नागपुर: अलग विदर्भ के आंदोलन को 70 साल हो चुके हैं। विदर्भ के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले राजनीतिक नेताओं ने आंदोलन के नाम पर अपनी सियासी रोटियां सेकी है, इसलिए राजनेता कभी भी विदर्भ को अलग प्रांत नहीं बना पाएंगे। इसके लिए राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने विदर्भवादी कार्यकर्ताओं से बातचीत करते हुए स्पष्ट राय व्यक्त करते हुए कहा कि दिल्ली में इस आंदोलन का दबाव तभी बढ़ेगा जब विदर्भ के कार्यकर्ताओं को विदर्भ आंदोलन में शामिल किया जाएगा। यह आंदोलन नागपुर में केंद्रित है तथा 70 साल से चल रही है।
अलग विदर्भ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले राजनीतिक नेताओं के कंधों पर ही इस प्रस्तावित राज्य की स्थापना करने की जिम्मेदारी निभानी होगी। लेकिन इस आंदोलन में कुछ ऐसे भी नेता निकले जिन्होंने आंदोलन के नाम पर केवल अपनी राजनैतिक उद्देश्यों को प्राप्त किया। इसलिए राजनीतिक नेता कभी भी विदर्भ को महाराष्ट्र से अलग नहीं कर पाएंगे, इसके लिए विदर्भवादियों को विदर्भ के आंदोलन में अलग अलग क्षेत्रों से लोगों से जोड़ना होगा। राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने विदर्भवादी कार्यकर्ताओं से बातचीत करते हुए उनके समक्ष स्पष्ट राय व्यक्त की कि यदि ऐसा किया जाए तभी दिल्ली में इस आंदोलन का दबाव बढ़ेगा।
मैं अभी विदर्भ के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहा हूं
अलग विदर्भ क्यों होना चाहिए, इसके अलग-अलग कारण हैं। अब तक छोटे बडे पैमाने पर आंदोलन जरूर हुआ है लेकिन सफलता नहीं मिली है। आंदोलन में नया उत्साह भरने के लिए एक अलग पार्टी और एक अलग मंच स्थापित किया जाना चाहिए और इस बारे में अभी तक ऐसी कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई है। प्रशांत किशोर ने कहा कि मुझे केवल विदर्भ के बारे में जानकारी प्राप्त करनी है और जल्द ही इस बारे में मैं एक रणनीति तैयार करूंगा कि कैसे जानकारी को सांचे में ढालकर इस आंदोलन को आगे बढ़ाया जाए।
जून 2023 तक सक्रिय सदस्यों को जोड़ा जाएगा
मैं इस आंदोलन में अपनी ताकत और बुद्धि का उपयोग करने जा रहा हूं। शुरुआत में, मैं 50 लोगों की एक कार्य समूह समिति बनाना चाहता हूं। प्रत्येक ग्राम पंचायत से एक सदस्य को इस आंदोलन से जोड़ा जाना है और विदर्भ के 10 हजार सक्रिय लोगों के बाद संयुक्त कार्रवाई समिति का गठन किया जाना है। इसके लिए प्रशांत किशोर ने 10 हजार सक्रिय लोगों से अगले 23 जून तक आंदोलन में शामिल होने की अपील की है।
10 लोकसभा सीटों वाला क्षेत्र एक छोटा राज्य कैसे?
विदर्भ की अवधारणा छोटे राज्य की अवधारणा से जुड़ी नहीं है, केवल छोटे राज्यों की बात यदि दरकिनार करें तो स्वाभाविक है कि इस क्षेत्र की भौगोलिक आर्थिक और सामाजिक स्थितियों से यह मुद्दा जुडा हुआ है। इसलिए अलग विदर्भ राज्य के मुद्दे को केवल छोटे राज्यों की स्थापना के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। प्रशांत किशोर ने कहा कि यहां 10 लोकसभा सीटें हैं, इसलिए इतने निर्वाचन क्षेत्रों वाले प्रस्तावित को छोटा नहीं कहा जा सकता।