नागपुर: पिछले 10 वर्षों में, अनुसूचित जाति जमाती घटक योजना के कुल 30 हजार करोड़ रुपए खर्च नहीं किए गए हैं, जिससे प्रगतिशील महाराष्ट्र के अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों में असंतोष और निराशा पैदा हुई है। तेलंगाना, कर्नाटक और राजस्थान की तरह महाराष्ट्र सरकार को अनुसूचित जनजाति विकास कोष के लिए अलग कानून बनाकर दिया जा सकता है, इस आशय के विचार विधायक एवं पूर्व पालकमंत्री डॉ नितिन राउत ने व्यक्त किए।
महाराष्ट्र सरकार की सामाजिक न्याय विभाग अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के समग्र विकास के लिए अनुसूचित जाति घटक योजना और अनुसूचित जनजाति घटक योजना नामक दो महत्वपूर्ण नीतियों को लागू करती है। तथापि, सामाजिक न्याय विभाग द्वारा प्रस्तुत बजट के आंकड़ों के अनुसार नीति के अनुसार कभी भी धन का आवंटन एवं व्यय जाति-जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में न होने की जानकारी सामने आ रही है।
वर्ष 2022-23 में अनुसूचित जाति कार्यक्रम के तहत क्षेत्र स्तर पर प्रस्तावित 12 हजार 230 करोड़ रुपए की राशि में से मात्र 4581.1 करोड़ रुपए खर्च किया गया। साथ ही अनुसूचित जनजाति घटक कार्यक्रम में 12562.89 करोड़ रुपए में से 5828.19 करोड़ रुपए खर्च किए गए। यानी 2022-23 में देखा गया कि दोनों घटक योजनाओं में 14383.6 करोड़ रुपए की अव्ययित राशि है। साथ ही, पिछले 10 वर्षों में, जाति और जनजाति घटक योजना के तहत कुल 30 हज़ार करोड़ रुपए की धनराशि अव्ययित है। यह निश्चित रूप से प्रगतिशील महाराष्ट्र के लिए निराशाजनक है और इससे जाति और आदिवासी लोगों में असंतोष और हताशा पैदा हो रही है।
इस विषय पर डॉ नितिन राउत ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि तेलंगाना, कर्नाटक और राजस्थान की तरह महाराष्ट्र सरकार भी इन वंचित समूहों को लाभान्वित करने के लिए एससी-एसटी विकास निधि के लिए एक अलग कानून बनाए, ताकि प्रत्येक वर्ष की अव्ययित धनराशि एससी-एसटी के लोगों को न्याय दिलाने के लिए अगले साल तक आगे बढ़ाया जा सके।