को आवेदन दिया गया है. जिस पर निर्णय लेने के आदेश देने का अनुरोध भी कोर्ट से किया गया. सुनवाई के दौरान वन विभाग की ओर से पैरवी कर रहे अति. सरकारी वकील और केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे डेप्युटी सालिसिटर जनरल आफ इंडिया की ओर से याचिका का कड़ा विरोध किया गया. उन्होंने कहा कि 70 साल से अधिक समय बीत जाने के कारण, चुनौती विलंब से और पुरानी है. जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
अन्यथा भी, चूंकि चुनौती का उद्देश्य सागौन के पेड़ों को काटने की अनुमति प्राप्त करना है, इसलिए इसे अधिसूचना की वैधता को चुनौती देने के उद्देश्य से कानूनी आधार नहीं कहा जा सकता है. इसके अलावा किसी भी पेड़ को काटने से पहले, तहसीलदार की पूर्व अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है. 7/12 के अनुसार यह भूमि वर्ग-II में है.
जिसके कारण याचिकाकर्ता भूमि पर किसी भी पूर्ण अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं. दोनों पक्षों की दलिलों के बाद कोर्ट ने आदेश में कहा कि जहां तक सागौन के पेड़ों को काटने के लिए दिए गए आवेदन का मसला है, इस संबंध में राज्य की नीति के अनुरूप ही अनुमति दी जा सकती है. अत: इस संदर्भ में लागू नीति के अनुसार याचिकाकर्ता द्वारा दायर 4 अगस्त 2017 के आवेदन पर विचार करने तथा यथासंभव शीघ्रता से 8 सप्ताह के भीतर निर्णय लेने के निर्देश वन विभाग के अधिकारियों को दिए.