नागपुर: देश के प्राचीन और समृध्द इतिहास की जब बात होती है तो इसकी शुरुआत हमें सिंधू प्रांत से करनी होती है। भारतीय संस्कृति का उद्गम सिंधू प्रांत से होता है। सिंधी भाषा की सुरक्षा याने भारत की सुरक्षा है। यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने व्यक्ति की है। भारतीय सिंधू सभा की ओर से जरिपटका के दयानंद पार्क में आयोजित चेट्रीचंड महोत्सव में वे बतौर विशेष अतिथी बोल रहे थे। इस दौरान मंच पर भारतीय सिंध सभा के अध्यक्ष घनश्यामदास कुकरेजा, मनपा के स्थायी समिति सभापति वीरेंद्र कुकरेजा, सतीश आनंदानी, राजेश बरवानी, सुनील वासवानी, दीपक बीखानी, अनिल भारद्वाज उपस्थित थे।
सरसंघचालक मोहन भागवत ने आगे बताया कि भारत देश में विभिन्न भाषाएं, वेश, प्रांत आदि हैं। प्रत्येक प्रांत की भोजन संस्कृति अलग है। भाषा, प्रांत, सभ्यता ये भारत देश का अलंकार हैं। साजसज्जा हैं। हर उत्सव में विविधता है। लेकिन इसके बाद भी सबकी भावना एक है। विविधता में एकता की भावना को साथ लेकर चलना ही हमारी संस्कृति है। उन्होंने कहा कि 14 अगस्त का दिन भले ही सिंधी समाज काले दिन के तौर पर मना रहे हों लेकिन भविष्य में सिंधियों की ओर से उसी दिन संत कंवरराम का भजन सिंधी बांधव गाएंगे, वह दिनशुभ होगा।
अपने प्रस्तावना भाषम में घनश्यामदास कुकरेजा ने सिंध संस्कृति का विवेचन करते हुए कहा कि सिंध प्रांत से आया यह समाज भारत को ही सिंध प्रांत मानता है। अपने कतृत्वों से समाज ने यह दर्शा दिया कि यह शरणार्थियों का नहीं बल्कि पुरुषार्थियों का समाज है। इस पुरुषार्थ से समाज ने परमार्थ साधा। अब सिंधी भाषा को जीवित रखने का प्रयास समाज कर रहा है। इस दौरान कुकरेजा ने डॉ. मोहन भागवत को पारंपरिक पगड़ी पहना कर शाल, श्रीफल और स्मृतिचिन्ह दे कर सत्कार किया। मंच संचालन सचदेव ने किया। इस अवसर पर डॉ. विंकी रुघवानी, नगरसेविका प्रमिला मंथरानी, प्रीतम मंथरानी, डॉ. मेघराज रुघवानी, डॉ. अभिमन्यु कुकरेजा, महेश साधवानी, रूपचंद रामचंदानी, किसन आसुदानी उपस्थित थे।