नागपुर: 7 जून को नागपुर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे पूर्व राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुख़र्जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। यह कोई पहला मौका नहीं होगा जब संघ की विचारधारा से या अन्य राजनीतिक दल से जुड़ा रहा कोई व्यक्ति संघ के किसी कार्यक्रम में शिरकत कर रहा हो लेकिन ये पहला मौका होगा, जब राष्ट्रपति पद पर रह चुका व्यक्ति संघ के भावी प्रचारकों को संबोधित करेगा। दिलचस्प यह भी है की बतौर कांग्रेस नेता रह चुके मुख़र्जी जीवन भर संघ की मुखालपत करते रहे है और बाकायदा कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में संघ के ख़िलाफ़ प्रस्ताव भी रख चुके है। जानकारों की माने तो मुख़र्जी का आना परंपरा का हिस्सा भले हो लेकिन इसे असमान्य रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। संघ ने मुख़र्जी को क्यूँ आमंत्रित किया और उन्होंने निमंत्रण क्यूँ स्वीकार्य किया इसके पीछे का मक़सद 7 जून को उनके भाषण के बाद ही सामने आयेगा। लेकिन इतना तय है बदलते परिवेश में संघ उसको लेकर बनाये गए मिथ को तोड़ने का प्रयास कर रहा है और मुख़र्जी इसके लिए बड़े हाँथियार साबित हो सकते है। इस पूर्व राष्ट्रपति को निमंत्रित कर संघ ने सेकुलरिज्म की आड़ में राजनीति करने वाले दल और उसका हमला करने वाले लोगों को क़रार ज़वाब दिया है।
वर्षो से संघ पर नज़र ऱखने वाले पत्रकारों का इस घटना को लेकर अपना अपना विश्लेषण है। नागपुर टुडे ने पत्रकारों से बात कर मुख़र्जी के इस दौरे पर उनकी राय जानी।
वरिष्ठ पत्रकार एस एन विनोद के नज़रिये से डॉ प्रणब मुख़र्जी का दौरा सामान्य घटना नहीं है। संघ द्वारा भले ये दलील दी जा रही
हो की उनके यहाँ वैचारिक संवाद की स्वस्थ परंपरा है लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए की राजनीतिक जीवन में मुख़र्जी संघ के प्रखर आलोचक रहे है। चर्चा इस बात को लेकर हो रही है की मुख़र्जी संघ शिक्षा वर्ग – तृतीय वर्ष समापन समारोह में जाये या न जाये लेकिन ये चर्चा बेमानी है। राष्ट्रपति बनने के बाद भले व्यक्ति राजनीतिक क्षेत्र का हो वह उससे परे हो जाता है।
चर्चा तो इस बात पर होनी चाहिए की संघ ने उन्हें बुलाया क्यूँ और उन्होंने आना क्यूँ स्वीकार्य किया। ये दोनों अहम सवालों के ज़वाब 7 जून को उनके संबोधन के बाद के बाद ही मिलेंगे। मगर इतना तय है की संघ और मुख़र्जी दोनों का इसके पीछे कोई ख़ास मक़सद जरूर है। मुख़र्जी वैचारिक और सुलझे हुए व्यक्ति है वो कोई फ़ैसला ऐसे ही नहीं लेंगे। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए मुख़र्जी भले ही कांग्रेस के प्रति निष्ठावान रहे हो लेकिन एक बार वो पार्टी छोड़ चुके थे और तीन बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए यानि उनके अपने ही दल में उन्हें अंतर्विरोध का सामना करना पड़ा जिसके पीछे की सबसे बड़ी वजह पार्टी के भीतर व्यक्ति केंद्रित राजनीति ही थी।
