– उत्पादन में वृद्धि, उद्योगों में कटौती,सारा कोयला जा रहा पावर प्लांट, फिर भी पेट खाली,क्षमता से अधिक आपूर्ति, फ्लाई ऐेश कंटेंट भी बढ़ा,ई-ऑक्शन में आवंटित कोयला,कालाबाजारी की भी संभावना,1 दिसंबर 2021 तक 2,27,200 मीट्रिक टन और 2 जनवरी 2022 तक 3,17,500 मीट्रिक टन
नागपुर: पावर प्लांटों का पेट पिछले कुछ दिनों में काफी बड़ा हो गया है. इन्हें जितना भी कोयला दिया जा रहा है वह कम पड़ रहा है. कोयला कंपनियों का दम पावर प्लांट को कोयला देने में ही निकल रहा है. वहीं दूसरी ओर छोटी-छोटी इकाइयां कोयले के अभाव में दम तोड़ रही हैं. तालमेल के अभाव में यह संकट खड़ा हो गया है. वास्तव में वेकोलि का उत्पादन 17 फीसदी बढ़ा है और डिस्पैच में भी 34 फीसदी का इजाफा हुआ है. कोयला कंपनियों को कोयले की आपूर्ति 100 फीसदी से अधिक की गई है. इसके बाद भी वेकोलि ने उद्योगों को कोयला पूर्ति में कटौती की है.
पावर प्लांट में एकाएक कोयले की डिमांड इतनी कैसे बढ़ गई है ? यह पूछने वाला कोई नहीं है. कोयला कंपनियां कोयला दे रही हैं और पावर प्लांट लेते जा रहे हैं. इससे कोयला कंपनियों को भी सैकड़ों करोड़ रुपये का नुकसान है.
1,200 रु. प्रति टन कीमत
पावर प्लांट को कोयला कंपनियां विशेष कीमतों पर माल आपूर्ति करती हैं. यह बाजार रेट से काफी कम होता है. पावर प्लांट के लिए कोयले की कीमत 1,200 रुपये प्रति टन तय है, जबकि इस वक्त बाजार में कोयला 7,500-8,500 रुपये प्रति टन के भाव से बिक रहा है. कोल कंपनियां इसके बावजूद धड़ाधड़ पावर प्लांट को कोयला दे रही हैं. जानकारों का कहना है कि पावर प्लांट वाले जानबूझकर तय कोटा से कहीं अधिक कोयला ले रहे हैं. इससे सभी पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. कोयला जा कहां रहा है, इसे देखने वाला कोई नहीं है. जानकारों की मानें तो पावर प्लांट का कोयला मार्केट में खुले तौर पर बिक रहा है. 1,200 रुपये में कोयला लेकर कई पावर प्लांट वाले 7,500 से 8,000 के भाव में खुले बाजार में यानी उद्योगों को कोयला बेच रहे हैं. यह बहुत गहरी साजिश है. बिजली का रोना रोकर पावर प्लांट वाले कोयले का अवैध धंधा करने लगे हैं.
मार्केट में प्रीमियम बढ़ा
उद्योगों को वेकोलि से मोटे तौर पर 3,600-3,700 रुपये प्रति टन के हिसाब से कोयला मिलता है लेकिन शार्टेज के कारण प्रीमियम बढ़कर 7,500-8,500 रुपये तक पहुंच गई है. कोयला आपूर्ति में कटौती की घोषणा से मार्केट में और आग लग चुकी है और बताया जाता है कि 1,000-1,500 रुपये प्रति टन की वृद्धि हो गई है. कुछ खदानों का कोयला मार्केट में 9,400 रुपये तक पहुंचने की भी जानकारी है. यानी छोटे-छोटे उद्योगों को कोयले के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. ऐेसे में संभावना जताई जा रही है कि औद्योगिक माल आने वाले दिनों में और बढ़ना तय है. आम जनता को पुन: महंगाई से रूबरू होना ही होगा.
केवल बनावटी शार्टेज, उत्पादन भरपूर
उद्यमियों का कहना है कि कोल कंपनियों के पास कोयले की कोई कमी नहीं है. वेकोलि ही रोजाना 30-32 रैक माल भेज रही है. इसमें महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के साथ-साथ एनटीपीसी को कोयला दिया जा रहा है. 22 रैक इन्हीं को भेजा जा रहा है. सिर्फ और सिर्फ दिखावे के लिए वेकोलि और एसईसीएल कोयले में कटौती कर उद्योगों को परेशान करने का काम कर रही है. 7-8 फरवरी को 30 रैक का डिस्पैच किया गया जो सिर्फ पावर प्लांट को ही भेजा गया.
वाशरी के बावजूद राख में बढ़ोतरी
मजेदार बात तो यह है कि वाशरी आने के पूर्व पावर प्लांट से 30 फीसदी राख बाहर निकलता था. इसलिए सरकार ने वाशरी लगाने का निर्णय लिया ताकि राख के पैमाने को 20 फीसदी तक लाया जा सके. इसके लिए वाशरी को करोड़ों रुपये का भुगतान भी किया जा रहा है और कोयले को धुलवाया जा रहा है. अफसोस यह है कि वाशरी में जब से कोयला जा रहा है तब से पावर प्लांट से राख निकलने का प्रतिशत बढ़कर 50 फीसदी तक पहुंच गया है. जानकार सवाल यही कर रहे हैं कि वाशरी में कोयला धुल रहा है या नहीं. अगर धुल रहा है तो राख का प्रतिशत कम होने की बजाय बढ़ कैसे गया.