नागपुर: संसार के लोग राख के ढेर पर ही पैर रखकर चलते है – जलती आग पर नहीं, किन्तु जो इसके विपरीत होते है आग पर चल कर अग्निपरीक्षा देते है उन्हें ही महापुरुष की उपाधि उपलब्ध होती है | सदगुरु कबीर ऐसे ही लोकनायक थे, जिन्होंने अपने युग का प्रवर्तन किया था | अनंत महिमा, अनंत ज्ञान, भक्ति, करुणा, उपकार, व अनंत व्यक्तित्व के धनि, मानवतावादी, समाज सुधारक, संत सम्राट, शिरोमणि सदगुरु कबीर साहेब सन् १३९८ ई. संवत १४५५ साल में ज्येष्ठ पूर्णिमा को भारत की पावन नगरी काशीपुरी (वाराणसी) के लहरतारा ताल में प्रकट हुए थे| भारत में ही नहीं बल्कि सारे विश्व में कबीर साहब का ६२१ वा प्राकट्य उत्सव बड़े ही प्रेम एवं उत्साह के साथ मनाया| भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशो में मौरीशस, फिजी, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान में बड़े ही प्रेम पूर्वक मनाया जा रहा है, कबीर साहेब के अलौकिक प्राकट्य व अन्तरध्यान के सम्बंध में कबीरपंथ के साहित्यों में यह वानिया प्रमाणित है |
“गगन मंडल से उतरे सद्गुरु सत्य कबीर,
जलज माहि पौडन किये दोउ दिनन के पीर”
“चौदह सौ पचपन साल गए,चंद्रवार एक ठाठ ठये,
ज्येष्ठ सुदी बरसाइत को पूरनमासी प्रगट भये”
“जिव मुक्तावन कारण अविगत धारा शरीर,
हिन्दू तुरुक के बीच में मेरा नाम कबीर”
आपके आगमन काल में बादशाह सिकंदर लोदी का शासन काल था| हिन्दू व मुसलमानों में धार्मिक वैमनस्य बहुत बड गया था, एक दूजे के खून के प्यासे हो गये थे| पाखंड और धर्मान्ध्ता का बोल बाला था, ऐसे समय आपने दोनों दीन को समझाया कहा की “भाई रे दो जगदीश कहा से आया, कहो कौन भरमाया, वही महादेव वही मोहम्मद, ब्रम्हा आदम कहिये, को हिन्दू को तुरुक कहावे एक जमी पर रहिये” आप केवल सत्योपदेशक होकर एक तटस्थ व्यक्ति की तरह हिन्दू व मुस्लिम दोनों की भूले दिखाई, इस बात का पता उनकी इस साखी से लगता है|
“कबीर खड़ा बाजार में सबकी चाहे खैर,
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर”
सारी दुनिया में मात्र एक ही ऐसे महापुरुष है जो हिन्दू के गुरु व मुसलमान के पीर कहलाये| कबीर जी अपने को ना हिन्दू मानते थे ना मुसलमान |
“हिन्दू कहू तो हू नहीं मुसलमान भी नाय,
पांच तत्व का पुतला गैबी खेले माहि”
ज्ञान वही है जो आत्मा को पहचाने, बाकी सब जानकारी है, अर्थात सद्गुरु वही है जो चार दाग से न्यारा हो, आपके विषय में अनेक भ्रांतिया की निवृत्ती के लिए कबीर साहेब की वाणियो व् सिद्धांत का विचार पूर्वक अध्यन करना अत्यंत आवश्यक है|
“खोजा है जिन पाइयो गहरे पानी पैठ, मै बपुरी डूबन डरी, रही किनारे बैठ”
आपने बाहरी साधनों की अपेक्षा आतंरिक साधनों को बहोत महत्व दिया – “ कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे वन माहि, ऐसे घट-घट राम बसत है दुनिया जानत नाही”, “ज्यो तिल माहि तेल है ज्यो जगमग में आग,तेरा साहेब तुझ में जाग सके तो जाग”|
