Published On : Thu, May 20th, 2021

संस्कारवान माता सौ शिक्षकों में श्रेष्ठ होती हैं- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी

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नागपुर : संस्कारवान माता सौ शिक्षकों में श्रेष्ठ होती हैं यह उदबोधन श्रावक संस्कार उन्नायक दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने विश्व शांति अमृत ऋषभोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन धर्मसभा में दिया.

गुरुदेव ने कहा संसार एकमात्र पुरुष ही है मुठ्ठी बांधकर जन्म लेता हैं. जीवन पथ, राह दिखानेवाले गुरु से शुरू होता है. मां शब्द आत्मा में हैं, परमात्मा में हैं और महात्मा में भी हैं. जीवन की पहली गुरु मां होती हैं. माँ बच्चों को संस्कार देती हैं. संस्कारवान माता सौ शिक्षकों से श्रेष्ठ होती हैं. बच्चों पर संस्कार माता पिता देते हैं तो बच्चे आगे बढ़ते हैं. माता पिता अच्छे है तो पुत्र में भगवान बनने के संस्कार आते हैं.

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भगवान को सच्चे मन से स्मरण करें- गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी
भारत गौरव गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ने संबोधन में कहा आज संकट का बादल हम सभी पर आया हैं. संसार में समस्या सभी के जीवन में हैं. अमीर हो या गरीब, नरक गति का हो या त्रेंच गति का हो सभी के सामने समस्या हैं. समस्या हैं तो समाधान हैं. हमारे जीवन में समस्या आयी हैं उसका डटकर मुकाबला करना हैं,हमें डरना नहीं हैं. डरने से भय का भूत हो जाता हैं. हमें इस समस्या का समाधान ढूंढना हैं. डरकर खड़े होना हैं. महापुरुषों के जीवन में जब जब भी संकट आये वह डरे नहीं, घबराये नहीं, उसका डरकर सामना किया. ज्ञानी संकट के काल में अपने जीवन के काल को निकालता हैं, तीर्थ बनाकर निकालता हैं. ज्ञानी डरता नहीं हैं जितना जितना कष्ट होता हैं वह उतना उतना निखरता हैं.

आचार्यों पर संकट आये उन्होंने भक्ति का सहारा लिया. कोरोना महामारी से बाहर होना हैं तो डरो मत, घबराओं मत, इसका उपाय हैं भक्ति. आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने भक्ति का साधन उपलब्ध कर दिया हैं. भगवान को सच्चे मन से स्मरण करें, आपके मन को स्थिर करे. सच्चे मन से प्रार्थना करें. कोरोना महामारी से बचाने के लिए शांति ही औषधी हैं तो एकमात्र भक्ति हैं. हमारे अंदर नकारात्मक सोच आयी हैं उसे छोड़ना हैं, भय को छोड़ना हैं. देखने से सुनने से असाता कर्म की उदीरणा होती हैं. हमारे खाने-पीने पर नियंत्रण रखना हैं. जिससे तुम्हारा कल्याण हो, जिससे तुम्हें आरोग्यता की प्राप्ति हो सात्विक भोजन कर के अपने जीवन को सात्विक बनाये. शांति विधान कर के दुख मिटाना हैं.

संक्रमण को खत्म करना हैं तो समय का सदुपयोग करना हैं. आपके अर्जित धन का कुछ सेवा कार्य में लगाओ. संत अपना पुरुषार्थ कर रहे हैं, पर का भी कर रहे हैं. अपना जीवन अनमोल हैं. मनुष्य का जीवन मुठ्ठी बांधकर आता हैं. मुठ्ठी बांधने का कारण यह हैं सारे पुरूष में पुरुषार्थ हैं, कषायों का पुरुषार्थ हैं पर आत्मा का पुरुषार्थ नहीं हैं. धर्मसभा का संचालन स्वरकोकिला गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने किया. शुक्रवार 21 मई को सुबह 7:20 बजे शांतिधारा, सुबह 9 बजे आर्यिका सुज्ञानश्री माताजी का उदबोधन होगा. शाम 7:30 बजे से परमानंद यात्रा, चालीसा, भक्तामर पाठ, महाशांतिधारा का उच्चारण एवं रहस्योद्घाटन, 48 ऋद्धि-विद्या-सिद्धि मंत्रानुष्ठान, महामृत्युंजय जाप, आरती होगी यह जानकारी धर्मतीर्थ विकास समिति के प्रवक्ता नितिन नखाते ने दी हैं.

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