नागपुर: कीटनाशक दवाईयों के छिड़काव की वजह से हुई मौतों की जाँच के लिए गठित एसआइटी की सामने आयी रिपोर्ट पर सामाजिक कार्यकर्त्ता किशोर तिवारी ने गुस्सा जाहिर किया है। तिवारी के मुताबिक यह रिपोर्ट किसानों का अपमान करने वाली है। इस रिपोर्ट को कैबिनेट में मंजूरी देने वाली सरकार लापरवाह और असंवेदनशील है। किसानों पर ही मौत का मामला दर्ज करने की सिफारिश करने वाली रिपोर्ट सरकार को ख़ारिज करनी चाहिए थे लेकिन उसे मंजूरी दी गई। इससे बड़ा अपमान किसानों का हो नहीं सकता।
तिवारी ने इस तरह की रिपोर्ट बनाने वाले अधिकारियों पर ही मामला दर्ज करने की माँग की है। विदर्भ में जहरीली कीटनाशक दवाईयों का फसलों पर छिड़काव किये जाने की वजह से 50 से ज्यादा किसानों की मृत्यु हो गयी थी। इसी मामले की जाँच के लिए राज्य सरकार ने अमरावती के विभागीय आयुक्त पियूष पांडे की अध्यक्षता में सात सदस्यीय कमिटी का गठन किया था।
इस कमिटी द्वारा बनाई गई रिपोर्ट को कैबिनेट में मंजूरी देने के बाद हाईकोर्ट को रिपोर्ट सौंपी गयी। कोर्ट में जब रिपोर्ट का बंद लिफ़ाफ़ा खोला गया तो इस रिपोर्ट ने सबको चौका दिया। रिपोर्ट में जिन किसानों ने अपने खेतों में ज़हरीली कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव किया है उन पर ही मृत्यु का मामला दर्ज करने की सिफारिश की गई है। तिवारी के अनुसार जिस किसी ने यह रिपोर्ट तैयार की है असल में किसानों की मौत के वही जिम्मेदार है। सरकार, प्रशासन की लापरवाही और कॉर्पोरेट लॉबी के दबाव में यह रिपोर्ट तैयार किये जाने का आरोप तिवारी ने लगाया।
वसंतराव नाईक किसान स्वावलंबन मिशन के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने उनके द्वारा की गई सिफारिशों को नजरअंदाज किये जाने की बात भी कही है। रिपोर्ट में किसानों से जुड़े मूल मुद्दों को अनदेखा किया गया देश में कीटनाशक दवाईयों के छिड़काव से सम्बंधित कोई ठोस कानून नहीं है। वर्ष 1968 में बना कानून तब डीडीटी मच्छरों को मारने के लिए था। लेकिन धीरे धीरे कीटनाशक दवाईयों का इस्तेमाल फसलों पर होने लगा। अब तक इन दवाईयो के दुष्परिणाम को रोकने के लिए एंटी डोज भी नहीं बनाया गया।