हर साल 31 मई को संपूर्ण भारतवर्ष में पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर जयंती बड़ी धूम धाम से मनाई जाती है ..इस वर्ष कोरोना महामारी की वजह से यह जयंती सार्वजनिक तौर पर मनाना मुश्किल है | इस अवसर पर “31 मई को हम सब घर पर रहकर ही पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर जयंती मनाए; सुबह 9 बजे अहिल्या माता की प्रतिमा एवं मूर्ति का पूजन करे और रात को ठीक 8 बजे अपने घर के आगे कम से कम 5 दीप जलाए” ऐसी अपील धनगर समाज संघर्ष समिति महाराष्ट्र राज्य के संस्थापक अध्यक्ष, सांसद एवं पद्मश्री पुरस्कृत नेत्रतज्ञ डॉ विकास महात्मे ने की है।
माता अहिल्या देवी के बारे मे वैसे तो सभी जानते है लेकिन कुछ विशेषताएं जो कि मानव जीवन को बदल सकती है, मानवता का संदेश विश्व के लिए दे सकती है, जैसे –
वे 28 साल तक शांतीपूर्वक, लोककल्याणकारी राज्य करनेवाली एक सशक्त महिला थी
अहिल्यादेवी अत्यंत कुशल प्रशासन के लिये जानी जाती थी
उनकी न्यायप्रणाली आदर्श मानी जाती है |
पुरे देश में उन्होने जगह जगह घाट बनाये; मंदिर बनाये; लोगोंमे नैतिक मूल्य जगाए |
वे कहती थी – ” सदगुण की कोई जाति नही होती; न शौर्य का कोई धर्म!”
“मेरा कार्य प्रजा को सुखी करना है। मेरे हर कृत्य के लिए मै खुद जिम्मेदार हूँ।” यह उनके विचार उनके राजगद्दी के पीछे लिखे हुए थे। आज की परिभाषा मे जिसे हम Mission Statement (जीवन लक्ष कथन) कह सकते हैं।
पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर धनगर समाज की थी | महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि पुरे देश में बड़ी मात्रा में इस घुमन्तु समुदाय के लोग रहते है; भेडीपालन व मेषपालन करते है और पाल, बघेल, गडरिया, कमरू, गायरी, पुर्बिया, कुरबा, कुरूमा, कुरूम्बर, ग्वाला, रेबारी, भरवाड, देवासी, मलधारी, गाडरी, गद्दी, गोला, कुरूम्बास, कुरूम्बर, गोंडा आदि विभिन्न नामों से जाने जाते है | ये सब अहिल्यादेवी को अपना आदर्श मानते है, उनकी पूजा करते है |
जयंती के अवसर पर पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर को शत शत नमन।
“दीपोत्सव है प्रतीक रोशनी का,
अहिल्या माता पर मेरी श्रद्धा का
दूर करे अंध:कार सब के जीवन का
यही विश्वास हैं हम सब का”