नागपुर– शहर में श्वानों की नसबंदी पर नागपुर महानगर पालिका की ओर से ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इस मामले में मनपा की ओर से लापरवाही की जा रही है. इसके अलावा श्वानों को लेकर और डॉग कैचिंग वैन के संदर्भ में और भी कई प्रश्न शहर के एक श्वान के अधिकारों के लिए लड़नेवाली एनजीओ की ओर से मनपा से मांगे गए थे, लेकिन किसी भी प्रश्न का जवाब मनपा की ओर नहीं दिया गया है. ‘ शहर की एक संस्था जो लावारिस और बेघर श्वानों का इलाज कराती है और उनकी देखरेख करती है, ‘ सेव स्पीचलेस आर्गेनाइजेशन ‘ की फाउंडर स्मिता मिरे ने नागपुर महानगर पालीका को पिछले साल 11 नवंबर 2019 को आरटीआई के द्वारा मनपा के स्वास्थ विभाग को जानकारी मांगी थी.
इस जानकारी में शहर में नसबंदी के लिए कितना पैसा मान्य हुआ है, और इसमें से कितना खर्च किया गया है, 2017 से कितना निधि मिला है और निधि दिए जाने के बाद भी नसबंदी अनियमित है क्या, 1 जनवरी 2017 से लेकर 20 फरवरी 2020 तक कितने श्वानों की नसबंदी की गई, और इनमें से कितने श्वानों की नसबंदी के दौरान मौत हुई है. नसबंदी कहां हुई है और उसके क्या सबूत है, 12 अगस्त 2019 को स्मिता द्वारा दिए गए 2 श्वान अचानक कहां गायब हुए, उसकी पूर्व सुचना इन्हे क्यों नहीं दी गई, इसके लिए जिम्मेदार कौन है, और इस लापरवाही के लिए कर्मचारियों को क्या शिक्षा हुई, महाराजबाग के पास नसबंदी केंद्र की दो दिन की सीसीटीवी फुटेज देने की मांग, ऑपरेशन थेटर में सीसीटीवी कैमरा क्यों चालू नहीं है, अगर कैमरा है तो वो चालु क्यों नहीं रहता, केंद्र में आने के बाद से जाने तक के रिकॉर्ड कैमरे में क्यों नहीं रहते, एनेस्थीसिया जैसे इंजेक्शन सफाई-कर्मचारियों की ओर से श्वानों को क्यों लगायें जाते है. इन जानकारियों के अलावा और भी जानकारी स्मिता मिरे ने मांगी थी, लेकिन मनपा की ओर से किसी भी तरह का जवाब अब तक नहीं दिया गया है. जिसके कारण यह देखा जा सकता है की श्वानों को लेकर और अन्य जानवरों को लेकर मनपा का उदासीन रवैय्या है.
इस लापरवाही को लेकर स्मिता मिरे ने ‘ नागपुर टुडे ‘ को जानकारी देते हुए बताया की शहर में जो मुहीम शुरू की गई थी नसबंदी की, उसको लेकर क्या किया जा रहा है, इसकी कोई भी जानकारी पशु प्रेमियों को नहीं है. श्वानों को लेकर किसी भी तरह की जिम्मेदारी या खबरदारी मनपा की ओर से नहीं की जाती है. एक जगह से अगर श्वानों को उठाया जाता है तो दूसरी जगह पर जाकर उन्हें छोड़ दिया आता है. उन्होंने कहा की श्वानो को जो गाडी पकड़ने जाती है, उसपर जीपीएस नहीं होने के कारण मनपा अधिकारियो को पता ही नहीं होता कि गाडी आखिर कहां है और किस जगह से श्वानों को उठाकर किस जगह पर इन्हें छोड़ा जाता है.
स्मिता का कहना है की किसी एरिया में अगर किसी को श्वानों से परेशानी है तो वे फ़ोन करते है और उसके बाद यहां से इन श्वानों को उठाकर कहा लेकर जाया जाता है, इसकी जानकारी भी नहीं दी जाती.
स्मिता ने नाराजगी जताते हुए कहा की अगर किसी जख्मी श्वान को रेस्क्यू करना होता है, तो सीधे अधिकारी से बात करनी पड़ती है, कभी कभी वे प्रतिसाद नहीं देते है. जो रेस्क्यू के लिए आ रहे होते है, वे भी रेस्क्यू और एमरजेंसी को लेकर ज्यादा सीरियस नहीं होते है. ऐसे में स्मिता का कहना है की श्वानों के लिए एक अलग कॉल सेंटर क्यों नहीं शुरू किया जाता है. जिससे की श्वानों को तुरंत मदद मिल सके और उनकी जान बचाई जा सके.