किन्तु माया के आवरण के कारण मनुष्य ने भीतर देखने की क्षमता खो दी, विषय वासना या माया रूपी नदी से आज तक किसी की तृप्ति नहीं हुयी | हां, जीवन में कामिल मुर्शिद सद्गुरु मिले व मन को पवित्र बना ले तब पास में ही हू |
प्रेम परमात्मा का प्रतिक होता है | सत्य की उपासना ही इश्वर की उपासना है | आपने प्रेम का सन्देश दिया है, तमाम पोथी ज्ञान से क्या लाभ यदि हमारे हिरदय में प्रेम नहीं | “कैसे उतरोगे भवजल पार हमारे मन प्रेम नहीं” “पोथी पड़ी पड़ी जग मुआ पंडित भय न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय” नाम जप (सत्यनाम जप ) को सर्वाधिक महत्व दिया है, हमारी सुरती अपने केंद्र (परमात्मा) से हटकर परिधि पर माया का विस्तार में भटक रही है, उसे सत्यनाम सुमिरन, ध्यान, साधना,बंदगी इबादत कर स्थिर करना होगा | उनकी निर्भीक दो टुक वानिया आज भी गुमराहो को राह प्रदान कर रही है आज जिसकी अत्यंत आवश्यकता है | निर्भीकता तभी आती है, जब जीवन में सच्चाई हो | आप वाणी के शहनशाह थे, “मसि कागज छुआ नहीं कलम गहि नहीं हाथ, चारों युग की वार्ता मुखही जनाई बात”| आचार्य चतुरसेन ने कबीर को क्रांति की मशाल तो कवी रविन्द्र टैगोर कहते थे की कबीर को समझने के लिए सैकडो टैगोर की आवश्यकता है |
आपने अपना शरीर छोडते समय काशी से मगहर प्रस्थान किया व यही अपना शरीर छोडा | पश्चात चादर हटाने पर फुल व तुलसी पाने पर हिन्दू व मुस्लिम जो की उनके शिष्य थे,आपस में बाँट लिये | आज भी मगहर बस्ती जिला संत कबीर नगर उत्तरप्रदेश में एक साथ समाधी,मंदिर व मजार मौजूद है, जो कौमी हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतिक है |
“संवत पन्द्रह सौ पचहतर कियो मगहर को गौण,
माघ सुदी एकादसी रह्यो पवन में पौन”
कबीर साहेब जी के प्रथम शिष्य धनि धर्मदास साहेब जी हुये, जिस प्रकार गीता का सारा रहस्य भगवन कृष्णजी ने अर्जुन को दिया उसी प्रकार सदगुरु कबीर ने जीवन का सार सभी कुछ अपने प्रिय शिष्य धरमदास जी को दिया और कबीरपंथ का प्रचार प्रसार करने हेतु तथा जीवो को सही मार्ग में लाने हेतु उनको अटल बयालिश वंशो का आशीर्वाद दिया, धर्मदास जी के सद्गुरु के प्रति प्रेम समर्पण के कारण ही कबीरपंथ का नाम विश्व में जगमगा रहा है इनकी कृपा से आज कबीरपंथ के अनेक ग्रन्थ और साहित्य उपलब्ध है जिसमे अनुराग सागर, कबीर बीजक, ग्रंधावली, दोहावली प्रमुख है.
“चार गुरु संसार में धर्मदास बड़े अंश”
मुक्ति राज उनको दिया अटल बयालिश वंश”
और आज धरमदास साहेब जी के १५ वंश परमपूज्यनिय कबीरपंथियो के मार्गदर्शक पंथश्री हुजूर प्रकाशमुनिनाम साहेब जी (दामाखेड़ा जिला-बलोदा बाजार) कबीर पंथ का प्रचार प्रसार कर रहे है|