नागपुर: आरटीई ( शिक्षा का अधिकार ) के तहत एडमिशन देने वाली स्कूलों की बकाया निधि करीब 650 करोड़ रुपए है. लेकिन कुछ ही दिन पहले राज्य सरकार ने स्कूलों के लिए केवल 100 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं. जबकि 70 करोड़ रुपए ही अब तक प्रशासन के पास पहुंचे हैं. यह 100 करोड़ रुपए राज्य की करीब 20 हजार इंग्लिश मीडियम स्कूलों के लिए है. जबकि केवल नागपुर जिले में ही आरटीई के तहत एडमिशन देनेवाली स्कूलों का ही बकाया राज्य सरकार पर 45 करोड़ से ज्यादा है. ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि आखिर करोडों रुपए का बकाया रखकर आरटीई के तहत अपने बच्चों का एडमिशन अच्छी स्कूलों में करनेवाले अभिभावकों के साथ सरकार क्यों यह छलावा कर रही है. यह समझ से परे है.
आरटीई के तहत स्कूलों के रजिस्ट्रेशन अब तक केवल एक या दो स्कूलों ने ही किए हैं, जबकि नागपुर जिले की ही बात करें तो करीब 621 स्कूलें ऐसी हैं जो आरटीई के तहत एडमिशन देती हैं. निधि नहीं मिलने के कारण सभी इंग्लिश मीडियम स्कूलों ने नाराजगी व्यक्त करते हुए इस बार राज्य सरकार से बकाया निधि नहीं मिलने तक एडमिशन नहीं देने का कड़ा रुख अपनाया है. जिसके कारण इस बार गरीब अभिभावकों को अपने बच्चों को अच्छी स्कूल में पढ़ाने के सपनों पर ही बादल मंडराते हुए नजर आ रहे हैं. कुछ दिन पहले जिला परिषद के शिक्षणाधिकारी द्वारा जिले की 621 स्कूलों को 44 लाख रुपए वितरित किए गए थे. लेकिन यह रकम बकाया निधि से काफी कम थी.
मिस्टा (महाराष्ट्र इंग्लिश स्कूल ट्रस्टीज एसोसिएशन) के सदस्यों द्वारा कई बार शिक्षणाधिकारी और शिक्षा मंत्री से मुलाक़ात की है. लेकिन हर बार इन संचालकों को केवल आश्वासन ही मिल पाया है. कई महीनों से स्कूल संचालकों की और से कहा जा रहा था कि वे 2018 से वे आरटीई के तहत विद्यार्थियों को एडमिशन नहीं देंगे. बावजूद इसके राज्य सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया. जिसके कारण अब संचालकों के मन को बहलाने के लिए राज्य के 650 करोड़ रुपए के बदले केवल 100 करोड़ ही मंजूर किए गए हैं. जिसमें से भी केवल 70 करोड़ ही प्रशासन के पास पहुंचे हैं और उसमें से भी नागपुर जिले के हिस्से में केवल 2 से 3 करोड़ रुपए ही आएंगे.
मिस्टा (महाराष्ट्र इंग्लिश स्कूल ट्रस्टीज एसोसिएशन) के अध्यक्ष संजय पाटिल ने जानकारी देते हुए बताया कि 100 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं. जबकि 45 करोड़ रुपए अकेले नागपुर के ही हैं. ऐसे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मुंबई और पुणे की स्कूलों का कितना बकाया होगा. नागपुर जिले में लगभग 621 स्कूल हैं, अब ऐसे में अगर शिक्षणाधिकारी के पास कुछ निधि आता भी है तो सभी स्कूल संचालकों में झगड़ने की नौबत आ सकती है. सभी संचालक निधि मांगेंगे और ऐसी स्थिति में निधि वितरित करना ही बंद कर दिया जाएगा. हर एक स्कूल का 40 से 50 लाख रुपए बकाया है.
आरटीई के तहत एक बच्चे की पढ़ाई का खर्च साल भर का करीब 30 हजार रुपए आता है. जबकि सरकार केवल 17 हजार रुपए ही देती है. लेकिन वह भी समय पर नहीं मिल पाते. पाटिल ने कहा कि एक भी स्कूल आरटीई के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं कराएगी. अगर शिक्षणाधिकारी की ओर से कार्रवाई की जाती है. तो वे स्कूल बंद कर विरोध करेंगे. पाटिल ने बताया कि उन्हें विद्यार्थियों के एडमिशन शुरू करने के लिए सामाजिक संस्थाओं की ओर से भी लगातार धमकियां भी मिल रही हैं.