वर्तमान में सत्तासीन बीजेपी का चरित्र भी व्यक्ति केंद्रित हो चला है जबकि संघ का कार्य संगठनात्मक रूप से होता है। यह सबको सामूहिकता से काम करने की शिक्षा दी जाती है और संघ शिक्षा वर्ग – तृतीय वर्ष से निकलने वाले स्वयंसेवक प्रचारक बनते है जिनका संघ के संगठन में सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। बीजेपी संघ का हिस्सा है और सरकार के लोग सार्वजनिक तौर पर संघ से जुड़ने का अभिमान व्यक्त करते है। ये विशुद्ध रूप से राजनीति है इसमें हर कोई शामिल है। लेकिन डॉ मुख़र्जी के इस दौरे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। चर्चा उनके भाषण के बाद होनी चाहिए।
हिंदुस्तान टाइम्स के असोसिएट एडिटर प्रदीप मैत्र के मुताबिक इस निमंत्रण को स्वीकार्य कर डॉ मुख़र्जी ने वैचारिक मतभेद से घिरी और
छुआछूत वाली राजनीति को तोड़ने का प्रयास किया है। उनके इस फ़ैसले का स्वागत करना चाहिए इसके पहले भी संघ के कार्यक्रमों में विचारों से मेल न खाने वाले लोगों ने हिस्सा लिया है। लेकिन पूर्व राष्ट्रपति का संघ के कार्यक्रम में आना असमान्य बात नहीं है। बदलते परिवेश में संघ भी अपने आप को बदल रहा है और वाले दिनों में ऐसे कई बदलाव देखने को मिलेंगे। हार्डकोर कांग्रेसी और सेक्युलर इमेज़ रखने वाले बड़े नेता को बुलाकर संघ ने अपने उन वैचारिक विरोधियों को क़रार ज़वाब दिया है जो संकुचित सोच और ख़ास क़िस्म के एजेंडे का आरोप लगाकर संघ की आलोचना करते है। इसे संघ द्वारा खुद को सर्वसामावेशी और खुली सोच के रूप में स्थापित करने के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए।
आने वाले दिनों में अगर हम मुस्लिम, सिख, बौद्ध, क्रिश्चन या किसी अन्य धर्म से जुड़े युवकों को स्वयंसेवक ले रूप में देखें तो इस पर ज़्यादा आश्चर्य
नहीं होना चाहिए। इस बदलाव की शुरुवात हो चुकी है। राजीव गाँधी सरकार में मंत्री रहे पार्टी के वरिष्ठ नेता आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने सरकार द्वारा प्रस्तुत मुस्लिम पर्सनल लॉ बिल पर विरोध की वजह से कांग्रेस छोड़ दी थी। जिसके बाद उन्होंने संघ में मुस्लिमों को भी शामिल किये जाने की वक़ालत की थी।
वरिष्ठ पत्रकार और तरुण भारत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुनील कुहिकर पूर्व राष्ट्रपति के संघ दौरे को सामान्य मानते है। उनका कहना है राष्ट्रपति बनने के बाद व्यक्ति किसी दल का नहीं रहता। वह राजनीति से भी ऊपर उठ जाता है। संघ सामाजिक,सांस्कृतिक संगठन है जिसके
कार्यक्रम में उनके आने के फ़ैसले का स्वागत होना चाहिए। वैसे ये पहला मौका नहीं है कि विपरीत विचार वाले व्यक्ति का संघ से जुड़ाव हुआ हो। राजनीतिक जीवन में मर्यादा होती है जिसे निभाना पड़ता है। ऐसे कई उदहारण है अक़्सर सार्वजनिक जीवन में निवृत्त हो जाने के बाद कई लोग संघ से जुड़ते है। संघ और मुख़र्जी दोनों इसी समाज का हिस्सा है ऐसे में अगर किसी माध्यम से जुड़ाव होता है तो इस पर विरोध होना गलत है। जो विरोध हो रहा है उसका कारण वैस्टर्न इंट्रेस्ट से प्रेरित राजनीति है।
मराठी दैनिक लोकशाही वार्ता के संपादक और संघ को करीब से जानने वाले लक्ष्मणराव जोशी के अनुसार डॉ मुख़र्जी का संघ में आना नॉर्मल बात है इसमें एब्नार्मल सिर्फ इतना है की वो पूर्व राष्ट्रपति रहे है। अब वो किसी राजनीतिक दल का हिस्सा भी नहीं है। ऐसे में वो अपने फ़ैसले लेने के लिए स्वतंत्र है। इस बात का विरोध राजनीति से प्रेरित है। हाँ इस घटना के बाद संघ को गाली देने वालों की राजनीति काफ़ी हद तक प्रभावित होगी।