देश में मनोरोग से ग्रस्त सात करोड़ में से केवल 35 लाख लोगों अस्पताल में भर्ती किया जाता है
नागपुर: मानसिक रोग स्किजोफ्रेनिया, बायपोलर, ओब्सेशन कम्पल्शन डिसआर्डर (ओसीडी) के मामलों पर रोगियों को इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थैरेपी यानी शाक ट्रीटमेंट एक प्रभावी उपचार है. इसके अलावा रिपीटिटिव ट्रान्सफैनियल मैग्नेटिक (आरटीएमएस) तथा थीटा बर्स्ट आदि उपचार उपलब्ध हैं. देश में मनोरोग से ग्रस्त सात करोड़ में से केवल 35 लाख लोगों अस्पताल में भर्ती किया जाता है. परंतु उपचार की सुविधा केवल 40 अस्पतालों में हैं जिनमें केवल 26 हजार बिस्तर हैं. सरकारी अस्पतालों की सुविधाएं पर्याप्त नहीं होने के कारण निजी अस्पतालों में उपचार के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचता. इसका उपचार बहुत महंगा है. देश में कैंसर, हृदयरोग जसी कई बीमारियों को बीमा सुरक्षा प्राप्त है. लेकिन मनोरोग मस्तिष्क से संबंधित है और मस्तिष्क शरीर का हिस्सा है. मनारोगी के परिजन किसी भी अन्य रोग की अपेक्षा मनोरोग से ज्यादा परेशान होते हैं. इससे किसी भी परिवार का तानाबाना, आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है. इसलिए विशेषज्ञों ने मनोरोग को इंश्योरेंस में शामिल करने को अनिवार्य होना आवश्यक बताया है.
देश भर में मनोरोग से ग्रस्त लोग अपना जीवन सम्मान और सुरक्षा के साथ जी सकें, इस दृष्टि से मानसिक स्वास्थ्य विधेयक के प्रावधान के अनुसार मनोरोगियों को बीमा सुरक्षा प्रदान करने का स्पष्ट आदेश बीमा नियामक व विकास प्राधिकरण ने दिया है. लेकिन इस आदेश का क्रियान्वयन करने में इंश्योरेंस कंपनियां टालमटोल कर रही हैं. इस परिस्थिति को देखते हुए आखिर प्राधिकरण ने नियमावली तैयार की है. इन नियमों के अनुसार अब मनोरोगियों का भी बीमा सुरक्षा में उल्लेख करना पड़ेगा. प्राधिकरण ने अपने मसौदे (ड्राफ्ट) को आपत्तियों व सुझावों के लिए अपनी वेबसाइट पर डाल रखा है. एक सवेक्षण के मुताबिक भारत में मनोरोगियों की संख्या 7 करोड़ से ज्यादा है.
मानसिक स्वास्थ्य विधेयक में मानसिक स्वास्थ्य को भी इंश्योरेंस कवर में शामिल
मनोरोग में आमतौर पर इलाज बहुत लंबे समय तक चलता है. रोगी के परिजन इसका खर्च उठाने में असमर्थ हो जाते हैं. इसे देखते हुए मानसिक स्वास्थ्य विधेयक में मानसिक स्वास्थ्य को भी इंश्योरेंस कवर में शामिल किया है लेकिन कंपनियां इसे शामिल करने में टालमटोल कर रही हैं. कंपनियों की मानसिक स्वास्थ्य के लिए अतिरिक्त प्रीमियम वसूलने की तैयारी थी. प्राधिकरण ने अपने 16 अगस्त 2018 को जारी परिपत्रक में बीमा कंपनियों को मनोरोग को भी हेल्थ कवर में शामिल करने का आदेश दिया है लेकिन फिर भी कंपनियां इसका पालन नहीं कर रही हैं.
बीमा कंपनियों की इस मनमानी का संज्ञान लेते हुए प्राधिकरण ने हाल ही में 16 मई को इसका मसौदा जारी किया है. इस मसौदे के अनुसार सभी कोई भी बीमा कंपनी अब बीमा सुरक्षा का प्रमाणपत्र जारी करते समय मनोरोग को अपनी सूची से बाहर नहीं कर सकती हैं. उन्हें कवर की जाने वाली बीमारियों की सूची में मनोविकार को भी शामिल करना होगा. इससे पहले कंपनियां अपने प्रमाणपत्र में लिखकर देती थीं कि इंश्योरेंस में मनोरोग कवर नहीं होंगे. अब कंपनियों को बीमा सुरक्षा के दायरे में मनोरोग भी शामिल दिखाना अनिवार्य होगा. इसके अलावा बीमा सुरक्षा लेने के बाद होने वाले विकार या चोट, कृत्रिम रक्षक यंत्रणा, वृद्धावस्था में होने वाले रोगों को भी शामिल किया गया है.