Published On : Fri, May 10th, 2019

रूह अफजा के बनने से लेकर मार्केट से गायब होने तक की पूरी कहानी

बात 1907 की है, दिल्ली में लोग भीषण गर्मी से परेशान थे और बीमार पड़ रहे थे. तब पुरानी दिल्ली के लाल कुआं बाजार में एक हकीम ने लोगों को ठीक करने के लिए एक दवा इजाद की. यह दवा कुछ और नहीं बल्कि रूह अफजा ही था.

रूह अफजा के मार्केट से गायब होने पर इसकी किल्लत साफ देखी जा रही है. इसके बाजार में उपलब्ध न होने पर तरह-तरह की अफवाहें हैं, लेकिन रूह अफजा बनाने वाली कंपनी हमदर्द से जुड़े आधिकारिक लोगों का कहना है कि यह हफ्ते-दस दिन में मार्केट में उपलब्ध हो जाएगा.

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हम आपको बताते हैं कि रूह अफजा के बनने से लेकर मार्केट से गायब होने की पूरी कहानी. कब और कैसे रूह अफजा मार्केट में आया और कैसे गायब हो रहा है?

पहली बार कहां बना रूह अफजा?

रूह अफजा यूनानी हर्बल चिकित्सा के एक हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने ठीक 113 साल पहले गाजियाबाद में इजाद किया था. साल था 1906. इसी साल उन्होंने पुरानी दिल्ली के लाल कुआं बाजार में हमदर्द नामक एक क्लीनिक खोली थी. 1907 में दिल्ली में भीषण गर्मी और लू से काफी लोग बीमार पड़ने लगे. तब हकीम अब्दुल मजीद मरीजों को इसी रूह अफजा की खुराक देने लगे. लू और गर्मी से बचाने में हमदर्द का रूह अफजा कमाल का साबित हुआ.

देखते ही देखते यह दवाखाना रूह अफजा की वजह से पहचाना जाने लगा. रूह अफजा सिर्फ दवा न होकर लोगों को गर्मी से राहत देने का नायाब नुस्खा बन गया और हमदर्द दवाखाना से बड़ी कंपनी बन गई. रूह अफजा मुस्लिम परिवारों में खूब फेमस हो गया, क्योंकि रमजान के दौरान रोजेदार इस ठंडे पेय को इफ्तारी के वक्त पीते थे.

ऐसे पाकिस्तान पहुंचा रूह अफजा

हकीम हाफिज अब्दुल मजीद के दो बेटे थे जो उनके इस व्यवसाय में हाथ बटाते थे. 1947 में देश के विभाजन के बाद हमदर्द कंपनी भी दो हिस्सों में बंट गई. अब्दुल मजीद के निधन के बाद उनके बड़े बेटे भारत में रह गए जबकि छोटे बेटे हकीम मोहम्मद सईद पाकिस्तान चले गए. पाकिस्तान में उन्होंने कराची में हमदर्द की शुरुआत की. यहां रूह अफजा खूब पसंद किया जाता है और यह पाकिस्तान का जाना-पहचाना ब्रैंड है.

यही कंपनी भारत में रूह अफजा की किल्लत को देखते हुए वहां से इसकी सप्लाई का ऑफर कर रही है. अब अब्दुल माजिद की तीसरी पीढ़ी यानी उनके पोते कंपनी को संभाल रहे हैं. बताया यह जा रहा है कि इन्हीं के पोते अब्दुल मजीद और उसके कजीन हमद अहमद के बीच कंपनी के नियंत्रण को लेकर विवाद चल रहा है. इसी का प्रोडक्शन नहीं हो पा रहा है. हालांकि कंपनी सिर्फ इसे एक कोरी अफवाह बता रही है.

करोड़ों का कारोबार

1948 से हमदर्द कंपनी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रूह अफजा का उत्पादन कर रही हैं. रूह अफजा के अलावा कंपनी के जाने-माने उत्पादों में साफी, रोगन बादाम शिरीन और पचनौल जैसे उत्पाद शामिल हैं. दि हिंदू बिज़नेस लाइन की 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली, मानेसर और गाजियाबाद में हमदर्द के तीन प्लांट हैं और पिछले साल कंपनी औरंगाबाद में अपना चौथा प्लांट बनाने की तैयारी में थी.

रिपोर्ट के मुताबिक 2018 के वित्त वर्ष में कंपनी का टर्नओवर 700 करोड़ का था. लेकिन हमदर्द के चीफ सेल्स मंसूर अली का कहना है कि गर्मी में 400 करोड़ के इस ब्रांड की बिक्री 25 फीसदी तक बढ़ जाती है.

जब जूही चावला बनी ब्रैंड एंबेसडर

साल 2008-09 में आर्थिक मंदी से हमदर्द के रूह अफजा की तरलता गाढ़ी होनी लगी तो कंपनी ने प्रचार-प्रसार पर खर्च करने की सोची. इसके लिए मशहूर अदाकारा जूही चावला को कंपनी ने प्रचार-प्रसार के लिए हायर किया था. इसके बाद कंपनी ब्रैंड के प्रचार-प्रसार के लिए भी नित नए प्रयोग करती आ रही है.

अब आगे क्या होगा?

वहीं हमदर्द के चीफ सेल्स मंसूर अली का कहना है कि कुछ हर्बल सामानों की आपूर्ति की कमी की वजह से प्रोडक्शन रुक गया था. क्योंकि इसमें इस्तेमाल होने वाले हर्बल विदेश से आयात किए जाते हैं, आयात में कमी की वजह से ऐसी स्थिति पैदा हुई थी. उन्होंने कहा कि हफ्ते-दस दिन में डिमांड और सप्लाई के अंतर को ठीक कर दिया जाएगा.

मंसूर अली की मानें तो गर्मी में 400 करोड़ के इस ब्रांड की बिक्री 25 फीसदी तक बढ़ जाती है. अब जब कंपनी फिर एक हफ्ते में रूह अफजा आसानी से मिलने की बात कह रही है तो ग्राहकों में एक उम्मीद जगी है.

किन चीजों से बनता है रूह अफजा?

रूह अफजा का सिरप बनाने के लिए काफी सारी जड़ी बूटियों, फूलों और फलों का इस्तेमाल होता है. इसमें पीसलेन, चिक्सर, अंगूर-किशमिश, यूरोपीय सफेद लिली, ब्लू स्टार वॉटर लिली, कम, बोरेज, धनिया जैसी जड़ी-बूटियां होती हैं तो फलों में नारंगी, नींबू, सेबस जामुनस स्ट्रॉबेरी, रास्पबेरी, चेरी और तरबूज जैसे फल का इस्तेमाल होता है.

जबकि सब्जियों में पालक, गाजर, टकसाल, माफी हफ्गें और फूलों में गुलाब, केवड़ा डाला जाता है. एक खास किस्म की जड़ी वेटिवर भी इसके सिरप में डलती है.

Credit: ददन विश्वकर्मा ( aajtak )

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