महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा की सीट बंटवारे को लेकर तकरार जारी रहेगी है। शिवसेना आगामी विधानसभा चुनाव में एकबार फिर भाजपा से सीट बंटवारे को लेकर अपना रुख साफ किया है। शिवसेना महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों में से 152 सीटों पर लड़ना चाहती है और बाकी बची 136 सीट अपनी सहयोगी पार्टियों जिसमें बीजेपी मुख्य पार्टी है के लिए छोड़ देना चाहती है। यही नहीं सीटों पर कब्जे के साथ शिवसेना मुख्यमंत्री पद पर भी अपना दावा चाहती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, शिवसेना उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के सपने को साकार करने के लिए भाजपा से ज्यादा सीटें चाहती है, जबकि भाजपा दूसरी पारी खेलना चाहती है। हालांकि, शिवसेना को 2014 लोकसभा चुनाव सीट बंटवारा फॉर्मूले के तहत 2019 लोकसभा चुनावों में भी भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने में कोई फर्क नहीं पड़ता है। विशेषज्ञों ने कहा कि दिलचस्प सवाल यह है कि शिवसेना भाजपा के साथ लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला करेगी।
बता दें कि एक शिवसेना नेता ने शुक्रवार को कहा था कि अकेले चुनाव लड़ना हमारे लिए एक बड़ी गलती साबित हो सकती है। यदि भाजपा केंद्र की सत्ता में लौट आती है, तो महाराष्ट्र में जनता का झुकाव स्वाभाविक रूप से पार्टी की ओर रहेगा और हम अकेले जाकर पीड़ित होंगे।
पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, भाजपा महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में शिवसेना को 130 से ज्यादा सीटें देने की पेशकश नहीं कर सकती है। बताया जा रहा है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना से बातचीत असफल होने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं, सांसदों और विधायकों से दोनों चुनावों (लोकसभा और राज्यसभा) में अकेले लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा है।
उल्लेखनीय है कि बृहस्पतिवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से ढाई घंटे की मुलाकात के बाद भी अमित शाह उन्हें 2019 की लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ने के लिए मनाने में सफल नहीं हो सके। शिवसेना ने साफ किया था कि दोनों नेताओं के बीच समझौते को लेकर फैल रही अफवाहों में कोई सत्यता नहीं है, सेना अकेले ही चुनाव लड़ेगी। शिवसेना प्रवक्ता व सांसद संजय राउत ने कहा था कि शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रस्ताव पारित हुआ है कि आने वाले सभी चुनाव अकेले लड़ेंगे। लिहाजा, अब इसमें कोई बदलाव नहीं होगा। शिवसेना अगला चुनाव अपने दम पर ही लड़ेगी।
बता दें कि भाजपा सूत्रों ने दावा किया था कि बैठक में दोनों पक्षों का सकारात्मक रुख रहा है और अभी आखिरी निर्णय के लिए दोनों में 2-3 मुलाकात और होंगी। लेकिन राउत ने बृहस्पतिवार को कहा था कि दोनों नेताओं के बीच कई मुद्दों पर काफी अच्छी चर्चा हुई। शाह ने फिर से मिलने की बात कही है। हमें मालूम है कि शाह का क्या एजेंडा है। लेकिन हम अपने एजेंडे पर कायम हैं। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया था कि ‘मातोश्री’ में शाह और उद्धव के बीच बंद कमरे में हुई बैठक में क्या बात हुई थी।
लेकिन, माना जा रहा है कि इस बैठक में भाजपा की तरफ से आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ने के बारे में चर्चा हुई। वहीं, शिवसेना सूत्रों की मानें तो भाजपा ने महाराष्ट्र व केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल के दौरान शिवसेना को जगह देने का वादा किया है। लेकिन शिवसेना अब अलग राह पकड़ने की तैयारी में है।
जनवरी में शिवसेना ने एनडीए से बाहर निकलने की घोषणा कर दी थी। उसके बाद से सेना के नेता भाजपा की कड़ी आलोचना करते रहे हैं। पिछले महीने हुए पालघर लोकसभा उपचुनाव में दोनों पार्टियां आमने सामने थीं। कड़े मुकाबले में सेना के उम्मीदवार को भाजपा के सामने कम अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
शिवसेना की मजबूरी
लेकिन शिवसेना के वरिष्ठ नेता भाजपा के साथ सरकार चलाना अपनी राजनीतिक मजबूरी करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि यदि उनके मंत्री मंत्रिमंडल से इस्तीफा दें और विधायक समर्थन वापस ले लें, तो महाराष्ट्र सरकार गिर जाएगी। हालांकि केंद्र सरकार पर उसका कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन इसके बाद भाजपा भी मुंबई नगर पालिका (बीएमसी) में शिवसेना से समर्थन खींच लेगी यानी 37000 करोड़ रुपये के सालाना बजट वाली नगर पालिका शिवसेना के हाथ से निकल जाएगी। इसीलिए सेना एनडीए से नाता तोड़ने के बाद भी भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में बनी हुई है।
फिर भी भाजपा के साथ सरकार
आश्चर्य की बात है कि एनडीए का साथ छह महीने पहले छोड़ने के बावजूद शिवसेना के सदस्य भाजपा के साथ केंद्र और राज्य दोनों मंत्रिमंडल में बने हुए हैं। भाजपा को इसीलिए भरोसा है कि चूंकि दोनों पार्टियां साथ में सरकार चला रही हैं, शिवसेना के साथ चुनाव लड़ने के लिए मान जाएगी।