SC ने केंद्र की दलील स्वीकार की कि 2011 में OBC की संख्या जानने को जातिगत जनगणना नहीं हुई थी. परिवारों का पिछड़ापन जानने का सर्वे हुआ था. लेकिन वह आंकड़ा त्रुटिपूर्ण है, इस्तेमाल करने लायक नहीं है.
नई दिल्ली: ओबीसी ( OBC) पर केंद्र से 2011 जनगणना के आंकड़े मांगने की महाराष्ट्र सरकार की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब केंद्र सरकार ने कहा है कि ये डेटा अनुपयोगी है और गलतियों से भरा है तो राज्य सरकार की इस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है. चूंकि OBC का डेटा एकत्र करने की कवायद थकाऊ है, इसलिए महाराष्ट्र राज्य ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाकर महाराष्ट्र में OBC के बारे में जानकारी मांगी थी जो 2011 की जनगणना के दौरान केंद्र के पास उपलब्ध थी. दरअसल, इस याचिका के जवाब में केंद्र के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राज्य की याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि पिछड़े वर्गों की जनगणना “प्रशासनिक रूप से कठिन” है और “पूर्णता और सटीकता दोनों के कारण भुगतना पड़ सकता है.
केंद्र सरकार ने एक हलफनामा दायर कर कहा कि उसने 7 जनवरी, 2020 को एक अधिसूचना जारी कर आगामी 2021 की जनगणना में जानकारी एकत्र करने का प्रावधान किया है, जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित जानकारी शामिल है, लेकिन जाति की किसी अन्य श्रेणी का उल्लेख नहीं है . हलफनामे में कहा गया है कि आगामी जनगणना से किसी भी अन्य जाति के बारे में जानकारी को बाहर करने का सरकार द्वारा एक “सचेत नीतिगत निर्णय” लिया गया है. इसलिए, केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से जनगणना विभाग को आगामी 2021 की जनगणना में ग्रामीण भारत में BCC से संबंधित सामाजिक-आर्थिक डेटा की गणना को शामिल करने के लिए कोई निर्देश जारी नहीं करने का आग्रह किया. क्योंकि ये एससी-एसटी एक्ट की धारा 8 के तहत तय किए गए नीतिगत फैसले में दखल देने के समान होगा.
केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि एससी और एसटी पर जनगणना के आंकड़ों के संग्रह के लिए जनादेश के विपरीत, OBC / BCC की जनगणना के आंकड़े प्रदान करने के लिए रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त, भारत के लिए ऐसा कोई संवैधानिक आदेश नहीं है. जनसंख्या जनगणना, जाति के विवरण के संग्रह के लिए आदर्श साधन नहीं हैं. संचालन संबंधी कठिनाइयां इतनी अधिक हैं कि एक गंभीर खतरा है कि जनगणना के आंकड़ों की बुनियादी अखंडता से समझौता किया जा सकता है और मौलिक जनसंख्या गणना स्वयं विकृत हो सकती है. सरकार ने यह भी बताया कि कई उच्च न्यायालयों के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय ने अतीत में, महाराष्ट्र सरकार द्वारा मांगी गई जातिवार जनगणना के लिए समान राहत देने से इनकार कर दिया है.
जवाब में OBC डेटा के संग्रह के संबंध में मुद्दों का हवाला दिया गया, जिसमें दावा किया गया कि कई राज्यों में अनुसूचित जाति को OBC प्रविष्टि के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. दरअसल महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (MSCBC) द्वारा राज्य भर में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना करने का निर्णय लेने के बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है . महाराष्ट्र विधानसभा ने इस साल राज्य में OBC आबादी पर डेटा संकलित करने के लिए 2011 की जनगणना के आंकड़ों के लिए केंद्र से संपर्क करने के लिए सदन में एक प्रस्ताव पारित किया था. केंद्र द्वारा 2011 की जनगणना के आंकड़े त्रुटियों का हवाला देते हुए आज तक जारी नहीं किए गए हैं .
सुप्रीम कोर्ट ने 2011 जनगणना में सामने आए सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन के आंकड़े सार्वजनिक करने का आदेश देने से इनकार कर दिया है. महाराष्ट्र सरकार के आंकड़े सार्वजनिक करने की मांग ठुकरा दी है. SC ने केंद्र की दलील स्वीकार की कि 2011 में OBC की संख्या जानने को जातिगत जनगणना नहीं हुई थी. परिवारों का पिछड़ापन जानने का सर्वे हुआ था. लेकिन वह आंकड़ा त्रुटिपूर्ण है इस्तेमाल करने लायक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब केंद्र कह रहा है कि SECC 2011 डेटा अशुद्धियों से भरा है तो हम ये आदेश कैसे जारी कर सकते हैं. यदि केंद्र द्वारा लिया गया स्टैंड ये है तो हम यह समझने में विफल हैं कि आरक्षण के लिए महाराष्ट्र को डेटा उपलब्ध कराने के लिए केंद्र को आदेश कैसे दिया जा सकता है . ऐसे निर्देश केवल भ्रम पैदा करेंगे. इस प्रकार हम मामले में अपने रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग करने से इनकार करते हैं.