
पत्र में इस बात का भी जिक्र है चतुर्वेदी ने उनकी भूमिका पर उठ रहे सवालों के बीच 23 जनवरी 2018 को कारण बताओं नोटिस भी जारी किया था। जिसका जवाब न देकर आप के द्वारा पार्टी के संविधान की अवहेलना की गई। मनपा चुनाव में आप की भूमिका जानबूझकर पार्टी के उम्मीदवारों को हारने की रही।
कार्रवाई तो होनी ही थी,सही समय का था इंतज़ार
गौरतलब हो की पूर्व मंत्री सतीश चतुर्वेदी बीते कुछ वक्त से लगातार पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे। सिर्फ मनपा चुनाव ही नहीं,भंडारा-गोंदिया में हुए विधानपरिषद के चुनाव में भी उनकी भूमिका पर संदेह व्यक्त किया गया। नागपुर शहर में पार्टी के भीतर गुटबाजी करने का आरोप उन पर था। वह लगातार शहर में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर हमला कर रहे थे।
शहर कांग्रेस द्वारा उन्हें नोटिस दिए जाने पर उन्होंने इसे बचकानी हरकत तक करार दिया था। पार्टी आलाकमान तक अपना पक्ष रखने के लिए बाकायदा उन्होंने दिल्ली में जाकर प्रतिद्वंदी नेताओं की शिकायत तक की थी। लेकिन इस कार्रवाई से साफ़ है की पार्टी भी उनकी भूमिका से सहमत नहीं दिख रही है।
चतुर्वेदी के प्रभाव वाले ईलाके में एक चुनाव प्रचार सभा के दौरान प्रदेशध्यक्ष अशोक चव्हाण पर श्याही फेंकी गई थी। इस घटना में चतुर्वेदी के कट्टर समर्थक के शामिल होने की बात सामने आयी थी। इस घटना के बाद प्रदेशध्यक्ष अशोक चव्हाण खुद नाराज़ हुए थे लेकिन सार्वजनिक तौर पर उन्होंने कभी भी अपनी नाराजगी जाहिर नहीं की थी।
बीजेपी में होगा नया घरौंदा
बीते कुछ वक्त से चतुर्वेदी की बीजेपी से करीबी बढ़ गई थी। वह लगातार बीजेपी नेताओं के संपर्क में भी थे। बीते दिनों चतुर्वेदी की संस्था द्वारा संचालित कॉलेज के एक प्रोग्राम में केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी शामिल हुए। इस कार्यक्रम में दोनों नेताओं ने एक दूसरे की जमकर तारीफ़ भी की। राजनितिक विश्लेषक चतुर्वेदी की बीजेपी से निकटता को लेकर कयास लगा रहे थे की पार्टी में सुनवाई न होने की वजह से व्यथित चतुर्वेदी अपनी राजनीतिक ज़मीन को वापस हासिल करने के लिए बीजेपी में जा सकते है। अब यह क़यास ज़्यादा पुख़्ता लगता है, चतुर्वेदी पर कार्रवाई की बात बीते कुछ समय से चल रही थी लेकिन फ़ैसला तभी लिया गया जब कांग्रेस और उनके बीच संबंधो में सामंजस्य स्थापित होने की सभी संभावनाएं समाप्त हो गई।











