फिटनेस नहीं होने के चलते गाड़ियां कई दिनों तक सड़कों पर नहीं उतर पाती
नागपुर: विभिन्न प्रकार के टैक्स देने के बाद भी ट्रांसपोर्टरों की परेशानी कम होने का नाम नहीं लेती. उचित माल भाड़ा नही मिलने की वजह से ट्रांसपोर्टरों द्वारा अड़चनों का सामना किया जा रहा, वहीं आरटीओ अधिकारियों की बढ़ती मनमानी के चलते और अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. वाहनों की फिटनेस सर्टिफिकेट के लिए 1-1 माह का समय लगाया जा रहा है. हालत यह है कि ट्रांसपोर्टर यदि बिना फिटनेस की गाड़ी बाहर चलाते हैं, तो 10,000 का जुर्माना ठोंका जाता है. फिटनेस नहीं होने के चलते गाड़ियां कई दिनों तक सड़कों पर नहीं उतर पाती. इस तरह से हर तरफ से नुकसान ही ट्रांसपोर्टरों को झेलना पड़ रहा है. वहीं डीजल की दरें दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, लेकिन उस अनुपात में भाड़े नहीं बढ़ने से छोटे-छोटे ट्रांसपोर्टरों की हालत बद से बदतर हो गई है.
सूत्र बतलाते हैं कि आरटीओ द्वारा हर बार कर्मचारियों की संख्या की कमी का रोना रोकर ट्रांसपोर्टरों को परेशान किया जा रहा है. 1-1 माह तक फिटनेस सर्टिफिकेट के लिए झुलाया जा रहा है. गाड़ियों की फिटनेस के लिए 2 दिन का समय लगता है. इसके बावजूद इतने दिनों तक लटकाया जाता है. एक बार गाड़ी की फिटनेस हो भी गई, तो आरटीओ इंस्पेक्टरों द्वारा 5 से 6 दिन का समय लगाया जाता है. वाहन फिटनेस के लिए 12 चक्के की 800 रुपये और 10 चक्के की 600 रुपये सरकारी राशि है. इसके बावजूद इस राशि से अधिक रिश्वत ट्रांसपोर्टरों से आरटीओ द्वारा वसूली की जाती है. इसी तरह रिश्वत ले-लेकर कुछ आरटीओ इंस्पेक्टरों की बड़ी-बड़ी बसें और ट्राली चल रही हैं. वहीं कुछ के ब्याज पर भी पैसे चल रहे हैं. इसके साथ ही अन्य तरह के काम किए जा रहे हैं. जब तक आरटीओ द्वारा वाहनों को फिटनेस सर्टिफिकेट दे नहीं दिया जाता, तब गाड़ी सड़क पर नहीं चल सकती. उन्होंने कहा कि आरटीओ अधिकारियों की मनमानी और प्रशासन को पूरा-पूरा टैक्स देने के बावजूद ट्रांसपोर्टरों के साथ इस तरह का व्यवहार किया जाना ठीक नहीं है. आज प्रशासन की ज्यादती के कारण ही ट्रांसपोर्ट व्यवसाय समाप्त होते जा रहा है. आरटीओ का हमेशा का ही रोना हो गया है कि कम कर्मचारी होने के वजह से गाड़ियों के फिटनेस में विलंब हो रहा है. लेकिन अब आरटीओ की ज्यादती और नहीं सही जाएगी. आगे इसी तरह का रवैया रहा, तो तीव्र आंदोलन किया जाएगा.
आरटीओ की देखरेख में बार्डर और शहर की सीमाओं से ओवरलोडेड ट्रकों को रिश्वत लेकर धड़ल्ले से छोड़े जाते हैं. 40,49 व 31 तीनों आरटीओ के कुछ इंस्पेक्टरों द्वारा बड़ी मात्रा में राशि लेकर इन्हें छोड़ा जाता है. इस तरह से यह अपने निजी फायदे के लिए सरकार को करोड़ों का चूना लगा रहे हैं. आरटीओ इंस्पेक्टरों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए ओवरलोडेड वाहनों पर कार्रवाई करनी चाहिए, जबकि यह स्वयं ही पैसे खाने के लिए ओवरलोड गाड़ियां चलाने के लिए कहते हैं. इसमें देवरी, सावनेर, मनसर, तुमसर बार्डर से इनकी लाखों रुपये की इनकम होती है. इसमें देवरी बार्डर से रोज 2500 से 3,000 गाड़ियां पास होती हैं. 1-1 गाड़ी से 200 से 500 रुपये की वसूली की जाती है. इस तरह से करोड़ों रुपये यहां से आते हैं. ऐसे इंस्पेक्टरों और जो सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारियों की सीबीआई व एंटी करप्शन द्वारा जांच होती है, तो इनके पास अच्छा-खास माल निकलेगा. आरटीओ ही नहीं ट्रांसपोर्टर टोल वालों की मनमानी से भी काफी परेशान हो चुके हैं. ट्रकों में माल ओवरलोड नहीं रहेगा, तो सड़कों की हालत भी ठीक रहेगी. ओवरलोडेड वाहनों के वजह से ही सड़कें खराब होती हैं. इसका खामियाजा भी ट्रांसपोर्टरों को ही भुगतना पड़ता है.
आरटीओ निरीक्षकों द्वारा बार्डरों पर चलाए जाने वाले एंट्री कार्ड बंद होने चाहिए. इससे जमकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है. इससे शहर और बार्डरों पर जमकर रिश्वत का धंधा चलाया जा रहा है. वहीं नागपुर से मुंबई के बीच चलने वाली गाड़ियों के 40,000 लियए जाते हैं. वहीं रेती के प्रति वाहन से तीनों आरटीओ को मिलाकर 9,000 रुपये वसूले जाते हैं. इसमें अमरावती के कार्ड 6,000 रुपये, अकोला 4500, बुलढाना के 3,000, जलगांव के कार्ड के 4,000, धुलिया का 7,000 और नागपुर में 6,000 रुपये प्रति ट्रक लिये जाते हैं. यह एंट्री कार्ड जिसके पास रहते हैं, उन्हें परेशान नहीं किया जाता है, लेकिन जो गाड़ी वाला पैसा नहीं देता, उसका चालान बनाकर परेशान किया जाता है. इस तरह से नीचे से ऊपर तक सबकी मिलीभगत चलती है.